Comments - ग़ज़ल (शुक्र तेरा अदा नहीं होता) - Open Books Online2024-03-29T15:22:04Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1091430&xn_auth=noआ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभ…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-18:5170231:Comment:10922112022-10-18T22:56:36.126Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।</p> आदरणीय दण्डपाणि नाहक़ जी आदाब…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-14:5170231:Comment:10920222022-10-14T14:37:16.403Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p style="text-align: left;">आदरणीय दण्डपाणि नाहक़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।</p>
<p style="text-align: left;">//मतला बेहतर हो सकता है और मक़्ता भी//</p>
<p style="text-align: left;">जनाब मक़्ता तो ठीक ही है, अलबत्ता मतले में गुंजाइश ज़रूर है, देखता हूँ। </p>
<p style="text-align: left;">आदरणीय दण्डपाणि नाहक़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।</p>
<p style="text-align: left;">//मतला बेहतर हो सकता है और मक़्ता भी//</p>
<p style="text-align: left;">जनाब मक़्ता तो ठीक ही है, अलबत्ता मतले में गुंजाइश ज़रूर है, देखता हूँ। </p> आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब,…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-14:5170231:Comment:10919202022-10-14T10:54:51.926Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।</p>
<p>//मतला बेहतर हो सकता है।//</p>
<p>जनाब, मतले पर आदरणीय रवि भसीन जी से हुई चर्चा में ख़ाकसार के दृष्टिकोण के अनुरूप कोई सुधार आपके ज़ह्न में हो तो ज़रूर बताइएगा, आभारी रहूँगा... सादर।</p>
<p>आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।</p>
<p>//मतला बेहतर हो सकता है।//</p>
<p>जनाब, मतले पर आदरणीय रवि भसीन जी से हुई चर्चा में ख़ाकसार के दृष्टिकोण के अनुरूप कोई सुधार आपके ज़ह्न में हो तो ज़रूर बताइएगा, आभारी रहूँगा... सादर।</p> आदरणीय अमीरुद्दीन जी, अच्छी ग़…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-13:5170231:Comment:10920142022-10-13T14:10:53.698ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन जी, अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। मतला बेहतर हो सकता है। </p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन जी, अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। मतला बेहतर हो सकता है। </p> //मक़्ता में 'मांगे' को 'माँगे…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-07:5170231:Comment:10913752022-10-07T13:12:06.386Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p><span>//मक़्ता में 'मांगे' को 'माँगे' लिखना ज़्यादा मुनासिब होगा//</span></p>
<p><strong>सहमत</strong>।</p>
<p><span>//मक़्ता में 'मांगे' को 'माँगे' लिखना ज़्यादा मुनासिब होगा//</span></p>
<p><strong>सहमत</strong>।</p> मुहतरम रवि भसीन 'शाहिद' जी आद…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-07:5170231:Comment:10914402022-10-07T12:44:08.648Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>मुहतरम रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है, ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।</p>
<p>/और वा'दा वफ़ा नहीं होता/ दरअसल ये मिसरा मैंने यूँ रखा था-</p>
<p><strong>'कोई वा'दा वफ़ा नहीं होता' </strong>मगर छान-बीन से ये मा'लूम हुआ कि हू-ब-हू यही मिसरा जनाब काज़िम रज़ा 'राही' के एक शे'र में शामिल है, जो यूँ है-</p>
<p>मुफ़्लिसी की वजह से ऐ 'राही'</p>
<p><strong>'कोई वा'दा वफ़ा नहीं होता'... </strong>इस लिये बदलना पड़ा, मगर भाव वही है, </p>
<p>आपकी तज्वीज़…</p>
<p>मुहतरम रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है, ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।</p>
<p>/और वा'दा वफ़ा नहीं होता/ दरअसल ये मिसरा मैंने यूँ रखा था-</p>
<p><strong>'कोई वा'दा वफ़ा नहीं होता' </strong>मगर छान-बीन से ये मा'लूम हुआ कि हू-ब-हू यही मिसरा जनाब काज़िम रज़ा 'राही' के एक शे'र में शामिल है, जो यूँ है-</p>
<p>मुफ़्लिसी की वजह से ऐ 'राही'</p>
<p><strong>'कोई वा'दा वफ़ा नहीं होता'... </strong>इस लिये बदलना पड़ा, मगर भाव वही है, </p>
<p>आपकी तज्वीज़ भी बहतरीन है, मगर '<strong>बस ये'</strong> से भाव बदल रहा है, इसलिए माज़रत ख़्वाह हूँ। </p>
<p>वैसे...मतला स्वतंत्र होने के साथ-साथ दूसरे शे'र के साथ क़तअ-बन्द है। :-)) </p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>/और वा'दा वफ़ा नहीं होता/</p>
<p>/बस ये वा'दा वफ़ा नहीं होता/</p>
<p></p> आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहि…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-07:5170231:Comment:10913012022-10-07T08:17:49.547Zरवि भसीन 'शाहिद'http://www.openbooksonline.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आदाब! इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर आप को ख़ूब सारी दाद और बधाई! अगर मतला के मिस्रा-ए-सानी को यूँ कहा जाए तो कैसा रहेगा?<br/>/शुक्र तेरा अदा नहीं होता<br/>और वा'दा वफ़ा नहीं होता/<br/>बस ये वा'दा वफ़ा नहीं होता<br/>सुझाव मात्र है, अगर पसंद ना आये तो कोई बात नहीं।<br/>मक़्ता में 'मांगे' को 'माँगे' लिखना ज़्यादा मुनासिब होगा।<br/>आपकी ग़ज़ल का दूसरा शे'र लाजवाब है। शुभकामनाएँ</p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आदाब! इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर आप को ख़ूब सारी दाद और बधाई! अगर मतला के मिस्रा-ए-सानी को यूँ कहा जाए तो कैसा रहेगा?<br/>/शुक्र तेरा अदा नहीं होता<br/>और वा'दा वफ़ा नहीं होता/<br/>बस ये वा'दा वफ़ा नहीं होता<br/>सुझाव मात्र है, अगर पसंद ना आये तो कोई बात नहीं।<br/>मक़्ता में 'मांगे' को 'माँगे' लिखना ज़्यादा मुनासिब होगा।<br/>आपकी ग़ज़ल का दूसरा शे'र लाजवाब है। शुभकामनाएँ</p>