Comments - निभाते रहे दुश्मनी को वो ऐसे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" - Open Books Online2024-03-29T13:31:56Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1089091&xn_auth=noआ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:www.openbooksonline.com,2022-09-15:5170231:Comment:10894772022-09-15T05:24:36.118Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। पुनः उपस्थित और मार्गदर्शन के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। पुनः उपस्थित और मार्गदर्शन के लिए आभार।</p> 'निभाते रहे दुश्मनी को वो ऐ…tag:www.openbooksonline.com,2022-09-15:5170231:Comment:10893012022-09-15T05:02:40.809ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p><span>'निभाते रहे दुश्मनी को वो ऐसे</span><br/><span>बना झूठा साथी रखा साथ अपने'</span></p>
<p><span>अब ये शे'र ठीक है ।</span></p>
<p><span>'निभाते रहे दुश्मनी को वो ऐसे</span><br/><span>बना झूठा साथी रखा साथ अपने'</span></p>
<p><span>अब ये शे'र ठीक है ।</span></p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:www.openbooksonline.com,2022-09-15:5170231:Comment:10891942022-09-15T04:42:06.917Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
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<p><span>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। इंगित शेर में बदलाव किया है देखिएगा। सादर..</span></p>
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<p><span>'निभाते रहे दुश्मनी को वो ऐसे</span><br/><span>बना झूठा साथी रखा साथ अपने</span></p>
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<p><span>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। इंगित शेर में बदलाव किया है देखिएगा। सादर..</span></p>
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<p><span>'निभाते रहे दुश्मनी को वो ऐसे</span><br/><span>बना झूठा साथी रखा साथ अपने</span></p>
<p></p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:www.openbooksonline.com,2022-09-12:5170231:Comment:10892832022-09-12T10:59:04.045ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है , बधाई स्वीकार करें I </p>
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<p><span>'निभाते रहे दुश्मनी को वो ऐसे</span><br/><span>उन्हें जो थे प्यारे रहे साथ अपने'-- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है , देखिएगा I </span></p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है , बधाई स्वीकार करें I </p>
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<p><span>'निभाते रहे दुश्मनी को वो ऐसे</span><br/><span>उन्हें जो थे प्यारे रहे साथ अपने'-- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है , देखिएगा I </span></p> आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन…tag:www.openbooksonline.com,2022-09-10:5170231:Comment:10891652022-09-10T15:13:22.448Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p><span>आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार। </span></p>
<p><span>आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार। </span></p> आ. भाई अमीरुददीन जी, सादर अभि…tag:www.openbooksonline.com,2022-09-10:5170231:Comment:10892742022-09-10T15:12:24.145Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरुददीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार। </p>
<p>आ. भाई अमीरुददीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार। </p> बढ़िया ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी जी.…tag:www.openbooksonline.com,2022-09-09:5170231:Comment:10894422022-09-09T16:58:15.240Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://www.openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>बढ़िया ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी जी...बधाई</p>
<p>बढ़िया ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी जी...बधाई</p> आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ…tag:www.openbooksonline.com,2022-09-05:5170231:Comment:10892462022-09-05T16:03:47.278Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ख़ूबसूरत ग़ज़ल का उम्दा प्रयास हुआ है, हार्दिक बधाई।</p>
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<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ख़ूबसूरत ग़ज़ल का उम्दा प्रयास हुआ है, हार्दिक बधाई।</p>
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