Comments - करो जुर्म जमकर ये अन्धेर नगरी-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" - Open Books Online2024-03-28T20:16:13Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1087122&xn_auth=noआ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभ…tag:www.openbooksonline.com,2022-07-20:5170231:Comment:10873272022-07-20T21:27:17.837Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी लेखनसफल हुआ। उत्साहवर्धन व स्नेह के लिए हार्दिकधन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी लेखनसफल हुआ। उत्साहवर्धन व स्नेह के लिए हार्दिकधन्यवाद।</p> आ. भाई जेतन जी, सादर अभिवादन।…tag:www.openbooksonline.com,2022-07-20:5170231:Comment:10872312022-07-20T21:25:35.936Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई जेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन , स्नेह और सुझाव के लिए हार्दिक हार्दिक आभार।</p>
<p>आ. भाई जेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन , स्नेह और सुझाव के लिए हार्दिक हार्दिक आभार।</p> आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन…tag:www.openbooksonline.com,2022-07-20:5170231:Comment:10871322022-07-20T21:24:20.125Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p> आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ…tag:www.openbooksonline.com,2022-07-20:5170231:Comment:10873242022-07-20T11:02:39.096Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी रचना हुई है बधाई स्वीकार करें। </p>
<p>"लहू में है उस के वही साहूकारी</p>
<p>कहा और होगा लिखा और होगा" वाह.. लाजवाब।</p>
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<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी रचना हुई है बधाई स्वीकार करें। </p>
<p>"लहू में है उस के वही साहूकारी</p>
<p>कहा और होगा लिखा और होगा" वाह.. लाजवाब।</p>
<p></p> आदाब , भाई लक्ष्मण धामी मुसा…tag:www.openbooksonline.com,2022-07-19:5170231:Comment:10873112022-07-19T01:05:02.052ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब , भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर बह्रे मुतकारिब मुसम्मन सालिम में कही बढ़िया हुई गज़ल, बधाई ।तीसरे शे'र की शुरुआत रवैया से होनी चाहिए, न कि 'रवैय्या' से" ! आखिरी शे'र को पढ़कर मुझे अल्लामा इकबाल याद आ गए, "भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी / बड़ा बेअदब हूँ सज़ा चाहता हूँ"!</p>
<p>आदाब , भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर बह्रे मुतकारिब मुसम्मन सालिम में कही बढ़िया हुई गज़ल, बधाई ।तीसरे शे'र की शुरुआत रवैया से होनी चाहिए, न कि 'रवैय्या' से" ! आखिरी शे'र को पढ़कर मुझे अल्लामा इकबाल याद आ गए, "भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी / बड़ा बेअदब हूँ सज़ा चाहता हूँ"!</p> वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बह…tag:www.openbooksonline.com,2022-07-18:5170231:Comment:10872162022-07-18T07:38:40.514ZSushil Sarnahttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilSarna
वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत सुंदर प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई सर
वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत सुंदर प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई सर