Comments - पाँच दोहे : उच्छृंखल संकोच // -- सौरभ - Open Books Online2024-03-28T13:52:21Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1068964&xn_auth=noआदरणीय इन्द्रविद्या वाचस्पति…tag:www.openbooksonline.com,2021-10-05:5170231:Comment:10704732021-10-05T08:13:07.549ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय इन्द्रविद्या वाचस्पति तिवारी जी, आपकी प्रभावी उपस्थिति का हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p></p>
<p>जिस तरह से आपने दोहा-विशेष के एक चरण को उद्धृत किया है, वह आपकी सचेत दृष्टि का परिचायक है. मैं आश्वस्त हूँ, कि आपको अन्य प्रस्तुतियाँ भी उचित प्रतीत हुई होंगीं. </p>
<p></p>
<p>हार्दिक धन्यवाद </p>
<p>आदरणीय इन्द्रविद्या वाचस्पति तिवारी जी, आपकी प्रभावी उपस्थिति का हार्दिक धन्यवाद. </p>
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<p>जिस तरह से आपने दोहा-विशेष के एक चरण को उद्धृत किया है, वह आपकी सचेत दृष्टि का परिचायक है. मैं आश्वस्त हूँ, कि आपको अन्य प्रस्तुतियाँ भी उचित प्रतीत हुई होंगीं. </p>
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<p>हार्दिक धन्यवाद </p> //प्रेरणादायी दोहे हुए हैं //…tag:www.openbooksonline.com,2021-10-05:5170231:Comment:10704722021-10-05T07:07:49.245ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>//<span>प्रेरणादायी दोहे हुए हैं //</span></p>
<p></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी, आपने प्रेरणादायी या प्रेरक दोहे कह कर स्वयं अपने प्रति उम्मीदें बढ़ा दी हैं. विश्वास है, शृंगारपरक दोहों की एका मधुरिम खेप आने वाली है. </p>
<p>आपकी सम्मति का आभार. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p>
<p>//<span>प्रेरणादायी दोहे हुए हैं //</span></p>
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<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी, आपने प्रेरणादायी या प्रेरक दोहे कह कर स्वयं अपने प्रति उम्मीदें बढ़ा दी हैं. विश्वास है, शृंगारपरक दोहों की एका मधुरिम खेप आने वाली है. </p>
<p>आपकी सम्मति का आभार. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> अधरों पर मोती सजल आंखों में उ…tag:www.openbooksonline.com,2021-10-03:5170231:Comment:10706452021-10-03T23:40:52.358Zindravidyavachaspatitiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/indravidyavachaspatitiwari866
अधरों पर मोती सजल आंखों में उद्भाव मन में एक ज्वार सा उमड़ने लगता है। रचना के लिए साधुवाद।
अधरों पर मोती सजल आंखों में उद्भाव मन में एक ज्वार सा उमड़ने लगता है। रचना के लिए साधुवाद। आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।…tag:www.openbooksonline.com,2021-10-02:5170231:Comment:10703632021-10-02T16:50:47.879Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। उत्क्रिष्ट, मनमोहक और प्रेरणादायी दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकारें । </p>
<p>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। उत्क्रिष्ट, मनमोहक और प्रेरणादायी दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकारें । </p> आदरणीय विजय निकोर सर, आपकी गु…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-30:5170231:Comment:10703442021-09-30T16:15:04.282ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय विजय निकोर सर, आपकी गुण-ग्राहकता का मैं सदैव कायल रहा हूँ. दोहों की प्रकृति और इनसे निस्सृत भावबोध को आपकी सुधी तार्किकता ने मान दिया, मेरा प्रयास सफल हुआ. </p>
<p>मैं एक अंतराल बाद पुन: पटल पर सक्रिय हो रहा हूँ.</p>
<p>उत्साहवर्द्धन के लिए सादर आभार. </p>
<p>आदरणीय विजय निकोर सर, आपकी गुण-ग्राहकता का मैं सदैव कायल रहा हूँ. दोहों की प्रकृति और इनसे निस्सृत भावबोध को आपकी सुधी तार्किकता ने मान दिया, मेरा प्रयास सफल हुआ. </p>
<p>मैं एक अंतराल बाद पुन: पटल पर सक्रिय हो रहा हूँ.</p>
<p>उत्साहवर्द्धन के लिए सादर आभार. </p> आदरणीय विजय शंकर जी, एक अरसे…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-30:5170231:Comment:10705172021-09-30T16:10:07.445ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय विजय शंकर जी, एक अरसे बाद अपनी किसी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पा रहा हूँ. आपने दोहों की प्रकृति पर अपनी आश्वस्ति दी, इस हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p></p>
<p>आदरणीय विजय शंकर जी, एक अरसे बाद अपनी किसी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पा रहा हूँ. आपने दोहों की प्रकृति पर अपनी आश्वस्ति दी, इस हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद. </p>
<p></p> प्रिय मित्र सौरभ जी, हरि ॐ।
स…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-30:5170231:Comment:10700832021-09-30T07:06:52.413Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>प्रिय मित्र सौरभ जी, हरि ॐ।</p>
<p>सभी दोहे ..एक से बढ़ कर एक... अजीब ताज़गी से भरे हुए।</p>
<p>फ्ढ़ा उनको, और देर तक सोच में पड़ा दांतों में जैसे उण्गली दबाए.... </p>
<p>हैरान-सा</p>
<p>प्रिय मित्र सौरभ जी, हरि ॐ।</p>
<p>सभी दोहे ..एक से बढ़ कर एक... अजीब ताज़गी से भरे हुए।</p>
<p>फ्ढ़ा उनको, और देर तक सोच में पड़ा दांतों में जैसे उण्गली दबाए.... </p>
<p>हैरान-सा</p> आदरणीय सौरभ पांडेय जी , सभी द…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-30:5170231:Comment:10701932021-09-30T00:23:50.487ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>आदरणीय सौरभ पांडेय जी , सभी दोहे उच्च कोटि के है पर निम्न वाले की तो बात ही निराली है। कितना कुछ बोल गया यह दोहा। <br/> सूरज कैसे देखिए, औंधा पड़ा उदास <br/>जुगनू की लफ्फाजियाँ, हुई प्रतीची खास। . <br/>बहुत बहुत बधाई , इस प्रस्तुति पर , सादर।</p>
<p>आदरणीय सौरभ पांडेय जी , सभी दोहे उच्च कोटि के है पर निम्न वाले की तो बात ही निराली है। कितना कुछ बोल गया यह दोहा। <br/> सूरज कैसे देखिए, औंधा पड़ा उदास <br/>जुगनू की लफ्फाजियाँ, हुई प्रतीची खास। . <br/>बहुत बहुत बधाई , इस प्रस्तुति पर , सादर।</p> आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-29:5170231:Comment:10702872021-09-29T18:53:01.225ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने छांदसिक रचना पर अपना समय दिया, इस हेतु हृदयतल से आभार. एक दोहे को छोड़, सबके इंगित शृंगारिक हैं. वैसे, छोड़ना तो उसे भी नहीं है. वह भी विशिष्ट भावबोध का ग्राही है. </p>
<p></p>
<p>आदरणीय, जहाँ तक 'उद्भाव' शब्द की व्युत्पत्ति का प्रश्न है, तो इसका उद्भव 'भाव' में 'उत्' उपसर्ग लगने से संभव होता है. जिसका अर्थ है, विशिष्ट एवं परिष्कृत भाव. अवश्य ही यह शब्द 'उद्भव' से प्रच्छन्न है. जिसका अर्थ 'भव' अर्थात 'होने' से परिभाषित होता है. </p>
<p></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने छांदसिक रचना पर अपना समय दिया, इस हेतु हृदयतल से आभार. एक दोहे को छोड़, सबके इंगित शृंगारिक हैं. वैसे, छोड़ना तो उसे भी नहीं है. वह भी विशिष्ट भावबोध का ग्राही है. </p>
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<p>आदरणीय, जहाँ तक 'उद्भाव' शब्द की व्युत्पत्ति का प्रश्न है, तो इसका उद्भव 'भाव' में 'उत्' उपसर्ग लगने से संभव होता है. जिसका अर्थ है, विशिष्ट एवं परिष्कृत भाव. अवश्य ही यह शब्द 'उद्भव' से प्रच्छन्न है. जिसका अर्थ 'भव' अर्थात 'होने' से परिभाषित होता है. </p>
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<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> आदरणीय समर साहब, प्रस्तुति पर…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-29:5170231:Comment:10703192021-09-29T18:37:39.444ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय समर साहब, प्रस्तुति पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>दोहे रुचिकर लगे, यह आश्वस्त करता है. एक को छोड़ सबके इंगित शृंगारिक हैं. </p>
<p></p>
<p>//<span>ये भाव कुछ जाना पहचाना सा लगा,आप ही की किसी पुरानी ग़ज़ल में है शायद//</span></p>
<p></p>
<p><span>'शायद' ने पंक्ति से निस्सृत होते भ्रम की तीव्रता कम कर दी. </span></p>
<p>यह तो भाव विशेष के शाब्दिक होने की दशा है. दिशा, काल, परिस्थितियाँ भले एक हों, भावबोध की भिन्नता ही रचना की बुनावट का कारण बन जाती…</p>
<p>आदरणीय समर साहब, प्रस्तुति पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>दोहे रुचिकर लगे, यह आश्वस्त करता है. एक को छोड़ सबके इंगित शृंगारिक हैं. </p>
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<p>//<span>ये भाव कुछ जाना पहचाना सा लगा,आप ही की किसी पुरानी ग़ज़ल में है शायद//</span></p>
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<p><span>'शायद' ने पंक्ति से निस्सृत होते भ्रम की तीव्रता कम कर दी. </span></p>
<p>यह तो भाव विशेष के शाब्दिक होने की दशा है. दिशा, काल, परिस्थितियाँ भले एक हों, भावबोध की भिन्नता ही रचना की बुनावट का कारण बन जाती हैं. </p>
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<p>शुभ-शुभ </p>