Comments - हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर) - Open Books Online2024-03-29T10:59:40Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1068544&xn_auth=noगज़ल अच्छी लगी। पंक्तियों में…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-30:5170231:Comment:10701982021-09-30T07:08:53.857Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>गज़ल अच्छी लगी। पंक्तियों में लय अच्छी बनी है। </p>
<p>बधाई</p>
<p></p>
<p>गज़ल अच्छी लगी। पंक्तियों में लय अच्छी बनी है। </p>
<p>बधाई</p>
<p></p> उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहि…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-23:5170231:Comment:10697092021-09-23T00:00:19.084Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब</p>
<p>आदाब</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी शिर्क़त और सराहना के लिए हृदय से आभारी हूँ. आपकी क़ीमती इस्लाह से ग़ज़ल सँवर गई है. ममनून हूँ. सलामत रहें.</p>
<p>उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब</p>
<p>आदाब</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी शिर्क़त और सराहना के लिए हृदय से आभारी हूँ. आपकी क़ीमती इस्लाह से ग़ज़ल सँवर गई है. ममनून हूँ. सलामत रहें.</p> जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-22:5170231:Comment:10690862021-09-22T09:36:07.215ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'हालत ये तेरी देख के हैरान हूँ मैं भी'</span></p>
<p><span>'खाली है मकाँ भी मिरा सुनसान हूँ मैं भी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'इस ख़ाली मकाँ जैसा ही सुनसान हूँ मैं भी'</span></p>
<p></p>
<p><span>'गर मिल भी गए हम भी तो आबाद न होंगे<br></br>उजड़ा है अगर…</span></p>
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'हालत ये तेरी देख के हैरान हूँ मैं भी'</span></p>
<p><span>'खाली है मकाँ भी मिरा सुनसान हूँ मैं भी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'इस ख़ाली मकाँ जैसा ही सुनसान हूँ मैं भी'</span></p>
<p></p>
<p><span>'गर मिल भी गए हम भी तो आबाद न होंगे<br/>उजड़ा है अगर तू भी तो वीरान हूँ मैं भी'</span></p>
<p><span>शैर या ग़ज़ल कहने के बाद उस पर दो तीन बार ग़ौर किया करें, इस शैर में 'भी' शब्द का प्रयोग चार बार हुआ है,क्या आपकी निगाह में ये दुरुस्त है?, इस शैर को यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'हम दोनों यहाँ मिल के भी आबाद न होंगे</span></p>
<p><span>उजड़े हैं अगर आप तो वीरान हूँ मैं भी'</span></p>
<p><span>मक़्ता हटा दें, रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हुआ ।</span></p>
<p></p>
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<p></p>
<p></p> आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसा…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-17:5170231:Comment:10682712021-09-17T23:35:51.992Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी</p>
<p>सादर अभिवादन</p>
<p>ग़ज़ल फर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय से आभार.</p>
<p></p>
<p>आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी</p>
<p>सादर अभिवादन</p>
<p>ग़ज़ल फर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय से आभार.</p>
<p></p> आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अ…tag:www.openbooksonline.com,2021-09-17:5170231:Comment:10684612021-09-17T15:16:42.654Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।</p>