Comments - सावन के दोहे : .......... - Open Books Online2024-03-28T11:40:15Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1064733&xn_auth=noआ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन…tag:www.openbooksonline.com,2021-08-01:5170231:Comment:10655662021-08-01T15:52:27.150Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन ।सावन पर अच्छे दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन ।सावन पर अच्छे दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।</p> जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छ…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-31:5170231:Comment:10655492021-07-31T13:00:49.401ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छे दोहे रचे आपने, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p><span>'यादें करती रास'--'करती' को "करतीं" कर लें ।</span></p>
<p></p>
<p>जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छे दोहे रचे आपने, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p><span>'यादें करती रास'--'करती' को "करतीं" कर लें ।</span></p>
<p></p> पुनश्च, विषम
पुनश्च,विषम, नही…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-29:5170231:Comment:10650162021-07-29T17:16:55.386ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>पुनश्च, विषम</p>
<p>पुनश्च,विषम, नहीं, तृतीय दोहे का चतुर्थ ( सम) चरण पढ़े ं! अब जो पोस्ट, सावन के दोहे... " आपने संशोधन कर प्रस्तुत की है, माननीय मुझे निर्दोष लगी! सादर....!</p>
<p>पुनश्च, विषम</p>
<p>पुनश्च,विषम, नहीं, तृतीय दोहे का चतुर्थ ( सम) चरण पढ़े ं! अब जो पोस्ट, सावन के दोहे... " आपने संशोधन कर प्रस्तुत की है, माननीय मुझे निर्दोष लगी! सादर....!</p> नमस्कार, आदरणीय सुशील सरना जी…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-29:5170231:Comment:10652102021-07-29T17:06:32.940ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>नमस्कार, आदरणीय सुशील सरना जी! अच्छा नहीं लगा कि आपने मेरे प्रथम सुझावों पर मनन तो किया और तदनुसार तृतीय दोहे के विषम चरण को संशोधित तो किया और पोस्ट ' सावन के दोहे...."पुन: डाल दी, किन्तु मेरी टिप्पणी का न तो संज्ञान लिया और, न ही धन्यवाद ज्ञापन किया ! </p>
<p>नमस्कार, आदरणीय सुशील सरना जी! अच्छा नहीं लगा कि आपने मेरे प्रथम सुझावों पर मनन तो किया और तदनुसार तृतीय दोहे के विषम चरण को संशोधित तो किया और पोस्ट ' सावन के दोहे...."पुन: डाल दी, किन्तु मेरी टिप्पणी का न तो संज्ञान लिया और, न ही धन्यवाद ज्ञापन किया ! </p> आदरणीय अमीरुद्दीन साहिब, आदाब…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-29:5170231:Comment:10648022021-07-29T16:08:31.336ZSushil Sarnahttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilSarna
आदरणीय अमीरुद्दीन साहिब, आदाब - सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
आदरणीय अमीरुद्दीन साहिब, आदाब - सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, सा…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-29:5170231:Comment:10647892021-07-29T12:04:14.575Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, सावन के उम्दा दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। </p>
<p>आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, सावन के उम्दा दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। </p>