Comments - मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर) - Open Books Online2024-03-29T08:22:36Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1064417&xn_auth=noअच्छी ग़ज़ल हुई, सलक गणवीर सि…tag:www.openbooksonline.com,2021-08-02:5170231:Comment:10659662021-08-02T22:43:47.863ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई, सलक गणवीर सिंह , आदाब ! बस एक सुझाव दे सकता हूँ, वो ये कि मतले के ऊला में 'तो' के स्थान पर ' वो' कर ले! सादर ! </p>
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई, सलक गणवीर सिंह , आदाब ! बस एक सुझाव दे सकता हूँ, वो ये कि मतले के ऊला में 'तो' के स्थान पर ' वो' कर ले! सादर ! </p> उस्ताद -ए - मुहतरम साहिब आदा…tag:www.openbooksonline.com,2021-08-02:5170231:Comment:10655772021-08-02T12:57:40.700Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>उस्ताद -ए - मुहतरम साहिब <br/>आदाब</p>
<p> ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.<br/> इस्लाह के लिए मश्कूर -ओ -ममनून हूँ </p>
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<p>उस्ताद -ए - मुहतरम साहिब <br/>आदाब</p>
<p> ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.<br/> इस्लाह के लिए मश्कूर -ओ -ममनून हूँ </p>
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<p> </p> आदरणीय Saurabh Pandey जी
साद…tag:www.openbooksonline.com,2021-08-02:5170231:Comment:10655762021-08-02T12:50:28.161Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey" class="fn url">Saurabh Pandey</a> जी</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.</p>
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey" class="fn url">Saurabh Pandey</a> जी</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.</p> आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर…tag:www.openbooksonline.com,2021-08-02:5170231:Comment:10656552021-08-02T12:49:08.094Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a> जी</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.</p>
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a> जी</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.</p> आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अ…tag:www.openbooksonline.com,2021-08-01:5170231:Comment:10656372021-08-01T15:14:39.322Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन ।अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई । सुधीजनों की टिप्पणी का संज्ञान लें । सादर..</p>
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन ।अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई । सुधीजनों की टिप्पणी का संज्ञान लें । सादर..</p> आदरणीय सालिक गणवीर जी, बढिया…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-31:5170231:Comment:10654702021-07-31T19:03:49.368ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय <span>सालिक गणवीर जी, बढिया कह गये. बहरहाल, तनिक और समय देना था. मिसरे और गढ़ जाते. </span></p>
<p><span>शुभातिशुभ </span></p>
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<p>आदरणीय <span>सालिक गणवीर जी, बढिया कह गये. बहरहाल, तनिक और समय देना था. मिसरे और गढ़ जाते. </span></p>
<p><span>शुभातिशुभ </span></p>
<p></p> जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-26:5170231:Comment:10644582021-07-26T12:54:16.342ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े'</span></p>
<p><span>मेरे ख़याल से इस मिसरे में 'तो' की जगह "जो" शब्द उचित होगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे<br/>कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े'</span></p>
<p><span>इस शैर के ऊला में 'ऐ' को 1 पर लेना उचित नहीं, इसे यूँ कह सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'भौहें तनी थीं जिसकी मुझे देख कर कभी'</span></p>
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े'</span></p>
<p><span>मेरे ख़याल से इस मिसरे में 'तो' की जगह "जो" शब्द उचित होगा ।</span></p>
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<p><span>'भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे<br/>कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े'</span></p>
<p><span>इस शैर के ऊला में 'ऐ' को 1 पर लेना उचित नहीं, इसे यूँ कह सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'भौहें तनी थीं जिसकी मुझे देख कर कभी'</span></p> आदरणीय Chetan Prakash जी
साद…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-24:5170231:Comment:10642312021-07-24T05:31:45.423Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय Chetan Prakash जी</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.</p>
<p>आदरणीय Chetan Prakash जी</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.</p> आदाब, सालिक गणवीर साहब, छोट…tag:www.openbooksonline.com,2021-07-24:5170231:Comment:10644222021-07-24T03:57:28.602ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब, सालिक गणवीर साहब, छोटी सी किन्तु खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने, बधाई !</p>
<p>आदाब, सालिक गणवीर साहब, छोटी सी किन्तु खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने, बधाई !</p>