Comments - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T18:42:55Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1056633&xn_auth=noVery Nicetag:www.openbooksonline.com,2021-03-22:5170231:Comment:10567992021-03-22T09:52:32.366ZSaarthi Baidyanathhttp://www.openbooksonline.com/profile/saarthibaidyanath
Very Nice
Very Nice आ. भाई समर जी, सादर आभार..tag:www.openbooksonline.com,2021-03-16:5170231:Comment:10566652021-03-16T16:12:05.279Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर आभार..</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर आभार..</p> //बह्र के हिसाब से '" कि इनमे…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-16:5170231:Comment:10567492021-03-16T14:24:13.583ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>//बह्र के हिसाब से '" <span>कि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे है।"</span></p>
<p><span>मिसरे के रदीफ के बार शंशय सा है । मेरे संशय को दूर करने का कष्ट करे//</span></p>
<p><span>कि इनमें आ--1212</span></p>
<p><span>ज भी सपने--1122</span></p>
<p><span>कई सुनह--1212</span></p>
<p><span>रे हैं--22</span></p>
<p>//बह्र के हिसाब से '" <span>कि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे है।"</span></p>
<p><span>मिसरे के रदीफ के बार शंशय सा है । मेरे संशय को दूर करने का कष्ट करे//</span></p>
<p><span>कि इनमें आ--1212</span></p>
<p><span>ज भी सपने--1122</span></p>
<p><span>कई सुनह--1212</span></p>
<p><span>रे हैं--22</span></p> आ. प्रतिभा जी, अभिवादन । अच्छ…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-16:5170231:Comment:10568452021-03-16T14:11:11.858Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. प्रतिभा जी, अभिवादन । अच्छी गजल हुइ है । हार्दिक बधाई । </p>
<p>बह्र के हिसाब से '" <span>कि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे है।"</span></p>
<p><span>मिसरे के रदीफ के बार शंशय सा है । मेरे संशय को दूर करने का कष्ट करे । सादर..</span></p>
<p>आ. प्रतिभा जी, अभिवादन । अच्छी गजल हुइ है । हार्दिक बधाई । </p>
<p>बह्र के हिसाब से '" <span>कि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे है।"</span></p>
<p><span>मिसरे के रदीफ के बार शंशय सा है । मेरे संशय को दूर करने का कष्ट करे । सादर..</span></p> मुहतरमा प्रतिभा शर्मा जी आदाब…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-15:5170231:Comment:10568302021-03-15T15:37:11.171ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>मुहतरमा प्रतिभा शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'मुखौटे भी कई दफ़्हा लगे कि चेहरे हैं'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>'यहाँ मुखौटे लगाये हज़ार चहरे हैं'</span></p>
<p></p>
<p><span>'ये इंतज़ार हमें है सुने वो ख़ामोशी<br></br>हमें ये इल्म नहीं वो तो दिल से बहरे हैं'</span></p>
<p><span>इस शैर को यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'ये इंतिज़ार हमें है सुनें वो ख़ामोशी<br></br>मगर ये इल्म नहीं था वो दिल से बहरे…</span></p>
<p>मुहतरमा प्रतिभा शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'मुखौटे भी कई दफ़्हा लगे कि चेहरे हैं'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>'यहाँ मुखौटे लगाये हज़ार चहरे हैं'</span></p>
<p></p>
<p><span>'ये इंतज़ार हमें है सुने वो ख़ामोशी<br/>हमें ये इल्म नहीं वो तो दिल से बहरे हैं'</span></p>
<p><span>इस शैर को यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'ये इंतिज़ार हमें है सुनें वो ख़ामोशी<br/>मगर ये इल्म नहीं था वो दिल से बहरे हैं'</span></p>
<p></p>
<p><span>'ग़ज़ब का हौसला रखती हमारी भी आंखें,<br/>हैं टूटते तो भी सपने सभी सुनहरे हैं'</span></p>
<p><span>इस शैर को यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'ग़ज़ब का हौसला है देख मेरी आँखों का</span></p>
<p><span>क़ि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे हैं'</span></p>
<p></p>
<p><span>'तुम्हारी याद यूं महफ़िल में दफ़अतन आई<br/>किसी तरह से ही बहते ये अश्क ठहरे हैं'</span></p>
<p><span>इस शैर को यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'तुम्हारी याद जो महफ़िल में दफ़अतन आई<br/>इसी </span></p>
<p><span>सबब से मेरे बहते अश्क ठहरे हैं'</span></p> जी आदरणीय वही अरकान है।tag:www.openbooksonline.com,2021-03-13:5170231:Comment:10568162021-03-13T16:10:07.304ZPratibha Sharmahttp://www.openbooksonline.com/profile/PratibhaSharma
जी आदरणीय वही अरकान है।
जी आदरणीय वही अरकान है। मुहतरमा प्रतिभा शर्मा जी आदाब…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-13:5170231:Comment:10565842021-03-13T10:26:59.116Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>मुहतरमा प्रतिभा शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें । आपने बह्र के अरकान नहीं लिखे हैं, कृपया लिख दिया करें इससे टिप्पणी करने वालों और सीखने वालों को आसानी होती है। ग़ालिबन आपकी ग़ज़ल के अरकान ये हैं। </p>
<p>1212 / 1122 / 1212 / 22</p>
<p>'मुखौटे भी कई दफ़्हा लगे कि चेहरे हैं' इस मिसरे में 'दफ़्हा' शब्द ग़लत है, सहीह लफ़्ज़ 'दफ़अ' है, मिसरा यूँ कर सकते हैं-</p>
<p>'कई दफ़अ तो मुखौटे भी लगते चहरे हैं'</p>
<p></p>
<p>'ये इंतज़ार हमें है सुने वो ख़ामोशी,</p>
<p>हमें ये…</p>
<p>मुहतरमा प्रतिभा शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें । आपने बह्र के अरकान नहीं लिखे हैं, कृपया लिख दिया करें इससे टिप्पणी करने वालों और सीखने वालों को आसानी होती है। ग़ालिबन आपकी ग़ज़ल के अरकान ये हैं। </p>
<p>1212 / 1122 / 1212 / 22</p>
<p>'मुखौटे भी कई दफ़्हा लगे कि चेहरे हैं' इस मिसरे में 'दफ़्हा' शब्द ग़लत है, सहीह लफ़्ज़ 'दफ़अ' है, मिसरा यूँ कर सकते हैं-</p>
<p>'कई दफ़अ तो मुखौटे भी लगते चहरे हैं'</p>
<p></p>
<p>'ये इंतज़ार हमें है सुने वो ख़ामोशी,</p>
<p>हमें ये इल्म नहीं वो तो दिल से बहरे हैं' शे'र के ऊला में 'सुने' को 'सुनें' कर लें, दोनों मिसरों में 'हमें' ठीक नहीं है सानी से 'हमें' जगह 'मगर' करना बहतर होगा।</p>
<p>'ग़ज़ब का हौसला रखती हमारी भी आंखें, इस शे'र का शिल्प और वाक्य विन्यास दुरुस्त नहीं है, यूँ कर सकते हैं - </p>
<p>हैं टूटते तो भी सपने सभी सुनहरे हैं' </p>
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<p>'ग़ज़ब का हौसला रखकर हमारी आँखों को </p>
<p>लगा कि ख़्वाब सभी अपने अब सुनहरे हैं' </p>
<p></p>
<p>व्याकरण की शुद्धता के लिए 'आखें', 'यूं' , 'यहां' पर चन्द्र बिन्दु लगा लें। सादर। </p>
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