Comments - 'जब मैं सोलह का था': ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T15:48:57Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1055947&xn_auth=noजनाब 'जान' गोरखपुरी साहिब आदा…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-08:5170231:Comment:10565102021-03-08T04:11:56.771Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब 'जान' गोरखपुरी साहिब आदाब, किसी भी बात से सहमत होना या असहमत होना आपकी मान्यताओं और निर्णय पर आधारित होता है, किसी को भी बाध्य नहीं किया जा सकता है, और मैंने भी अपनी मान्यता और सीमित ज्ञान मात्र के आधार पर अपनी राय दी है, सहमत होना या असहमत होना आपका निर्णय और अधिकार होता है। बशीर बद्र साहिब की ग़ज़ल की अच्छी मिसाल पेश की है आपने। सादर। </p>
<p>जनाब 'जान' गोरखपुरी साहिब आदाब, किसी भी बात से सहमत होना या असहमत होना आपकी मान्यताओं और निर्णय पर आधारित होता है, किसी को भी बाध्य नहीं किया जा सकता है, और मैंने भी अपनी मान्यता और सीमित ज्ञान मात्र के आधार पर अपनी राय दी है, सहमत होना या असहमत होना आपका निर्णय और अधिकार होता है। बशीर बद्र साहिब की ग़ज़ल की अच्छी मिसाल पेश की है आपने। सादर। </p> आ. समर सर सादर अभिवादन आपकी…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-07:5170231:Comment:10562032021-03-07T17:37:39.640ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ. समर सर सादर अभिवादन आपकी बात से सहमत हूँ कोई ग़ज़ल कितना समय मांगती है मुझे ये तो नहीं पता इतना जानता हूँ कि कोई 2 दिन में ही हो जाती है कोई 2 साल में भी नहीं होती यह बेहद साधारण सी रचना पिछले चार महीने में किसी तरह यहाँ तक पहुँचा पाया हूँ और असंतुष्ट भी हूँ। </p>
<p>आ. समर सर सादर अभिवादन आपकी बात से सहमत हूँ कोई ग़ज़ल कितना समय मांगती है मुझे ये तो नहीं पता इतना जानता हूँ कि कोई 2 दिन में ही हो जाती है कोई 2 साल में भी नहीं होती यह बेहद साधारण सी रचना पिछले चार महीने में किसी तरह यहाँ तक पहुँचा पाया हूँ और असंतुष्ट भी हूँ। </p> आ. अमीरुद्दीन सर आपकी दोनों ह…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-07:5170231:Comment:10563532021-03-07T17:30:16.361ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ. अमीरुद्दीन सर आपकी दोनों ही बातों से मेरा मन सहमत नहीं हो सका, खासकर दूसरी से तो बिल्कुल भी नहीं कृपया पुनः गौर करें।</p>
<p>आ. अमीरुद्दीन सर आपकी दोनों ही बातों से मेरा मन सहमत नहीं हो सका, खासकर दूसरी से तो बिल्कुल भी नहीं कृपया पुनः गौर करें।</p> tag:www.openbooksonline.com,2021-03-07:5170231:Comment:10563512021-03-07T17:28:20.023ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p><a href="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/8640573098?profile=original" target="_blank" rel="noopener"><img src="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/8640573098?profile=RESIZE_710x" class="align-full"/></a></p>
<p><a href="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/8640573098?profile=original" target="_blank" rel="noopener"><img src="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/8640573098?profile=RESIZE_710x" class="align-full"/></a></p> जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-06:5170231:Comment:10563342021-03-06T15:29:37.354ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़ल अभी समय चाहती है,अभ्यासरत रहें ।</p>
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<p>जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़ल अभी समय चाहती है,अभ्यासरत रहें ।</p>
<p></p> जनाब कृष मिश्रा गोरखपुरी साहि…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-06:5170231:Comment:10562342021-03-06T13:47:14.100Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब कृष मिश्रा गोरखपुरी साहिब आदाब, ख़ूबसूरत इन्सानी जज़्बात से लबरेज़ ग़ज़ल की अच्छी कोशिश की है आपने, इस के लिए आपको मुबारकबाद पेश करता हूँ, मगर आप की इस ग़ज़ल के क़वाफ़ी और रदीफ़ सहीह नहीं हैं, इस ग़ज़ल पर आपको और मेहनत करना होगी। </p>
<p>1. मतले में आप ने 'की' और 'सी' क़वाफ़ी लिए हैं और शायद 'ई' (2 मात्रिक) को क़ाफ़िया सेट किया है जो कि दुरुस्त नहीं है। जहाँ तक मेरी जानकारी है अगर मतले में आप ने रदीफ़ से पहले 'की' के साथ 'किसी' जैसा लफ़्ज़ (या अन्य कोई शब्द जो एकाधिक अक्षर युक्त 'ई'…</p>
<p>जनाब कृष मिश्रा गोरखपुरी साहिब आदाब, ख़ूबसूरत इन्सानी जज़्बात से लबरेज़ ग़ज़ल की अच्छी कोशिश की है आपने, इस के लिए आपको मुबारकबाद पेश करता हूँ, मगर आप की इस ग़ज़ल के क़वाफ़ी और रदीफ़ सहीह नहीं हैं, इस ग़ज़ल पर आपको और मेहनत करना होगी। </p>
<p>1. मतले में आप ने 'की' और 'सी' क़वाफ़ी लिए हैं और शायद 'ई' (2 मात्रिक) को क़ाफ़िया सेट किया है जो कि दुरुस्त नहीं है। जहाँ तक मेरी जानकारी है अगर मतले में आप ने रदीफ़ से पहले 'की' के साथ 'किसी' जैसा लफ़्ज़ (या अन्य कोई शब्द जो एकाधिक अक्षर युक्त 'ई' तुकान्त हो) लिया होता तो आपका 'ई' क़ाफ़िया दुरुस्त होता, इसके बाद आगे के सभी अशआर में आपके लिए गए क़वाफ़ी (जो एक अक्षर के हैं) भी दुरुस्त होंगे। </p>
<p>2. मतले में 'तुम' के साथ 'थी' नहीं रदीफ़ को 'थीं' करना होगा। सादर। </p>
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