Comments - ग़ज़ल: 'इश्क मुहब्बत चाहत उल्फत' - Open Books Online2024-03-28T08:00:59Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1055009&xn_auth=noजनाब कृष मिश्रा गोरखपुरी जी, …tag:www.openbooksonline.com,2021-03-08:5170231:Comment:10563672021-03-08T16:24:48.587Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब कृष मिश्रा गोरखपुरी जी, </p>
<p>//रश्क /ईर्ष्या /जलन/ शत्रुता मानव को मुसीबतों में ले जाती है जिसमें उसे मानसिक और शारीरिक दोनों कष्ट प्राप्त होते हैं।//</p>
<p>मुहतरम रश्क के अस्ल मानी <strong>'हम रुतबा होने की ख़्वाहिश'</strong> है, <strong>'किसी की ख़ूूबी या ख़ुश-बख़्ती देखकर ये ख़याल करना कि ये ख़ूूबी या ख़ुश-बख़्ती हमें भी हासिल हो जाए (लेकिन उसके पास भी रहे) </strong>सिर्फ़ जलन या ईर्ष्या नहीं, पहले भी बता चुका हूँँ।</p>
<p>//'जान' ये दिन भी कट जायेंगे, देखी है जब उनकी नफरत।''…</p>
<p>जनाब कृष मिश्रा गोरखपुरी जी, </p>
<p>//रश्क /ईर्ष्या /जलन/ शत्रुता मानव को मुसीबतों में ले जाती है जिसमें उसे मानसिक और शारीरिक दोनों कष्ट प्राप्त होते हैं।//</p>
<p>मुहतरम रश्क के अस्ल मानी <strong>'हम रुतबा होने की ख़्वाहिश'</strong> है, <strong>'किसी की ख़ूूबी या ख़ुश-बख़्ती देखकर ये ख़याल करना कि ये ख़ूूबी या ख़ुश-बख़्ती हमें भी हासिल हो जाए (लेकिन उसके पास भी रहे) </strong>सिर्फ़ जलन या ईर्ष्या नहीं, पहले भी बता चुका हूँँ।</p>
<p>//'जान' ये दिन भी कट जायेंगे, देखी है जब उनकी नफरत।'' इस शे'र के ऊला में भविष्य और सानी में वर्तमान होने के कारण रब्त नहीं है।// </p>
<p><strong>''आपकी इस बात से सहमत नहीं हो सका, पुनः गौर फरमाएं सानी भूतकाल के अनुभव से उपज कर ऊला को अर्थ दे रहा है।'' </strong></p>
<p>जनाब शे'र की तशरीह मैं नहीं कर सका बेशक ये आप ही कर सकते हैं इसीलिए इसे आप ही बहतर समझ सकते हैं, मगर शे'र तो पाठकों और श्रोताओं के लिए कहे जाते हैं न। </p>
<p></p>
<p></p> आ. अमीरुद्दीन सर अपने अपना ब…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-07:5170231:Comment:10562722021-03-07T18:58:35.860ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ. अमीरुद्दीन सर अपने अपना बहुमुल्य समय इस रचना पर पुनः दिया आभारी हूँ।</p>
<p></p>
<p>रश्क /ईर्ष्या /जलन/ शत्रुता मानव को मुसीबतों में ले जाती है जिसमें उसे मानसिक और शारीरिक दोनों कष्ट प्राप्त होते हैं।</p>
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<p>//<strong>देखी है जब उनकी नफरत।'' इस शे'र के ऊला में भविष्य और सानी में वर्तमान होने के कारण रब्त नहीं है।// </strong></p>
<p>आपकी इस बात से सहमत नहीं हो सका, पुनः गौर फरमाएं सानी भूतकाल के अनुभव से उपज कर ऊला को अर्थ दे रहा है।</p>
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<p>सादर।</p>
<p>आ. अमीरुद्दीन सर अपने अपना बहुमुल्य समय इस रचना पर पुनः दिया आभारी हूँ।</p>
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<p>रश्क /ईर्ष्या /जलन/ शत्रुता मानव को मुसीबतों में ले जाती है जिसमें उसे मानसिक और शारीरिक दोनों कष्ट प्राप्त होते हैं।</p>
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<p>//<strong>देखी है जब उनकी नफरत।'' इस शे'र के ऊला में भविष्य और सानी में वर्तमान होने के कारण रब्त नहीं है।// </strong></p>
<p>आपकी इस बात से सहमत नहीं हो सका, पुनः गौर फरमाएं सानी भूतकाल के अनुभव से उपज कर ऊला को अर्थ दे रहा है।</p>
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<p>सादर।</p> आ. समर सर सादर अभिवादन।…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-07:5170231:Comment:10563582021-03-07T18:49:03.049ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ. समर सर सादर अभिवादन।</p>
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<p><span>//'दिन 'जान' ये भी कट जायेंगे'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें तो रवानी में आ जायेगा:-</span></p>
<p><span>'जान ये दिन भी कट जाएँगे'------------------ये मिसरा बहुत पसंद आया। आभार सहित रख रहा हूँ आदरणीय।</span></p>
<p></p>
<p><span>//'तुझसे ही थी जीस्त की जीनत<br></br>'जान'कहाँ अब पहले सी हालत'</span></p>
<p><span>इस मतले के सानी में एक 2 अधिक है,देखें, और इसे अंत में क्यों…</span></p>
<p>आ. समर सर सादर अभिवादन।</p>
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<p><span>//'दिन 'जान' ये भी कट जायेंगे'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें तो रवानी में आ जायेगा:-</span></p>
<p><span>'जान ये दिन भी कट जाएँगे'------------------ये मिसरा बहुत पसंद आया। आभार सहित रख रहा हूँ आदरणीय।</span></p>
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<p><span>//'तुझसे ही थी जीस्त की जीनत<br/>'जान'कहाँ अब पहले सी हालत'</span></p>
<p><span>इस मतले के सानी में एक 2 अधिक है,देखें, और इसे अंत में क्यों रखा?//</span></p>
<p></p>
<p><span>ले और सी पर भी मात्रा पतन किया है। </span></p>
<p></p>
<p>जीवन में अंतिम हासिल वही है तो अंत मे रखा है।</p> "आ. रचना जी हार्दिक शुक्रिया…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-07:5170231:Comment:10564572021-03-07T18:43:01.558ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p><span>"आ. रचना जी हार्दिक शुक्रिया आभार हौसलाफजाई के लिए।</span></p>
<p><span>"आ. रचना जी हार्दिक शुक्रिया आभार हौसलाफजाई के लिए।</span></p> जनाब जान गोरखपुरी साहिब आदाब,…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-02:5170231:Comment:10558102021-03-02T17:28:20.454Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब जान गोरखपुरी साहिब आदाब, टिप्पणी पर आपकी प्रतिक्रिया देर से देख पाया हूँ, बहरहाल आपकी कुछेक जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास कर रहा हूँ। </p>
<p>//इश्क मुहब्बत चाहत उल्फत</p>
<p>रश्क मुसीबत रंज कयामत। ऊला मिसरे की तरह सानी को भी असरदार बनाने के लिए सानी में 'रश्क' की जगह 'दर्द' करना मुनासिब होगा। //</p>
<p>आ. जिज्ञासा को शांत करने के लिए मैं जानना चाहूँगा की रश्क की जगह दर्द करने पर सानी मिसरा असरदार कैसे हो जाएगा?मैं इस बात तक पहुंच नहीं पा रहा कृपया विस्तार…</p>
<p>जनाब जान गोरखपुरी साहिब आदाब, टिप्पणी पर आपकी प्रतिक्रिया देर से देख पाया हूँ, बहरहाल आपकी कुछेक जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास कर रहा हूँ। </p>
<p>//इश्क मुहब्बत चाहत उल्फत</p>
<p>रश्क मुसीबत रंज कयामत। ऊला मिसरे की तरह सानी को भी असरदार बनाने के लिए सानी में 'रश्क' की जगह 'दर्द' करना मुनासिब होगा। //</p>
<p>आ. जिज्ञासा को शांत करने के लिए मैं जानना चाहूँगा की रश्क की जगह दर्द करने पर सानी मिसरा असरदार कैसे हो जाएगा?मैं इस बात तक पहुंच नहीं पा रहा कृपया विस्तार दें।</p>
<p>**</p>
<p><strong>''इश्क़ मुहब्बत चाहत उल्फ़त'' इन सभी अल्फ़ाज़ में एक चीज़ काॅमन है... LOVE</strong></p>
<p><strong>''रश्क मुसीबत रंज क़यामत'' इन सभी अल्फ़ाज़ में जो सिर्फ़ एक चीज़ काॅमन नहीं है वो है 'रश्क'। रश्क के इलावा सभी अल्फ़ाज़ तकलीफ़ से संबंधित हैं जबकि 'रश्क' के मानी हम रुतबा होने की ख़्वाहिश है, जबकि मेरा सुझाया शब्द 'दर्द' बाक़ी अल्फ़ाज़ के यकसां है। </strong></p>
<p>//किसको क्या होना है हासिल</p>
<p>अपनी अपनी है ये क़िस्मत। </p>
<p>इस शे'र के ऊला का शिल्प सानी के ऐतबार से 'किसको क्या हासिल है आया' करना बहतर होगा। //</p>
<p>जी सर सहमत हूँ सानी PAST में है और ऊला future में बारीक़ बात पर आपने ध्यान दिलाया शुक्रगुजार हूं । आपका सुखाया मिसरा बेहतरीन है। लेकिन मैं इस शेर को भविष्य के संदर्भ में ही कहना चाहता हूं तो क्या यूँ करना सही रहेगा?</p>
<p>"किसको क्या होना है हासिल</p>
<p>कोई न जाने अपनी क़िस्मत।"</p>
<p><strong>आप ठीक समझे हैं</strong> <strong>, और आपका नया शे'र भी उम्दा है। </strong></p>
<p>**</p>
<p>// जोर आजमा ले तू भी पूरा..</p>
<p>देखूँ इश्क़ मुझे या वहशत?</p>
<p>इस शे'र का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है और शे'र का शिल्प भी ठीक नहीं है शे'र का भाव न बदले तो यूँ कह सकते हैं:</p>
<p> "देखना तुम भी मैं भी देखूँ - इश्क़ है मुझको या के वहशत" //</p>
<p>शेर का ऊला यूँ रक्खा है मैंने.....</p>
<p>जोर+आजमा ले तू भी पूरा.. = जोराजमा (2211) ले तू भी पूरा (22222)</p>
<p>क्या ये सही नहीं है?</p>
<p><strong>इस पर जनाब समर कबीर साहिब के कमेन्ट दे चुके हैं, ज़्यादा कहने की ज़रूरत नहीं है। </strong></p>
<p>**</p>
<p></p>
<p>// दिन 'जान' ये भी कट जायेंगे...</p>
<p>ये मिसरा बह्र में नहीं है, शे'र यूँ कह सकते हैं :</p>
<p>दिन भी अब तो कटते नहीं हैं</p>
<p>देखी जब से उनकी नफरत। // </p>
<p>दिन 'जान' ये ( 2211) भी कट जायेंगे ( 22222) इस मिसरे को यूँ रक्खा है क्या मुझसे कोई त्रुटि हो रही है??</p>
<p><strong>यहांँ भी वही वही बात लागू होती है, तक़्तीअ के हिसाब से मात्राएं ठीक हैं लेकिन क्या 'कभी' के वज़्न पर 'ये भी' को (ग़ज़ल में) लिया जाना उचित है? इतना ही नहीं ''दिन 'जान' ये भी कट जायेंगे</strong></p>
<p><strong> देखी है जब उनकी नफरत।'' इस शे'र के ऊला में भविष्य और सानी में वर्तमान होने के कारण रब्त नहीं है। </strong></p>
<p>//इस के इलावा उर्दु के अल्फ़ाज़ में नुक़्तों का सहीह इस्तेमाल करना सीखना होगा। सादर। //</p>
<p>कोशिश रहती है जहाँ तक हो सके नुक़्तों का ध्यान रक्खा जाए। फिर भी गलतियाँ हो जाती है। इस संदर्भ में आदरणीय आप कुछ मार्गदर्शन करें तो बड़ी मेहरबानी होगी मेरे साथ साथ अन्य साथी सीख सकेगें।</p>
<p><strong>इश्क, उल्फत, कयामत, हक, जोर, आजमा, नफरत, जीस्त, जीनत को इश्क़, उल्फ़त, क़यामत, हक़, ज़ोर, आज़मा, नफ़रत, ज़ीस्त, ज़ीनत कर लेंगे तो अल्फ़ाज़ सहीह हो जाएंगे।</strong></p>
<p><strong>अपनी तुच्छ बुद्धि से जितना हो सका मैंने स्पष्टीकरण देने का भरसक प्रयास किया है फिर भी अगर कुछ कमी रह गई हो तो नज़र अन्दाज़ कर दीजिएगा। सादर। </strong></p> आदरणीय कृष मिश्रा जी बेहतरीन…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-02:5170231:Comment:10556772021-03-02T13:47:19.284ZRachna Bhatiahttp://www.openbooksonline.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय कृष मिश्रा जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई।बधाई स्वीकार करें।मतला शानदार है।</p>
<p>आदरणीय कृष मिश्रा जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई।बधाई स्वीकार करें।मतला शानदार है।</p> जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़…tag:www.openbooksonline.com,2021-03-02:5170231:Comment:10554952021-03-02T12:37:54.357ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'किसको क्या होना है हासिल</span><br></br><span>अपनी अपनी है ये क़िस्मत'</span></p>
<p><span>मुझे तो ये शैर ठीक लगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'जोर आजमा ले तू भी पूरा'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में तक़ती'अ के हिसाब से मात्राएँ ठीक हैं,लेकिन गेयता नहीं है,ग़ौर करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'दिन 'जान' ये भी कट जायेंगे'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें तो रवानी में आ…</span></p>
<p>जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'किसको क्या होना है हासिल</span><br/><span>अपनी अपनी है ये क़िस्मत'</span></p>
<p><span>मुझे तो ये शैर ठीक लगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'जोर आजमा ले तू भी पूरा'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में तक़ती'अ के हिसाब से मात्राएँ ठीक हैं,लेकिन गेयता नहीं है,ग़ौर करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'दिन 'जान' ये भी कट जायेंगे'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें तो रवानी में आ जायेगा:-</span></p>
<p><span>'जान ये दिन भी कट जाएँगे'</span></p>
<p></p>
<p><span>'तुझसे ही थी जीस्त की जीनत<br/>'जान'कहाँ अब पहले सी हालत'</span></p>
<p><span>इस मतले के सानी में एक 2 अधिक है,देखें, और इसे अंत में क्यों रखा?</span></p>
<p></p> आ. अमीरुद्दीन अमीर सर जी ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2021-02-26:5170231:Comment:10555392021-02-26T13:23:20.954ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ. अमीरुद्दीन अमीर सर जी ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया।</p>
<p>//इश्क मुहब्बत चाहत उल्फत</p>
<p>रश्क मुसीबत रंज कयामत। ऊला मिसरे की तरह सानी को भी असरदार बनाने के लिए सानी में 'रश्क' की जगह 'दर्द' करना मुनासिब होगा। //</p>
<p>आ. जिज्ञासा को शांत करने के लिए मैं जानना चाहूँगा की रश्क की जगह दर्द करने पर सानी मिसरा असरदार कैसे हो जाएगा?मैं इस बात तक पहुंच नहीं पा रहा कृपया विस्तार दें।</p>
<p>**</p>
<p>//किसको क्या होना है हासिल<br></br>अपनी अपनी है ये क़िस्मत। </p>
<p>इस शे'र के ऊला…</p>
<p>आ. अमीरुद्दीन अमीर सर जी ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया।</p>
<p>//इश्क मुहब्बत चाहत उल्फत</p>
<p>रश्क मुसीबत रंज कयामत। ऊला मिसरे की तरह सानी को भी असरदार बनाने के लिए सानी में 'रश्क' की जगह 'दर्द' करना मुनासिब होगा। //</p>
<p>आ. जिज्ञासा को शांत करने के लिए मैं जानना चाहूँगा की रश्क की जगह दर्द करने पर सानी मिसरा असरदार कैसे हो जाएगा?मैं इस बात तक पहुंच नहीं पा रहा कृपया विस्तार दें।</p>
<p>**</p>
<p>//किसको क्या होना है हासिल<br/>अपनी अपनी है ये क़िस्मत। </p>
<p>इस शे'र के ऊला का शिल्प सानी के ऐतबार से 'किसको क्या हासिल है आया' करना बहतर होगा। //</p>
<p>जी सर सहमत हूँ सानी PAST में है और ऊला future में बारीक़ बात पर आपने ध्यान दिलाया शुक्रगुजार हूं । आपका सुखाया मिसरा बेहतरीन है। लेकिन मैं इस शेर को भविष्य के संदर्भ में ही कहना चाहता हूं तो क्या यूँ करना सही रहेगा?</p>
<p>"किसको क्या होना है हासिल<br/>कोई न जाने अपनी क़िस्मत।"</p>
<p>**</p>
<p>// जोर आजमा ले तू भी पूरा.. <br/> देखूँ इश्क़ मुझे या वहशत?</p>
<p>इस शे'र का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है और शे'र का शिल्प भी ठीक नहीं है शे'र का भाव न बदले तो यूँ कह सकते हैं:</p>
<p> "देखना तुम भी मैं भी देखूँ - इश्क़ है मुझको या के वहशत" //</p>
<p>शेर का ऊला यूँ रक्खा है मैंने.....<br/>जोर+आजमा ले तू भी पूरा.. = जोराजमा (2211) ले तू भी पूरा (22222)</p>
<p>क्या ये सही नहीं है?</p>
<p></p>
<p>**</p>
<p>// दिन 'जान' ये भी कट जायेंगे...</p>
<p>ये मिसरा बह्र में नहीं है, शे'र यूँ कह सकते हैं :</p>
<p>दिन भी अब तो कटते नहीं हैं<br/> देखी जब से उनकी नफरत। // </p>
<p>दिन 'जान' ये ( 2211) भी कट जायेंगे ( 22222) इस मिसरे को यूँ रक्खा है क्या मुझसे कोई त्रुटि हो रही है??</p>
<p></p>
<p>//इस के इलावा उर्दु के अल्फ़ाज़ में नुक़्तों का सहीह इस्तेमाल करना सीखना होगा। सादर। //</p>
<p>कोशिश रहती है जहाँ तक हो सके नुक़्तों का ध्यान रक्खा जाए। फिर भी गलतियाँ हो जाती है। इस संदर्भ में आदरणीय आप कुछ मार्गदर्शन करें तो बड़ी मेहरबानी होगी मेरे साथ साथ अन्य साथी सीख सकेगें।</p>
<p>सादर।</p> आ. भाई गुमनाम पिथौरागढ़ी जी ग़ज़…tag:www.openbooksonline.com,2021-02-26:5170231:Comment:10554302021-02-26T10:55:38.478ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ. भाई गुमनाम पिथौरागढ़ी जी ग़ज़ल आपको पसंद आई जानकर खुशी हुई।शुक्रिया।</p>
<p>आ. भाई गुमनाम पिथौरागढ़ी जी ग़ज़ल आपको पसंद आई जानकर खुशी हुई।शुक्रिया।</p> वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है बधाई…tag:www.openbooksonline.com,2021-02-24:5170231:Comment:10550182021-02-24T12:20:32.552Zgumnaam pithoragarhihttp://www.openbooksonline.com/profile/gumnaampithoragarhi
<p>वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है बधाई ......</p>
<p>वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है बधाई ......</p>