Comments - ग़ज़ल (मैं जो कारवाँ से बिछड़ गया) - Open Books Online2024-03-29T12:47:08Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1017835&xn_auth=noजनाब रूपम कुमार जी आदाब ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-29:5170231:Comment:10216462020-09-29T17:30:38.252Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब रूपम कुमार जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये बेहद मशकूर हूँ। सादर। </p>
<p>जनाब रूपम कुमार जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये बेहद मशकूर हूँ। सादर। </p> आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर ज…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-23:5170231:Comment:10179052020-09-23T14:28:56.574Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद जिज्ञासा और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से आपका शुक्रगुजा़र हूँ। अड़ और अढ़ की तुकान्तता के बारे में पहले मैं भी श्योर नहीं था, फिर एक मशहूर शायर की ग़ज़ल सामने आयी जिनके उस्ताद मशहूर शायर "मुसहफ़ी" और जिनके तक़रीबन बहत्तर शागिर्दों में दया शंकर "नसीम" जैसे मुसन्निफ़ हैं, जी मैं बात कर रहा हूंँ ख़्वाजा हैदर अली "आतिश" साहिब की। जब मैंने उनकी ये ग़ज़ल पढ़ी तो कुछ शक नहीं रहा। उनकी ग़ज़ल के चन्द अश'आ़र यहाँ कोट कर रहा हूंँ।</p>
<p>बुलबुल…</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद जिज्ञासा और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से आपका शुक्रगुजा़र हूँ। अड़ और अढ़ की तुकान्तता के बारे में पहले मैं भी श्योर नहीं था, फिर एक मशहूर शायर की ग़ज़ल सामने आयी जिनके उस्ताद मशहूर शायर "मुसहफ़ी" और जिनके तक़रीबन बहत्तर शागिर्दों में दया शंकर "नसीम" जैसे मुसन्निफ़ हैं, जी मैं बात कर रहा हूंँ ख़्वाजा हैदर अली "आतिश" साहिब की। जब मैंने उनकी ये ग़ज़ल पढ़ी तो कुछ शक नहीं रहा। उनकी ग़ज़ल के चन्द अश'आ़र यहाँ कोट कर रहा हूंँ।</p>
<p>बुलबुल गुलों से देख के तुझ को बिगड़ गया </p>
<p>क़ुमरी का तौक़ सर्व की गर्दन में पड़ गया</p>
<p></p>
<p>फ़ुरक़त की शब में ज़ीस्त ने अपनी वफ़ा न की</p>
<p>क़ब्ल-ए-सहर चराग़ हमारा न बढ़ गया</p>
<p></p>
<p>'आतिश' न पूछ हाल तू मुझ दर्द-मन्द का</p>
<p>सीने में दाग़ दाग़ में नासूर पड़ गया सादर। </p>
<p></p> आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभ…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-23:5170231:Comment:10178852020-09-23T01:34:18.008Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन ।उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई । </p>
<p>जानकारी के लिए पूछना चाहूँगा कि क्या अढ़ व अड़ की तुकान्तता ली जा सकती है ? सादर। </p>
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन ।उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई । </p>
<p>जानकारी के लिए पूछना चाहूँगा कि क्या अढ़ व अड़ की तुकान्तता ली जा सकती है ? सादर। </p> आदरणीय हर्ष महाजन जी आदाब, ग़…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-21:5170231:Comment:10179902020-09-21T03:51:02.575Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय हर्ष महाजन जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से शुक्रिया जनाब। सादर ।</p>
<p>आदरणीय हर्ष महाजन जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से शुक्रिया जनाब। सादर ।</p> आदरणीय अम्मीरुद्दीन अमीर जी अ…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10179812020-09-20T16:49:21.993ZHarash Mahajanhttp://www.openbooksonline.com/profile/HarashMahajan
<p>आदरणीय अम्मीरुद्दीन अमीर जी अच्छी पेशकश के लिए वहुत बहुत बधाई ।</p>
<p>सादर ।</p>
<p>आदरणीय अम्मीरुद्दीन अमीर जी अच्छी पेशकश के लिए वहुत बहुत बधाई ।</p>
<p>सादर ।</p> मुहतरम सुशील सरना जी आदाब, ग़…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10178632020-09-20T16:18:57.315Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>मुहतरम सुशील सरना जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये बेहद शुक्रिया जनाब। सादर ।</p>
<p>मुहतरम सुशील सरना जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये बेहद शुक्रिया जनाब। सादर ।</p> वाह आदरणीय बहुत ही दिलकश गजल…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10179782020-09-20T16:06:58.041ZSushil Sarnahttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilSarna
वाह आदरणीय बहुत ही दिलकश गजल हुई है । दिल से मुबारक कबूल करें ।
वाह आदरणीय बहुत ही दिलकश गजल हुई है । दिल से मुबारक कबूल करें । "नज़्र झुक गयी है ज़रूर जाँ…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10179492020-09-20T08:33:03.689ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p> "<span>नज़्र झुक गयी है ज़रूर जाँ !"</span><br/>तुम्हारा क़द भी तो बढ़ गया... <br/>अमीर साहब भाषा शास्त्र और ध्वन्यातक विज्ञान कुछ दशकों <span>से </span>उच्चतम स्तर पर प़ढ़ाता रहा हूँ, फिर भी आपके आग्रह को सिरे से नकरता भी नहीं हूँ। हाँ, बह्र में कोई भटकाव नहीं है, वस्तुतः मुफाइलुन के बजाय मैं भूलवश फाइलुन समझ बैठा। इसके लिए मुझे खेद है।</p>
<p></p>
<p> "<span>नज़्र झुक गयी है ज़रूर जाँ !"</span><br/>तुम्हारा क़द भी तो बढ़ गया... <br/>अमीर साहब भाषा शास्त्र और ध्वन्यातक विज्ञान कुछ दशकों <span>से </span>उच्चतम स्तर पर प़ढ़ाता रहा हूँ, फिर भी आपके आग्रह को सिरे से नकरता भी नहीं हूँ। हाँ, बह्र में कोई भटकाव नहीं है, वस्तुतः मुफाइलुन के बजाय मैं भूलवश फाइलुन समझ बैठा। इसके लिए मुझे खेद है।</p> मुहतरम जनाब चेतन प्रकाश जी आद…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10178482020-09-20T07:50:45.062Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>मुहतरम जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल तक आने के लिए आपका हार्दिक आभार।</p>
<p>//तकाबुले रदीफ के दोष से ( आखिरी शेर ) बचा सकता था। किन्ही जगहों पर मुझे, मुआफ करे, बह्र से भटकाव दिखाई पड़ा । क्वाफी भी सारे शुद्ध नहीं है। बढ़ का प्रयोग उधड़ अथवा उखड़ के साथ दोष पूर्ण लगा।//</p>
<p>जनाब ऐब-ए-तक़ाबुल-ए-रदीफ़ से बचने के लिए जो मौज़ूँ मिसरा आपके ज़ह्न में है वो ज़ाहिर करते तो बहतर होता, आपको किस मिसरे में और किस जगह बह्र से भटकाव नज़र आया बताने का कष्ट करें ताकि दोष दूर करने का प्रयास किया जाए।…</p>
<p>मुहतरम जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल तक आने के लिए आपका हार्दिक आभार।</p>
<p>//तकाबुले रदीफ के दोष से ( आखिरी शेर ) बचा सकता था। किन्ही जगहों पर मुझे, मुआफ करे, बह्र से भटकाव दिखाई पड़ा । क्वाफी भी सारे शुद्ध नहीं है। बढ़ का प्रयोग उधड़ अथवा उखड़ के साथ दोष पूर्ण लगा।//</p>
<p>जनाब ऐब-ए-तक़ाबुल-ए-रदीफ़ से बचने के लिए जो मौज़ूँ मिसरा आपके ज़ह्न में है वो ज़ाहिर करते तो बहतर होता, आपको किस मिसरे में और किस जगह बह्र से भटकाव नज़र आया बताने का कष्ट करें ताकि दोष दूर करने का प्रयास किया जाए। मेरी नाक़िस जानकारी के मुताबिक़ बढ़ का प्रयोग उधड़ अथवा उखड़ के साथ दोषपूर्ण नहीं है। फिर भी समय देने के लिये बेहद शुक्रिया। सादर।</p>
<p></p>
<p></p>
अमीर साहब, तकाबुले रदीफ के…tag:www.openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10179472020-09-20T07:28:09.024ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p> </p>
<p>अमीर साहब, तकाबुले रदीफ के दोष से ( आखिरी शेर ) बचा सकता था। किन्ही जगहों पर मुझे, मुआफ करे, बह्र से भटकाव दिखाई पड़ा । क्वाफी भी सारे शुद्ध नहीं है। बढ़ का प्रयोग उधड़ अथवा उखड़ के साथ दोष पूर्ण लगा।</p>
<p> </p>
<p>अमीर साहब, तकाबुले रदीफ के दोष से ( आखिरी शेर ) बचा सकता था। किन्ही जगहों पर मुझे, मुआफ करे, बह्र से भटकाव दिखाई पड़ा । क्वाफी भी सारे शुद्ध नहीं है। बढ़ का प्रयोग उधड़ अथवा उखड़ के साथ दोष पूर्ण लगा।</p>