Comments - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T08:34:32Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1014258&xn_auth=noसबसे पहले तो देरी से जवाब देन…tag:www.openbooksonline.com,2020-08-17:5170231:Comment:10149772020-08-17T18:12:14.050Zanjali guptahttp://www.openbooksonline.com/profile/anjaligupta
<p>सबसे पहले तो देरी से जवाब देने के लिए मुआफ़ी चाहती हूँ। मैंने आयोजन के इतर पहली बार कुछ पोस्ट किया है। मुझे सबको अलग से रिप्लाई का ऑप्शन नहीं दिख रहा। डिंपल शर्मा जी हार्दिक आभार। लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी ,हार्दिक आभार। बृजेश कुमार बृज जी चौथे शेर में कहना चाहती हूँ कि घर के आँगन में अगर कोई पेड़ हो तो बचपन की यादें ज़रूर उससे जुड़ी होती हैं।अमीरुद्दीन अमीर जी,आपकी हौसला अफ़ज़ाई का भी शुक्रिया और बेहतरीन इस्लाह का भी आदरणीय। obo में ग़ज़ल पोस्ट करना सार्थक हुआ। हार्दिक आभार। सभी को पुनः नमन</p>
<p>सबसे पहले तो देरी से जवाब देने के लिए मुआफ़ी चाहती हूँ। मैंने आयोजन के इतर पहली बार कुछ पोस्ट किया है। मुझे सबको अलग से रिप्लाई का ऑप्शन नहीं दिख रहा। डिंपल शर्मा जी हार्दिक आभार। लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी ,हार्दिक आभार। बृजेश कुमार बृज जी चौथे शेर में कहना चाहती हूँ कि घर के आँगन में अगर कोई पेड़ हो तो बचपन की यादें ज़रूर उससे जुड़ी होती हैं।अमीरुद्दीन अमीर जी,आपकी हौसला अफ़ज़ाई का भी शुक्रिया और बेहतरीन इस्लाह का भी आदरणीय। obo में ग़ज़ल पोस्ट करना सार्थक हुआ। हार्दिक आभार। सभी को पुनः नमन</p> आदरणीया अंजलि गुप्ता जी वाह ब…tag:www.openbooksonline.com,2020-08-08:5170231:Comment:10144992020-08-08T06:47:01.472ZDimple Sharmahttp://www.openbooksonline.com/profile/DimpleSharma
<p>आदरणीया अंजलि गुप्ता जी वाह बहुत ख़ूब, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।</p>
<p>आदरणीया अंजलि गुप्ता जी वाह बहुत ख़ूब, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।</p> मुहतरमा अंजलि 'सिफ़र' साहिबा…tag:www.openbooksonline.com,2020-08-05:5170231:Comment:10143952020-08-05T18:04:35.428Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>मुहतरमा अंजलि 'सिफ़र' साहिबा आदाब, लाजवाब अश'आ़र के साथ शानदार ग़ज़ल कही है आपने कुछ अश'आ़र में मामूली तरमीम कर सकते हैं, बहरहाल दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।</p>
<p>//शतरंज मे रिश्तों की मैं हारा नहीं होता : रवानी के लिए यहांँ 'शतरंज में' को 'शतरंज ये' कर के देखें,</p>
<p>//<span>भीतर न उसे आने कभी देता मेरा दिल : ज़बान और शिल्प के ऐतबार से लफ़्ज़' भीतर' मुनासिब नहीं है शे'र यूँ कर सकते हैं :</span></p>
<p>"दिल पर न उसे आने कभी देता मेरा दिल </p>
<p><span>ख़ंजर पे तेरा नाम जो लिक्खा…</span></p>
<p>मुहतरमा अंजलि 'सिफ़र' साहिबा आदाब, लाजवाब अश'आ़र के साथ शानदार ग़ज़ल कही है आपने कुछ अश'आ़र में मामूली तरमीम कर सकते हैं, बहरहाल दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।</p>
<p>//शतरंज मे रिश्तों की मैं हारा नहीं होता : रवानी के लिए यहांँ 'शतरंज में' को 'शतरंज ये' कर के देखें,</p>
<p>//<span>भीतर न उसे आने कभी देता मेरा दिल : ज़बान और शिल्प के ऐतबार से लफ़्ज़' भीतर' मुनासिब नहीं है शे'र यूँ कर सकते हैं :</span></p>
<p>"दिल पर न उसे आने कभी देता मेरा दिल </p>
<p><span>ख़ंजर पे तेरा नाम जो लिक्खा नहीं होता" सादर। </span></p>
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<p></p> आ. अंजलि जी, अच्छी गजल हुई है…tag:www.openbooksonline.com,2020-08-05:5170231:Comment:10143862020-08-05T08:52:00.363Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. अंजलि जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. अंजलि जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p> बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीया लेकि…tag:www.openbooksonline.com,2020-08-04:5170231:Comment:10142872020-08-04T16:39:23.506Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://www.openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीया लेकिन चौथे शे'र का उला साफ़ नहीं है।</p>
<p>बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीया लेकिन चौथे शे'र का उला साफ़ नहीं है।</p>