Comments - मुहब्बत कीजिए यारो सदा दिलदार की सूरत (११६ ) - Open Books Online2024-03-29T15:05:33Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1011860&xn_auth=noआदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'…tag:www.openbooksonline.com,2020-07-08:5170231:Comment:10118902020-07-08T20:10:38.672Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://www.openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a> जी , <span>आदाब , हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | </span></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a> जी , <span>आदाब , हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | </span></p> आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर…tag:www.openbooksonline.com,2020-07-08:5170231:Comment:10119102020-07-08T16:27:04.760Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p> आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तु…tag:www.openbooksonline.com,2020-07-08:5170231:Comment:10118862020-07-08T10:54:34.212Zरवि भसीन 'शाहिद'http://www.openbooksonline.com/profile/RaviBhasin
<p><span>आदरणीय </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO" class="fn url">गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत '</a><span> जी, इस लाभकारी जानकारी के लिए आपका हार्दिक आभार!</span></p>
<p><span>आदरणीय </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO" class="fn url">गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत '</a><span> जी, इस लाभकारी जानकारी के लिए आपका हार्दिक आभार!</span></p> आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' साहिब…tag:www.openbooksonline.com,2020-07-08:5170231:Comment:10118842020-07-08T10:44:38.329Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://www.openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/RaviBhasin" class="fn url">रवि भसीन 'शाहिद'</a><span> साहिब , आदाब , हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | </span></p>
<p></p>
<p><span>ऐसा माना जाता है ग़ज़ल में "या " को एक मात्रा में प्रयोग नहीं किया जा सकता , इसकी जगह शाइर "कि " से काम चलाते हैं जब या कर अर्थ देना हो और एक मात्रा लेनी हो , सादर | </span></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/RaviBhasin" class="fn url">रवि भसीन 'शाहिद'</a><span> साहिब , आदाब , हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | </span></p>
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<p><span>ऐसा माना जाता है ग़ज़ल में "या " को एक मात्रा में प्रयोग नहीं किया जा सकता , इसकी जगह शाइर "कि " से काम चलाते हैं जब या कर अर्थ देना हो और एक मात्रा लेनी हो , सादर | </span></p> आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तु…tag:www.openbooksonline.com,2020-07-08:5170231:Comment:10118782020-07-08T08:42:18.423Zरवि भसीन 'शाहिद'http://www.openbooksonline.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' साहिब, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ, बहुत ख़ूब अशआर हुए हैं। हुज़ूर, मक़ते के ऊला में 'कि हो' के स्थान पर 'हो या' कहने पर विचार कर सकते हैं।</p>
<p>आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' साहिब, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ, बहुत ख़ूब अशआर हुए हैं। हुज़ूर, मक़ते के ऊला में 'कि हो' के स्थान पर 'हो या' कहने पर विचार कर सकते हैं।</p>