Comments - ग़ज़ल ( ये नया द्रोहकाल है बाबा...) - Open Books Online2024-03-29T13:24:14Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1008788&xn_auth=noआदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.
स…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-04:5170231:Comment:10095082020-06-04T16:23:55.999Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>बकौल दुश्यंत कुमार..</p>
<p>सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं..</p>
<p>बस मुझे और कुछ नहीं कहना. आपका कमेंट बाक्स में दोबारा आना मेरे लिए गर्व की बात है.हार्दिक आभार बंधु.</p>
<p>आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>बकौल दुश्यंत कुमार..</p>
<p>सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं..</p>
<p>बस मुझे और कुछ नहीं कहना. आपका कमेंट बाक्स में दोबारा आना मेरे लिए गर्व की बात है.हार्दिक आभार बंधु.</p> आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.
स…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-04:5170231:Comment:10095072020-06-04T16:23:53.319Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>बकौल दुश्यंत कुमार..</p>
<p>सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं..</p>
<p>बस मुझे और कुछ नहीं कहना. आपका कमेंट बाक्स में दोबारा आना मेरे लिए गर्व की बात है.हार्दिक आभार बंधु.</p>
<p>आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p>बकौल दुश्यंत कुमार..</p>
<p>सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं..</p>
<p>बस मुझे और कुछ नहीं कहना. आपका कमेंट बाक्स में दोबारा आना मेरे लिए गर्व की बात है.हार्दिक आभार बंधु.</p> आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अ…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-04:5170231:Comment:10092422020-06-04T04:56:19.427Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । मूल रूप से हिन्दी साहित्य में शब्दों को क्लिष्ट के साथ साथ बोलचाल के रूप में भी अपनाने को मान्यता है । यही हम हिन्दी भाषी गजल में भी अपना लेते हैं । मैं समझता हूँ कि उर्दू शब्दों की क्लिष्ठता में भी लचीलापन स्वीकार लेना चाहिए ।</p>
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । मूल रूप से हिन्दी साहित्य में शब्दों को क्लिष्ट के साथ साथ बोलचाल के रूप में भी अपनाने को मान्यता है । यही हम हिन्दी भाषी गजल में भी अपना लेते हैं । मैं समझता हूँ कि उर्दू शब्दों की क्लिष्ठता में भी लचीलापन स्वीकार लेना चाहिए ।</p> आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'
सादर…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-04:5170231:Comment:10094122020-06-04T04:43:42.255Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'<br />
सादर प्रणाम<br />
मोहतरम इस बहस को विराम देना ही उचित होगा, इसलिये मैने विवादित शब्द हटा दिया है. किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना मेरी मंशा नहीं है .रही बात हिन्दी उर्दू की,जनाब ये हमेशा बहस का मुद्दा रहा है. फ़ैज साहब किरन लिखते हैंं ,हम हिंदी में लिखने वाले किरण, आपने भी सहीह लिखा है ,मैं तो सही लिखता हूँ, कुछ लोग झूट लिखते हैं, हम लोग झूठ लिखते हैं. जनाब ,ऐसा करने से शब्द का अर्थ तो नहीं बदल जाता. कोई भी भाषा समृद्ध तभी होगी जब उसमें दूसरी भाषाओं के शब्दों का समावेश होगा.
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'<br />
सादर प्रणाम<br />
मोहतरम इस बहस को विराम देना ही उचित होगा, इसलिये मैने विवादित शब्द हटा दिया है. किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना मेरी मंशा नहीं है .रही बात हिन्दी उर्दू की,जनाब ये हमेशा बहस का मुद्दा रहा है. फ़ैज साहब किरन लिखते हैंं ,हम हिंदी में लिखने वाले किरण, आपने भी सहीह लिखा है ,मैं तो सही लिखता हूँ, कुछ लोग झूट लिखते हैं, हम लोग झूठ लिखते हैं. जनाब ,ऐसा करने से शब्द का अर्थ तो नहीं बदल जाता. कोई भी भाषा समृद्ध तभी होगी जब उसमें दूसरी भाषाओं के शब्दों का समावेश होगा. आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, इस…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-03:5170231:Comment:10092342020-06-03T14:52:03.437Zरवि भसीन 'शाहिद'http://www.openbooksonline.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, इस सुंदर ग़ज़ल पर बधाई क़ुबूल फ़रमाएँ। लेकिन ग़ज़ल पर चर्चा पढ़ कर मन विचलित हो उठा। मैं जितने अरसे से उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब के संपर्क में हूँ, ये देखा और अनुभव किया है कि वे नौ-मश्क़ शाइरों को ग़ज़ल की तालीम देने के लिए पूरी तरह समर्पित हैं, और जान-पहचान हो या न हो, सभी का मार्गदर्शन पूरे जज़्बे और ईमानदारी से करते हैं। किसी लफ़्ज़ का अगर वो दुरुस्त वज़न बताते हैं तो अपनी तसल्ली के लिए उस्ताद शाइरों के अशआर ढूँढे जा सकते हैं (लेकिन जितनी बार मैंने ऐसा किया है, ये पाया…</p>
<p>आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, इस सुंदर ग़ज़ल पर बधाई क़ुबूल फ़रमाएँ। लेकिन ग़ज़ल पर चर्चा पढ़ कर मन विचलित हो उठा। मैं जितने अरसे से उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब के संपर्क में हूँ, ये देखा और अनुभव किया है कि वे नौ-मश्क़ शाइरों को ग़ज़ल की तालीम देने के लिए पूरी तरह समर्पित हैं, और जान-पहचान हो या न हो, सभी का मार्गदर्शन पूरे जज़्बे और ईमानदारी से करते हैं। किसी लफ़्ज़ का अगर वो दुरुस्त वज़न बताते हैं तो अपनी तसल्ली के लिए उस्ताद शाइरों के अशआर ढूँढे जा सकते हैं (लेकिन जितनी बार मैंने ऐसा किया है, ये पाया है कि वे हमेशा सहीह होते हैं)। और अगर असातिज़ा के अशआर आपको ग़लत सिद्ध करते हैं तो सहीह वज़न को तस्लीम करना चाहिए और सुधार करना चाहिए। बाक़ी "ख़याल" को लेकर तो कोई संदेह की गुंजाइश ही नहीं है कि इसका वज़न 121 है। इसमें हिंदी-उर्दू का सवाल तो पैदा ही नहीं होता। साहित्यकार की तो ज़िम्मेदारी है कि भाषा के बिगाड़ को रोके, तो अगर साहित्यकार ही सारे नियम छोड़-छाड़ के आम लोगों की भाषा को अपना लेगा तो नई पीढ़ी की रहनुमाई कौन करेगा? शब्दों के सही उच्चारण का क्या होगा? अब आम लोग तो 'ख़याल' को 'ख़्याल', 'ख्याल', 'खयाल', 'खियाल', 'खैयाल' और न जाने क्या-क्या कहते हैं। तो क्या इन सभी शब्दों को मान्यता दे दी जाए? हर लफ़्ज़ का एक सही उच्चारण तो होगा न साहिब? ये कुछ अशआर ढूँढें है आपके लिए, पुराने से लेकर आधुनिक शाइरों के, कृपया देखिये इनमें 'ख़याल' का वज़न क्या लिया गया है:</p>
<p></p>
<p>221 / 2121 / 1221 / 212<br/>आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में <br/>'ग़ालिब' सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है <br/>(मिर्ज़ा ग़ालिब)</p>
<p></p>
<p>221 / 2121 / 1221 / 212<br/>उस का ख़याल चश्म से शब ख़्वाब ले गया <br/>क़स्मे कि इश्क़ जी से मिरे ताब ले गया<br/>(मीर तक़ी मीर)</p>
<p></p>
<p>1212 / 1122 / 1212 / 22<br/>गुज़र गया वो ज़माना कहूँ तो किस से कहूँ <br/>ख़याल दिल को मिरे सुब्ह ओ शाम किस का था<br/>(दाग़ देहलवी)</p>
<p></p>
<p>221 / 2121 / 1221 / 212<br/>शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप <br/>महफ़िल में इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं <br/>(अब्दुल हमीद अदम)</p>
<p></p>
<p>221 / 2121 / 1221 / 212<br/>शम-ए-नज़र ख़याल के अंजुम जिगर के दाग़ <br/>जितने चराग़ हैं तिरी महफ़िल से आए हैं<br/>(फ़ैज़ अहमद फ़ैज़)</p>
<p></p>
<p>11212 / 11212 / 11212 / 11212<br/>न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर <br/>कई साल बाद मिले हैं हम तेरे नाम आज की शाम है <br/>(बशीर बद्र)</p> मोहतरम समर कबीर साहब
आदाब
जना…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-03:5170231:Comment:10090922020-06-03T01:44:10.078Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>मोहतरम समर कबीर साहब</p>
<p>आदाब</p>
<p>जनाब, मैं समझता हूँ एक शब्द के लिए इतनी बहस उचित नहीं है. इसे क्या मैं इस शे'र को ही ग़ज़ल से हटा देता हूँ. लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि जो शब्द हमारी बातचीत में शामिल हैं, उनका उपयोग करने में कोई बुराई नहीं है. हम लोग हिंदी उर्दू के चक्कर में फंसे रहे तो किसी का भला नहीं होने वाला. बेहतर है,ग़ज़ल को ग़ज़ल ही रहने दिया जाए. वैसे भी वर्तमान मेंं ग़ज़ल का अर्थ ही पूरी तरह बदल चुका है.</p>
<p>मोहतरम समर कबीर साहब</p>
<p>आदाब</p>
<p>जनाब, मैं समझता हूँ एक शब्द के लिए इतनी बहस उचित नहीं है. इसे क्या मैं इस शे'र को ही ग़ज़ल से हटा देता हूँ. लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि जो शब्द हमारी बातचीत में शामिल हैं, उनका उपयोग करने में कोई बुराई नहीं है. हम लोग हिंदी उर्दू के चक्कर में फंसे रहे तो किसी का भला नहीं होने वाला. बेहतर है,ग़ज़ल को ग़ज़ल ही रहने दिया जाए. वैसे भी वर्तमान मेंं ग़ज़ल का अर्थ ही पूरी तरह बदल चुका है.</p> मोहतरम मैने गूगल भी किया तब ख़…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-02:5170231:Comment:10092242020-06-02T12:57:49.607ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>मोहतरम मैने गूगल भी किया तब ख़्याल लिखा.//</p>
<p>आपको यही बताना चाहता हूँ कि गूगल ने कई लोगों की नैया डुबोई है,इसके भरोसे न रहें, क्या आप किसी शाइर का शैर मिसाल में पेश कर सकते हैं जिसमें 'ख़्याल' 21 पर लिया गया हो? वैसे जानकारी देना मेरा काम है,मानना या न मानना आपकी मर्जी पर है ।</p>
<p>मोहतरम मैने गूगल भी किया तब ख़्याल लिखा.//</p>
<p>आपको यही बताना चाहता हूँ कि गूगल ने कई लोगों की नैया डुबोई है,इसके भरोसे न रहें, क्या आप किसी शाइर का शैर मिसाल में पेश कर सकते हैं जिसमें 'ख़्याल' 21 पर लिया गया हो? वैसे जानकारी देना मेरा काम है,मानना या न मानना आपकी मर्जी पर है ।</p> आदरणीय समर कबीर साहबआदाबग़ज़ल प…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-02:5170231:Comment:10091622020-06-02T12:29:06.013Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय समर कबीर साहब<br></br>आदाब<br></br>ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.</p>
<p>शब्दों के चयन में मैं बहुत सावधानी बरतता हूँ जनाब.मैं आपकी इस बबात से सहमत नहीं हूँ कि ख़याल और ख़्याल एक ही शब्द है.यहां मैं हिंदी या उर्दू की बात नहीं कर रहा हूँ, बल्कि जिस अर्थ के लिए इनका उपयोग होता है ,उसकी बात कर रहा हूँ .यथा</p>
<p>अपना ख़्याल रखना ...</p>
<p>साहिर साहब का मशहूर गाना..कभी कभी मेरे दिल मेंं ख़याल आता है.</p>
<p>अपने शैर में ख़्याल का इस्तेमाल इसलिए किया ताकि शैर बेबह्र न हो और अर्थ भी न…</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब<br/>आदाब<br/>ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.</p>
<p>शब्दों के चयन में मैं बहुत सावधानी बरतता हूँ जनाब.मैं आपकी इस बबात से सहमत नहीं हूँ कि ख़याल और ख़्याल एक ही शब्द है.यहां मैं हिंदी या उर्दू की बात नहीं कर रहा हूँ, बल्कि जिस अर्थ के लिए इनका उपयोग होता है ,उसकी बात कर रहा हूँ .यथा</p>
<p>अपना ख़्याल रखना ...</p>
<p>साहिर साहब का मशहूर गाना..कभी कभी मेरे दिल मेंं ख़याल आता है.</p>
<p>अपने शैर में ख़्याल का इस्तेमाल इसलिए किया ताकि शैर बेबह्र न हो और अर्थ भी न बदले.</p>
<p>मोहतरम मैने गूगल भी किया तब ख़्याल लिखा.उस्ताद मोहतरम से गुजारिश है कि इसे अन्यथा न लिया जाए. सादर .आपका शागिर्द.</p>
<p></p>
<p></p> जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-02:5170231:Comment:10092162020-06-02T09:24:20.203ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p><br></br><span>'ये ग़रीबों का ख़्याल है बाबा'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ख़याल' शब्द को 21 पर लेना उचित नहीं,इसे 121 पर ही लेना दुरुस्त है ।</span></p>
<p></p>
<p><span>//ख़याल और ख़्याल दो भिन्न शब्द हैंं,आदरणीय, पहले का अर्थ कल्पना और दूजे का देखभाल होता है.// </span></p>
<p><span>आपकी बात दुरुस्त नहीं है,"ख़याल" शब्द एक ही है,लेकिन इसके अर्थ भिन्न हैं, ये अरबी भाषा का शब्द…</span></p>
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p><br/><span>'ये ग़रीबों का ख़्याल है बाबा'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ख़याल' शब्द को 21 पर लेना उचित नहीं,इसे 121 पर ही लेना दुरुस्त है ।</span></p>
<p></p>
<p><span>//ख़याल और ख़्याल दो भिन्न शब्द हैंं,आदरणीय, पहले का अर्थ कल्पना और दूजे का देखभाल होता है.// </span></p>
<p><span>आपकी बात दुरुस्त नहीं है,"ख़याल" शब्द एक ही है,लेकिन इसके अर्थ भिन्न हैं, ये अरबी भाषा का शब्द है,अर्थ:-</span></p>
<p><span>1-तसव्वुर(कल्पना)वो सूरत जो आदमी बेदारी में तसव्वुर करे या ख़्वाब में देखे ।</span></p>
<p><span>2-फ़िक्र, अंदेशा ।</span></p>
<p><span>3-ध्यान ।</span></p>
<p><span>4-समझ,राय, मंशा,इरादा ।</span></p>
<p><span>5-तवज्जो,इलतिफ़ात ।</span></p>
<p><span>6-वह्म, गुमान ।</span></p>
<p><span>7-एक राग का नाम ।</span></p>
<p>8-मज़मून,पास,लिहाज़ ।</p>
<p>उम्मीद है आप समझ गए होंगे? मिसरा बदलने का प्रयास करें ।</p>
<p></p> प्रिय रुपम
बहुत शुक्रिया ,बाल…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-01:5170231:Comment:10091552020-06-01T17:52:16.730Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
प्रिय रुपम<br />
बहुत शुक्रिया ,बालक.ऐसे ही मिहनत करते रहो.बहुत ऊपर जाना है.<br />
सस्नेह
प्रिय रुपम<br />
बहुत शुक्रिया ,बालक.ऐसे ही मिहनत करते रहो.बहुत ऊपर जाना है.<br />
सस्नेह