Comments - उफ़ ! क्या किया ये तुम ने । - Open Books Online2024-03-28T12:29:34Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1008516&xn_auth=noजनाब सालिक गणवीर जी, आदाब। ग़…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-05:5170231:Comment:10092552020-06-05T03:10:05.793Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब सालिक गणवीर जी, आदाब। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तह-ए-दिल से शुक्रिया। </p>
<p>जनाब सालिक गणवीर जी, आदाब। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तह-ए-दिल से शुक्रिया। </p> मोहतरम अमीरूद्दीन 'अमीर' साहब…tag:www.openbooksonline.com,2020-06-05:5170231:Comment:10094282020-06-05T01:20:34.429Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
मोहतरम अमीरूद्दीन 'अमीर' साहब<br />
आदाब<br />
एक शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयां स्वीकारें.<br />
जो ले के जाँ हथेली पे हरदम रहा खड़ा<br />
तुमने उसी को ज़ह्र का प्याला पिला दिया.... वाह
मोहतरम अमीरूद्दीन 'अमीर' साहब<br />
आदाब<br />
एक शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयां स्वीकारें.<br />
जो ले के जाँ हथेली पे हरदम रहा खड़ा<br />
तुमने उसी को ज़ह्र का प्याला पिला दिया.... वाह अज़ीज़म रूपम कुमार, ग़ज़ल पर…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-31:5170231:Comment:10088852020-05-31T12:22:00.991Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p style="text-align: left;">अज़ीज़म रूपम कुमार, ग़ज़ल पर उपस्थिती और उत्साहवर्धन के लिये आभार। </p>
<p style="text-align: left;">अज़ीज़म रूपम कुमार, ग़ज़ल पर उपस्थिती और उत्साहवर्धन के लिये आभार। </p> जी, भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-28:5170231:Comment:10085042020-05-28T16:21:11.109Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जी, भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी । धन्यवाद। </p>
<p>जी, भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी । धन्यवाद। </p> आ. भाई अमीरूद्दीन जी, चलने को…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-28:5170231:Comment:10085632020-05-28T15:43:12.665Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, चलने को जमाने में बहुत कुछ चल रहा है । पर सभ प्रमाणिक ट्रेडमार्क नहीं है । साहित्य भी इसका अपवाद नहीं है । सादर..</p>
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, चलने को जमाने में बहुत कुछ चल रहा है । पर सभ प्रमाणिक ट्रेडमार्क नहीं है । साहित्य भी इसका अपवाद नहीं है । सादर..</p> आपको जो उचित लगे कीजिये,मुझे…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-28:5170231:Comment:10087442020-05-28T14:55:40.209ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>आपको जो उचित लगे कीजिये,मुझे और भी काम हैं ।</p>
<p>आपको जो उचित लगे कीजिये,मुझे और भी काम हैं ।</p> मुहतरम, अगर आप ब्लॉग पर समझा…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-28:5170231:Comment:10087432020-05-28T14:32:29.183Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>मुहतरम, अगर आप ब्लॉग पर समझा देते तो मेरे इलावा मुझ जैसे बहुत सारे ना आशना शुअ़रा हज़रात को भी आशनाई हो जाती। मेरी हक़ीर जानकारी के मुताबिक़ ग़ज़ल के मतले के दोनों मिसरे हम क़ाफ़िया (समान तुकान्त) और बह्र में होने ज़रूरी हैं, और वही समान तुकान्त शब्द यानि क़ाफ़िया ग़ज़ल के हर शेअ'र के सानी मिसरे में होना ज़रूरी है। इसके इलावा अगर मतले में लिए गये दोनों क़वाफी़ समान तुकान्त होने के साथ समान विन्यास के हैं तो फिर वही शब्द आप की ग़ज़ल के हर शेअ'र का क़ाफ़िया होगा। क़ाफ़िया के बाद रदीफ़…</p>
<p>मुहतरम, अगर आप ब्लॉग पर समझा देते तो मेरे इलावा मुझ जैसे बहुत सारे ना आशना शुअ़रा हज़रात को भी आशनाई हो जाती। मेरी हक़ीर जानकारी के मुताबिक़ ग़ज़ल के मतले के दोनों मिसरे हम क़ाफ़िया (समान तुकान्त) और बह्र में होने ज़रूरी हैं, और वही समान तुकान्त शब्द यानि क़ाफ़िया ग़ज़ल के हर शेअ'र के सानी मिसरे में होना ज़रूरी है। इसके इलावा अगर मतले में लिए गये दोनों क़वाफी़ समान तुकान्त होने के साथ समान विन्यास के हैं तो फिर वही शब्द आप की ग़ज़ल के हर शेअ'र का क़ाफ़िया होगा। क़ाफ़िया के बाद रदीफ़ (जिस पर आपके शेअ'र में कही गयी बात मुकम्मल होती है) आती है।</p>
<p>कोट किये गए अश'आ़र और मेरी इस ग़ज़ल में इन नियमों का पालन किया गया है। इसके इलावा अगर और कोई नियम है तो अगर बता दें तो नवाज़िश होगी। या फ़िर आप परेशान करने के लिए मुझे डपट भी सकते हैं। </p> आपने जिन साहिब के भी अशआर कोट…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-28:5170231:Comment:10087422020-05-28T12:51:38.084ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>आपने जिन साहिब के भी अशआर कोट किये हैं उनमें भी क़ाफ़िया दोष है,इतना लिखने से बहतर होगा कि फ़ोन पर समझ लें ।</p>
<p>आपने जिन साहिब के भी अशआर कोट किये हैं उनमें भी क़ाफ़िया दोष है,इतना लिखने से बहतर होगा कि फ़ोन पर समझ लें ।</p> मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, ज…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-28:5170231:Comment:10085022020-05-28T12:04:21.197Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जैसे सिर्फ नून ग़ुन्ना+अलिफ़, अलिफ़ पर मद्दाह होते हैं वैसे ही सिर्फ लाम+अलिफ़ यानि ला क्या क़ाफ़िया नहीं हो सकता है ? जैसे कि "उफ़ क्या किया" में हैं, वक़्त हो तो वज़ाहत फ़रमा दीजिएगा। एक ग़ज़ल भी कोट कर रहा हूंँ। सादर।</p>
<p>यही तो मेरी वफ़ा का सिला दिया है मुझे</p>
<p>कि तुम ने भूल समझ कर भुला दिया है मुझे</p>
<p>मिरे ख़याल की लौ को बुझाने वालों ने</p>
<p>चराग़-ए-राह समझ कर जला दिया है मुझे. 'अफ़रोज़ रिज़वी'</p>
<p>मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जैसे सिर्फ नून ग़ुन्ना+अलिफ़, अलिफ़ पर मद्दाह होते हैं वैसे ही सिर्फ लाम+अलिफ़ यानि ला क्या क़ाफ़िया नहीं हो सकता है ? जैसे कि "उफ़ क्या किया" में हैं, वक़्त हो तो वज़ाहत फ़रमा दीजिएगा। एक ग़ज़ल भी कोट कर रहा हूंँ। सादर।</p>
<p>यही तो मेरी वफ़ा का सिला दिया है मुझे</p>
<p>कि तुम ने भूल समझ कर भुला दिया है मुझे</p>
<p>मिरे ख़याल की लौ को बुझाने वालों ने</p>
<p>चराग़-ए-राह समझ कर जला दिया है मुझे. 'अफ़रोज़ रिज़वी'</p> 'उला' के साथ 'इला' और आगे 'अल…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-28:5170231:Comment:10086492020-05-28T08:23:33.289ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>'उला' के साथ 'इला' और आगे 'अला' के क़वाफ़ी कैसे दुरुस्त हो सकते हैं?इसलिए अलिफ़ के क़वाफ़ी मतले में रखे हैं, थोड़ा ग़ौर भी किया करें ।</p>
<p>'उला' के साथ 'इला' और आगे 'अला' के क़वाफ़ी कैसे दुरुस्त हो सकते हैं?इसलिए अलिफ़ के क़वाफ़ी मतले में रखे हैं, थोड़ा ग़ौर भी किया करें ।</p>