Comments - मजदूर अब भी जा रहा पैदल चले यहाँ-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' - Open Books Online2024-03-28T13:20:46Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1008263&xn_auth=noआ. तेजवीर जी, सादरअभिवादन । …tag:www.openbooksonline.com,2020-05-29:5170231:Comment:10087552020-05-29T14:32:33.460Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. तेजवीर जी, सादरअभिवादन । रचना पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार । </p>
<p>आ. तेजवीर जी, सादरअभिवादन । रचना पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार । </p> हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-29:5170231:Comment:10087532020-05-29T12:35:06.259ZTEJ VEER SINGHhttp://www.openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a> जी।बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>मजदूर सह किसान से जाने क्या दुश्मनी</span><br/><span>शासन धनिक पे कर रहा आभार तो बहुत।६।</span></p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a> जी।बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>मजदूर सह किसान से जाने क्या दुश्मनी</span><br/><span>शासन धनिक पे कर रहा आभार तो बहुत।६।</span></p> आ. भाई समर जी, सादर आभार ।tag:www.openbooksonline.com,2020-05-28:5170231:Comment:10086602020-05-28T12:46:26.210Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर आभार ।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर आभार ।</p> //जानकारी के लिए पूछना चाहूँग…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-28:5170231:Comment:10087322020-05-28T06:10:31.703ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p><span>//जानकारी के लिए पूछना चाहूँगा कि कोई नई बह्र की गजल नहीं लिखी जा सकती है तकती'अ हो जाती हो ?//</span></p>
<p><span>ये उस समय सम्भव हो सकता है जब हमें अरूज़ पर उबूर हासिल हो,इससे पहले ऐसे प्रयोग करना उचित नहीं,हमें चाहिए कि प्रचलित बहूर पर ही प्रयास करें ।</span></p>
<p><span>//जानकारी के लिए पूछना चाहूँगा कि कोई नई बह्र की गजल नहीं लिखी जा सकती है तकती'अ हो जाती हो ?//</span></p>
<p><span>ये उस समय सम्भव हो सकता है जब हमें अरूज़ पर उबूर हासिल हो,इससे पहले ऐसे प्रयोग करना उचित नहीं,हमें चाहिए कि प्रचलित बहूर पर ही प्रयास करें ।</span></p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-27:5170231:Comment:10085332020-05-27T08:16:48.003Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, प्रशंसा और मार्गदर्शन के लिए आभार । बह्र का संदर्भ मुझे याद नहीं रहा । अब ध्यान में रहेगा ।</p>
<p></p>
<p>फिर भी जानकारी के लिए पूछना चाहूँगा कि कोई नई बह्र की गजल नहीं लिखी जा सकती है तकती'अ हो जाती हो ? सादर..</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, प्रशंसा और मार्गदर्शन के लिए आभार । बह्र का संदर्भ मुझे याद नहीं रहा । अब ध्यान में रहेगा ।</p>
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<p>फिर भी जानकारी के लिए पूछना चाहूँगा कि कोई नई बह्र की गजल नहीं लिखी जा सकती है तकती'अ हो जाती हो ? सादर..</p> आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभ…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-26:5170231:Comment:10084582020-05-26T04:25:31.853Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार ।</p> आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिव…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-26:5170231:Comment:10085142020-05-26T04:23:57.115Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार । </p>
<p>बह्र के विषय में आपके परामर्श पर ध्यान दूँगा । सादर..</p>
<p>आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार । </p>
<p>बह्र के विषय में आपके परामर्श पर ध्यान दूँगा । सादर..</p> //लक्ष्मण भाई, जो अरकान आपने…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-25:5170231:Comment:10086152020-05-25T14:50:11.072ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p><span>//लक्ष्मण भाई, जो अरकान आपने लिखे हैं, ये बह्र मैंने कभी नहीं देखी//</span></p>
<p><span>लक्ष्मण भाई हमेशा इस बह्र के अरकान ऐसे ही लिखते आये हैं,बहुत समय पहले मैंने भी टोका था,फिर इसलिए कहना छोड़ दिया कि उनके दिए गए अरकान से ग़ज़ल की तक़ती'अ हो जाती है । </span></p>
<p><span>//लक्ष्मण भाई, जो अरकान आपने लिखे हैं, ये बह्र मैंने कभी नहीं देखी//</span></p>
<p><span>लक्ष्मण भाई हमेशा इस बह्र के अरकान ऐसे ही लिखते आये हैं,बहुत समय पहले मैंने भी टोका था,फिर इसलिए कहना छोड़ दिया कि उनके दिए गए अरकान से ग़ज़ल की तक़ती'अ हो जाती है । </span></p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-25:5170231:Comment:10083892020-05-25T14:45:11.487ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p><span>'मजदूर अब भी जा रहा पैदल चले यहाँ'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को और चुस्त कीजिये ।</span></p>
<p></p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p><span>'मजदूर अब भी जा रहा पैदल चले यहाँ'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को और चुस्त कीजिये ।</span></p>
<p></p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' ज…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-25:5170231:Comment:10083832020-05-25T14:18:08.317Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब। यथार्थ पर आधारित समसामयिक सुन्दर रचना हुई है बधाई स्वीकार करें। सादर। </p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब। यथार्थ पर आधारित समसामयिक सुन्दर रचना हुई है बधाई स्वीकार करें। सादर। </p>