Comments - भय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' - Open Books Online2024-03-28T12:20:05Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1005863&xn_auth=noआ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिव…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-10:5170231:Comment:10062352020-05-10T09:08:37.470Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति व मार्गदर्शन के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति व मार्गदर्शन के लिए आभार ।</p> आ. भाई सुरेंद्रनाथ जी, सादर अ…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-10:5170231:Comment:10060892020-05-10T09:07:24.202Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सुरेंद्रनाथ जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति, प्रशंसा व कमियों को इंगित करने के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई सुरेंद्रनाथ जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति, प्रशंसा व कमियों को इंगित करने के लिए आभार ।</p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-09:5170231:Comment:10059542020-05-09T09:03:02.799ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'करती सूखा बाढ़ बस, हलधर को भयभीत'</span></p>
<p><span>इस पंक्ति में 'करती' की जगह "करते" शब्द उचित होगा,देखियेगा ।</span></p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'करती सूखा बाढ़ बस, हलधर को भयभीत'</span></p>
<p><span>इस पंक्ति में 'करती' की जगह "करते" शब्द उचित होगा,देखियेगा ।</span></p> आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिव…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-09:5170231:Comment:10060422020-05-09T01:43:26.199Zनाथ सोनांचलीhttp://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बढ़िया दोहों का प्रयास हुआ है।</p>
<p>आप अगर दूसरे दोहे को यूं करें तो</p>
<p>नाविक हर तूफान से, पा <strong>लेता है</strong> पार</p>
<p>डरता पर पतवार से, ना निकले गद्दार।।</p>
<p></p>
<p>इसी तरह कुछ और दोहों में भी मुझे कुछ लग रहा है। देखियेगा। सादर</p>
<p>आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बढ़िया दोहों का प्रयास हुआ है।</p>
<p>आप अगर दूसरे दोहे को यूं करें तो</p>
<p>नाविक हर तूफान से, पा <strong>लेता है</strong> पार</p>
<p>डरता पर पतवार से, ना निकले गद्दार।।</p>
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<p>इसी तरह कुछ और दोहों में भी मुझे कुछ लग रहा है। देखियेगा। सादर</p> आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवाद…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-08:5170231:Comment:10058822020-05-08T10:42:37.794Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p> हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण ध…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-08:5170231:Comment:10058752020-05-08T07:03:10.113ZTEJ VEER SINGHhttp://www.openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</span>जी ।बहुत बढ़िया गज़ल।</p>
<p><span>शासन बैठा देखता, हर संकट को मूक</span><br/><span>निर्धन को भय मौत से, अधिक दे रही भूक।५।</span></p>
<p><span>हर सत्ता को भय रहा, कुर्सी का अवसान<br/>जिस कारण जनता विवश, करने को विषपान।८।<br/>**</span><br/><br/></p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</span>जी ।बहुत बढ़िया गज़ल।</p>
<p><span>शासन बैठा देखता, हर संकट को मूक</span><br/><span>निर्धन को भय मौत से, अधिक दे रही भूक।५।</span></p>
<p><span>हर सत्ता को भय रहा, कुर्सी का अवसान<br/>जिस कारण जनता विवश, करने को विषपान।८।<br/>**</span><br/><br/></p>