Comments - जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' - Open Books Online2024-03-29T10:46:00Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1005826&xn_auth=noआ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवाद…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-08:5170231:Comment:10059362020-05-08T10:44:41.238Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।</p>
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।</p> हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण ध…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-08:5170231:Comment:10060312020-05-08T07:15:41.396ZTEJ VEER SINGHhttp://www.openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' </span>जी ।बहुत बढ़िया गज़ल।</p>
<p><span>गैरों से जख्म खायें तो अपनों से बोलते</span><br/><span>अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।</span></p>
<p><span>बातें सुधार से अधिक भाती हैं टूट की<br/>दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।</span></p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' </span>जी ।बहुत बढ़िया गज़ल।</p>
<p><span>गैरों से जख्म खायें तो अपनों से बोलते</span><br/><span>अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।</span></p>
<p><span>बातें सुधार से अधिक भाती हैं टूट की<br/>दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।</span></p> आदरणीय tag:www.openbooksonline.com,2020-05-07:5170231:Comment:10058652020-05-07T13:00:57.833Zसालिक गणवीरhttp://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय </p>
<p>आदरणीय </p> आ. भाई सुरेंद्रनाथ जी, सादर आ…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-06:5170231:Comment:10058552020-05-06T01:12:43.791Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सुरेंद्रनाथ जी, सादर आभार ।</p>
<p>आ. भाई सुरेंद्रनाथ जी, सादर आभार ।</p> आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिव…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-06:5170231:Comment:10056042020-05-06T00:40:58.452Zनाथ सोनांचलीhttp://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।</p>
<p>आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।</p> आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिव…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-04:5170231:Comment:10056772020-05-04T13:29:27.292Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर आपकी उपस्थिति से उत्साहवर्धन हुआ । हार्दिक आभार ।</p>
<p>आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर आपकी उपस्थिति से उत्साहवर्धन हुआ । हार्दिक आभार ।</p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:www.openbooksonline.com,2020-05-04:5170231:Comment:10058302020-05-04T09:45:21.784ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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