Comments - ज़रा सोचें अगर इंसान सब लोहा-बदन होते(७५ ) - Open Books Online2024-03-28T23:33:43Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1002569&xn_auth=noजी,मैं जानता हूँ,लेकिन मैं जो…tag:www.openbooksonline.com,2020-03-28:5170231:Comment:10030272020-03-28T15:02:32.448ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जी,मैं जानता हूँ,लेकिन मैं जो भी जानकारी आपको या मंच को देता हूँ वो 100% सहीह होती है,जो लोग भाषा के जानकार नहीं वो कुछ भी इस्तेमाल कर सकते हैं,लेकिन 'शायर' शब्द 'पत्थर'ख़ंजर' के क़वाफ़ी के साथ किसी तरह नहीं चल सकता,लेकिन इसे भी चलाने वाले चला ही लेते हैं,आप जब 'जान एलिया' जैसे भाषा के जानकार शाइर को सुनेंगे तो उन्हें "मानन्द" ही इस्तेमाल करते पाएँगे ।</p>
<p>जी,मैं जानता हूँ,लेकिन मैं जो भी जानकारी आपको या मंच को देता हूँ वो 100% सहीह होती है,जो लोग भाषा के जानकार नहीं वो कुछ भी इस्तेमाल कर सकते हैं,लेकिन 'शायर' शब्द 'पत्थर'ख़ंजर' के क़वाफ़ी के साथ किसी तरह नहीं चल सकता,लेकिन इसे भी चलाने वाले चला ही लेते हैं,आप जब 'जान एलिया' जैसे भाषा के जानकार शाइर को सुनेंगे तो उन्हें "मानन्द" ही इस्तेमाल करते पाएँगे ।</p> आदरणीय Samar kabeer साहेब , आ…tag:www.openbooksonline.com,2020-03-28:5170231:Comment:10029432020-03-28T11:43:59.124Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://www.openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer">Samar kabeer</a> साहेब , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर नमन | आपके निःस्वार्थ मार्गदर्शन के लिए आपका ऋणी हूँ | आवश्यक संशोधन कर दिए हैं | हालाँकि मानन्द शब्द उर्दू में प्रचलित नहीं है , हर शाइर के कलाम में मानिंद ही देखा है अब तक , इसमें कुछ असमंजस अवश्य है | ऐसा देखा गया है , उर्दू में स्वरों को एक दुसरे के स्थान पर परिवर्तित कर शब्द बना लिए गए हैं और उनके दोनों रूप मान्यता प्राप्त कर चुके…</p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> साहेब , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर नमन | आपके निःस्वार्थ मार्गदर्शन के लिए आपका ऋणी हूँ | आवश्यक संशोधन कर दिए हैं | हालाँकि मानन्द शब्द उर्दू में प्रचलित नहीं है , हर शाइर के कलाम में मानिंद ही देखा है अब तक , इसमें कुछ असमंजस अवश्य है | ऐसा देखा गया है , उर्दू में स्वरों को एक दुसरे के स्थान पर परिवर्तित कर शब्द बना लिए गए हैं और उनके दोनों रूप मान्यता प्राप्त कर चुके हैं | "य " की ध्वनि भी "स्वर " की ध्वनि मान ली गई है | जैसे मोहब्बत /महब्बत , शाइर /शायर , जाइज /जायज , आयेगा /आएगा , अयादत /इयादत / एहसास /अहसास , इख़्तियार /अख़्तियार जैसे कई शब्द प्रयोग में होते रहते हैं और उर्दू से नावाक़िफ़ लोगों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं | </p> जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरं…tag:www.openbooksonline.com,2020-03-28:5170231:Comment:10027752020-03-28T10:57:50.734ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'फ़िरंगी की नक़ल गर हिन्द की नस्लें नहीं करती'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'नक़ल' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "नक़्ल"21 देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p>'जूँ लुटती आज है लुटती इसी मानिंद गर क़ुदरत'</p>
<p>इस मिसरे में 'मानिंद' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मानन्द",देखियेगा ।</p>
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<p><span>'ज़रा सी ज़र की ख़ातिर छोड़ डाला है वतन जिसने'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ज़रा सी' की जगह…</span></p>
<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'फ़िरंगी की नक़ल गर हिन्द की नस्लें नहीं करती'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'नक़ल' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "नक़्ल"21 देखियेगा ।</span></p>
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<p>'जूँ लुटती आज है लुटती इसी मानिंद गर क़ुदरत'</p>
<p>इस मिसरे में 'मानिंद' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मानन्द",देखियेगा ।</p>
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<p><span>'ज़रा सी ज़र की ख़ातिर छोड़ डाला है वतन जिसने'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ज़रा सी' की जगह "ज़रा से" कर लें ।</span></p>
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