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हर रोज कहानी तेरी...

हर रोज तेरा अफसाना...

हम गूंथ रहे ख्वाबों में...

इस दिल का ताना बाना...

बस एक वो तेरी यादें...

बस एक तेरा वो चेहरा...

बस एक इबादत तेरी..

.कर दे हमको दिवाना...

मशगुल हुए युँ धुन में...

तेरी सुन ले ओ काफिर...

बस फिक़र नहीं उस रब की...

अब क्या खोना क्या पाना...

मौजूद है तेरा हिस्सा...अब मेरे हर हिस्से में...

हर किस्से में अब मेरी...है तेरा आना जाना...

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2017 at 9:30pm

आ.  आदित्य भाई . अच्छी प्रेम कविता हुई है , .....  आ. समर भाई और आ. बृजेश भाई की बातों का खयाल कीजियेगा

Comment by बृजेश नीरज on January 16, 2017 at 10:18pm

भाई कविता प्रेमालाप से आगे का सफर तय कर चुकी है. कुछ काम की बातें करें. 'मशगुल हुए युँ धुन में' इस पंक्ति में शब्दों के हिज्जों पर ध्यान दें. मुझे जो अखरा वह कह दिया. मुझे एक अदना पाठक समझें.

सादर!

Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 4:07pm
जनाब आदित्य लोक जी आदाब,अच्छी कविता है, बधाई स्वीकार करें ।
कहीं 'तेरी'और कहीं 'तुम्हारी'शब्द से कविता में रस नही आ रहा है,किसी एक शब्द को रखिये ।

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