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लोग मिलते हैं ...........'जान' गोरखपुरी

2122  2212  1222

लोग मिलते हैं अक्सर यहाँ मुहब्बत से
दिल हैं मिलते यारब बड़े ही मुद्दत से।

आज कल शामें हैं उदास बेवा सी
याद आये है कोई खूब सिद्दत से।

कोई होता है किस कदर अदाकारां
हम रहे इक टक देखते सौ हैरत से।

उसने मुझको यूँ शर्मसां किया बेहद
पेश आया मुझसे बड़े ही इज्जत से।

लबसे तेरे हय शोख़ गालियाँ जाना
बस रहे हम ता-उम्र सुन ते लज्ज़त से।

बारहाँ पटके है उसी के दर पे सर
बाज आये ना हम खुदाया उल्फ़त से।

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मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी
********************************************

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 6:50pm

आदरणीय कृष्णा भाई , ग़ज़ल अच्छी हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

बस मिसरों मे स्वाभाविक प्रवाह नही लग रहा है , बह्र को किसी तरह निभाने की कोशिश दिख रही है , मेरे ख़्याल से आपको गज़ल को और समय देना चाहिये था , पोस्ट करने  से  पहले । 

बड़े मुद्दत या बड़ी मुद्दत ?  अदाकारां या अदाकारा , ?  शर्मसां  या शर्मसार ,बारहाँ  या बारहा । ज़रा देख लीजियेगा ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 19, 2015 at 12:24pm

अच्छी गजल रचना  के लिए बधाई श्री कृष्ण मिश्रा "जान गोरखपुरी" जी 

Comment by Shyam Narain Verma on March 19, 2015 at 11:19am
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
Comment by maharshi tripathi on March 18, 2015 at 10:24pm

आज कल शामें हैं उदास बेवा सी
याद आये है कोई खूब सिद्दत से।,,,,वाह !! आ. बड़े भाई  krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी ,,खूबसूरत गजल पर ढेरो बधाई आपको |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 8:47pm

सुन्दर  गजल

बधाई हो . स्नेह .

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 8:44pm

 भाई कृष्ण मिश्रा जी,

बारहाँ पटके है उसी के दर पे सर
बाज आये ना हम खुदाया उल्फ़त से।...बहुत बढ़िया , हार्दिक बधाई !

Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 8:27pm

आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी,

दिल को छू गई .बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 18, 2015 at 8:11pm
उसने मुझको यूँ शर्मसां किया बेहद
पेश आया मुझसे बड़ी ही इज्जत से।
बहुत सुन्दर , आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी, बधाई, सादर।
Comment by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 6:25pm

वाह वाह .. सुन्दर भाव .. मनमोहक रचना हुई 

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