For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बाजरे की बालियाँ...... ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

2122—2122—2122—212

 

खेत की, खलिहान की औ गाँव की ये मस्तियाँ

कितनी  दिलकश हो गई है  बाजरे की बालियाँ

 

वो कहन क्यूं खो गई जो महफिलों को लूट लें

हर बड़ी बकवास  पर  अब बज रही है तालियाँ

 

आप  इतना तो  बताएं  क्या सियासतदार  है?

आपकी  मुस्कान  पे भी आ रही है  मितलियाँ

 

खींच  तानी  से भला  किसको  हुआ  है फायदा

किस तरह बरसे बता गर लड़ पड़ी जब बदलियाँ

 

मंजिले   उसने   बताई  परबतों    के  पार   है

बीच  में  अक्सर लुभाती है   महकती  वादियाँ

 

ख्वाहिशे उनकी भला  क्योंकर  समंदर  हो गई

ताज उनकों चाहिए  औ  ताज पे भी  कलगियाँ

 

ये मशालें बुझ रही  'मिथिलेश' अबके खुद जलो

और अंगारों से फिर उठने दो कातिल बिजलियाँ

 

-------------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------------

Views: 964

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on February 5, 2015 at 2:37pm

आदरणीय मिथिलेश जी, हार्दिक बधाई आपको इस संपूर्ण सुन्दर रचना पर

मंजिले   उसने   बताई  परबतों    के  पार   है

सिम्त  मेरे  दिख  रही  है  वादियाँ ही वादियाँ.....शानदार

ये मशालें बुझ रही  'मिथिलेश' अबके खुद जलो

और अंगारों से फिर उठने दो कातिल बिजलियाँ.......अतुलनीय....आनंद आ गया !

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 12:42pm

ये मशालें बुझ रही  'मिथिलेश' अबके खुद जलो

और अंगारों से फिर उठने दो कातिल बिजलियाँ

आ० भाई  मिथिलेश जी.यूं तो सम्पूर्ण ग़ज़ल प्रभावशाली हुई है फिर भी इस शेर पर विशेष डैड कबूलें . शेष शुभ शुभ ....

Comment by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 11:31am

ये मशालें बुझ रही  'मिथिलेश' अबके खुद जलो

और अंगारों से फिर उठने दो कातिल बिजलियाँ

आदरणीय मिथिलेश जी सुन्दर भावपूर्ण ग़ज़ल हुई है |मक्ते ने दिल को छू लिया है |सादर अभिनन्दन |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 11:23am

वाह!  फिर से एक और सुंदर सादगीपूर्ण गजल पढने को मिली. बहुत-बहुत बधाई आपको, आदरणीय मिथिलेश जी.

Comment by savitamishra on February 5, 2015 at 10:44am

बस पढ़ते ही रहे ऐसा लगा हमें ....खुबसुरत

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 5, 2015 at 10:12am
वो कहन क्यूं खो गई जो महफिलों को लूट लें
हर बड़ी बकवास पर अब बज रही है तालियाँ
यथार्थ चित्रण , बधाई , प्रिय मिथिलेश जी, सादर।
वैसे यह भी है कि ,
साहित्य में भी अब होती है बस मेरी, तेरी , उनकी बात
जब से होने लगी प्रायोजित कार्यक्रमों की बरसात।
Comment by Shyam Narain Verma on February 5, 2015 at 10:03am
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय Richa ji"
11 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय लक्ष्मण जी"
11 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय दिनेश जी "
12 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय संजय शुक्ला जी "
13 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय ज़ैफ़ भाई "
13 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"    शिकस्त-ए-नारवा     ------------------ रिवाज के विरुद्ध काम, शायरी का एक ऐब…"
40 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय Dayaram Methani जी आदाब ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  ग़ज़ल — 212 1222…"
44 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। भाई-चारा का…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी, ऐसा करना मुनासिब होगा। "
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service