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ग़ज़ल :- थक गया मैं

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा

समझा समझा कर हरजाई थक गया मैं
दुनिया फिर भी समझ न पाई थक गया मैं

मेरे घर में पाँव न रक्खा ख़ुशियों ने
बजा बजा कर ये शहनाई थक गया मैं

पूरा करते करते सात सवालों को
कहता है अब हातिम ताई थक गया मैं

जाहिल आक़िल को तस्लीम नहीं करते
करते करते उनसे लड़ाई थक गया मैं

मेरी बुराई करते करते आज तलक
थक न पाई सारी ख़ुदाई थक गया मैं

मैंने सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया
दरवाज़े पर लिख दो भाई थक गया मैं

मिहनत मज़दूरी से पेट नहीं भरता
सहते सहते ये मँहगाई थक गया मैं

देखो मेरा हाथ "समर" के सर पर है
सच कहता हूँ 'सौरभ' भाई थक गया मैं

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 8, 2015 at 10:26am

जाहिल आक़िल को तस्लीम नहीं करते
करते करते उनसे लड़ाई थक गया मैं

मैंने सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया
दरवाज़े पर लिख दो भाई थक गया मैं 

दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय समर भाई.

ग़ज़ल इस दफ़े निखर के क्या आयी है, हर शेर पर मन खुश रहा है. वाकई सद्यः स्नाता की तरह मोह लिया है इसने ! :-))

आदरणीय, मक्ते से निस्सृत मुहब्बतों केलिए दिल से आभारी हूँ.

वैसे, आपसी रूहानी तनाफ़ुर को समझते हुए भी कुछ आलिम सानी में भी तनाफ़ुर देखें..  ;-)

लेकिन रदीफ़ का कमाल तो है न - थक गया मैं ! ...   

हा हा हा...

इस अच्छी ग़ज़ल केलिए दिल से आदाब..

सादर

Comment by shree suneel on September 8, 2015 at 2:36am
आदरणीय समर कबीर सर जी, इस रदीफ़ में बहुत से उम्दा अशआर दिये हैं आपने. एक से बढ़कर एक. हार्दिक बधाइयाँ आपको आदरणीय. सादर.
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 7, 2015 at 11:54pm
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , बधाई , सादर।
Comment by Samar kabeer on September 7, 2015 at 11:17pm
जनाब मनोज जी,मिथिलेश जी,दिनेश जी,सौरभ जी,गिरिराज जी,रवि जी,राहुल जी ,आप सब से अनुरोध है कि मेरी ग़ज़ल पुनः पढ़ें,आप सब की सुख़न नवाज़ी का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 7, 2015 at 3:00pm
क्या बात सर । हर आम आदमी के मन की बात कह दी।वाह वाह वाह
Comment by Ravi Shukla on September 7, 2015 at 3:00pm

आदरणीय समर कबीर साहब । अादाब  बहुत ही उम्‍दा अशआर हुए है । आपकी ग़ज़ल पढ़ कर उन लोगो की बेबसी और मजबूरियों को भी जुबां मिल गई जो कुछ कह नहीं पाये ।अदबी लिहाज से ग़ज़ल के लिये दिली दाद  पेश करके हमें खुशी होगी और शेर शेर दिली दाद हाजिर भी है ले‍‍किन इस ग़ज़ल को पढ कर एक पीड़ा का अहसास भी हो रहा है उसको अभिव्‍यक्‍त करने लिये हमारे पास शब्‍द नहीं है । आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 11:08pm

नहीं आदरणीय समर साहब, ग़ज़ल को डिलीट कत्तई न करें. ये ग़ज़ल दिल की गहराइयों के नितांत अपने-से हुबाबों को शब्द देती हुई-सी है. ऐसी प्रस्तुतियाँ सहज ही नहीं हो जातीं. 

अलबत्ता, उन अश’आर को आप सँवार दें. आप स्वयं सक्षम हैं. 

इस ग़ज़ल पर पुनः दिल से दाद कह रहा हूं. 

सादर

Comment by Samar kabeer on September 6, 2015 at 10:12pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,आपने बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया है,ये ग़ज़ल मात्र 15 मिनिट में कही ,और फ़ौरन ही पोस्ट कर दी ,झल्लाहट,परेशानियाँ,अपनी माज़ूरी का अहसास शिद्दत से हुवा और इस पर विचार भी नहीं कर सका ,इस वक़्त दिल यह चाह रहा है कि इस ग़ज़ल को ही डिलीट कर दूँ,ध्यान दिलाने के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 9:13pm

आदरणीय समर भाई , हमेशा की तरह बहुत सुनदर ग़ज़ल कही है  आपने , दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 4:28pm

आदरणीय समर कबीर साहब, थक गया मैं जैसे रदीफ़ को लेकर ऊब, झल्लाहट और ज़ाती सचबयानी को खूब स्वर मिले हैं. हार्दिक बधाइयाँ. 

आपने निम्नलिखित शेरों में ’न’ का प्रयोग किया है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन्हें और ढंग से निभाना था.

मेरे घर में पाँव रखा न ख़ुशियों ने
बजा बजा कर ये शहनाई थक गया मैं

उपर्युक्त शेर में बलात ’ना’ का उच्चारण हो रहा है,

इस शेर में ’न’ साँचे से बाहर प्रतीत हो रहा है.

मेरे दरवाज़े पर दस्तक कोई न दे

तख़्ती पर ये लिख दो भाई थक गया मैं 

या यह मेरी समझ का दोष है ? बताइयेगा.

सादर

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