For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राहत इन्दौरी साहब की ज़मीन पर एक ग़ज़ल -- दिनेश

2122-1122-1122-22

जिनको परखो, वो दग़ाबाज़ निकलते क्यूँ हैं
वक़्त पड़ने पे सभी लोग बदलते क्यूँ हैं

आज देखा जो उन्हें, हमको समझ में आया
देख कर उनको सितारे भी फिसलते क्यूँ हैं

कारवाँ दिल का लुटा था कभी जिन पर चलकर
जिस्मो-जाँ मेरे उन्हीं राहों पे चलते क्यूँ हैं

दरमियाँ अपने मरासिम जो थे सब टूट चुके
फिर मेरे ख़्वाब तेरी आँखों में पलते क्यूँ हैं

जब सियासत के हर इक रंग से हैं हम वाकिफ
रोज़ सरकारों के जुमलों से बहलते क्यूँ हैं

जबकि हासिल न हुआ कुछ भी हसद से फिर भी
लोग इक दूसरे के नाम से जलते क्यूँ हैं

हमको बादा-ए-जवानी भी चखा ऐ साक़ी
हम भी जानें, इसे सब पी के मचलते क्यूँ हैं

जिस्म की आग बुझा कर भी है जब बेचैनी
गर्मी-ए-शौक़ में दीवाने पिघलते क्यूँ हैं

ग़म-ए-दौराँ है कोई और न ग़म-ए-जानाँ ही
बारहा अश्क मेरी आँखों से ढ़लते क्यूँ हैं
.
दिल में जब रखते हैं उम्मीद-ए-गुहर सागर से
लोग फिर सिर्फ़ किनारों पे टहलते क्यूँ हैं

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 979

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on August 11, 2015 at 10:45am
हौसला अफ़्जाई के लिए तहे दिल से आभारी हूँ आदरणीय गिरिराज सर जी। मैंने मिसरा यूँ बाँधा है।
गर्मी-ए-शौक़ में दीवाने पिघलते क्यूँ हैं
गर २ मि १ ए २ शौ २ // क़ १ में १ दी २ वा २ // ने १ पि १ घल २ ते २ // क्यूँ २ हैं २
सादर।
इजाफत में ए को २ शायद ले सकते हैं अगर पहले वाला अक्षर २ मात्रिक हो तो। जैसे -- बादा ए गुलफाम २२ २ २२१
Halaanki Confirmed nahin Hun sir ji.. Lekin पिछले मुशायरे में मेरा यह मिसरा लाल नहीं हुआ था ...पानी को होंठों से छूकर, बादा-ए-गुलफाम किया।
Comment by दिनेश कुमार on August 11, 2015 at 10:45am
आप की मुहब्बत दिल से क़बूल करता हूँ आदरणीय समर कबीर साहब।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2015 at 10:18am

आदरणीय दिनेश भाई , लाजवाब गज़ल कही है , सभी अश आर काबिले दाद हुये हैं , वाह !!! हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

बस -- इस शेर का सानी मेरे खयाल से बे बहर हो गया है  _

जिस्म की आग बुझा कर भी है जब बेचैनी
गर्मी-ए-शौक़ में दीवाने पिघलते क्यूँ हैं   ----   इजाफत मे  ए की मात्रा 2 लेना सही नही है शायद  पता कीजियेगा ।

Comment by Samar kabeer on August 10, 2015 at 11:45pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,वाह वाह वाह,दिल ख़ुश कर दिया आपने,आप मेरे क़रीब होते तो आपकी बलय्याँ ले लेता ,तसव्वुर में ले रहा हूँ,महसूस कीजियेगा,बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने,तारीफ़ के लिये अल्फ़ाज़ नहीं हैं मेरे पास,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by दिनेश कुमार on August 10, 2015 at 5:54pm
शुक्रिया आदरणीय रवि शुक्ला सर।
Comment by दिनेश कुमार on August 10, 2015 at 5:53pm
शुक्रिया आदरणीय भाई मिथिलेश जी।
Comment by Ravi Shukla on August 10, 2015 at 1:12pm

आरणीय दिनेश जी

बहुत  खूब ग़ज़ल हुई है बधाई स्‍वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 12:16pm

आदरणीय दिनेश भाई जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. मतला से आखिरी शेर तक शानदार जानदार.... शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. ये अशआर तो क़माल के हुए है- 

जब सियासत के हर इक रंग से हैं हम वाकिफ
रोज़ सरकारों के जुमलों से बहलते क्यूँ हैं

जबकि हासिल न हुआ कुछ भी हसद से फिर भी
लोग इक दूसरे के नाम से जलते क्यूँ हैं

वाह वाह ........... सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
18 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service