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ख़ुद ही देखी है किसी को न दिखाई मैंने

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन

ख़ुद ही देखी है किसी को न दिखाई मैंने
तेरी तस्वीर तसव्वुर से बनाई मैंने

ख़ाक पड़ जाएगी कितने ही हसीं चहरों पर
आईने से जो कभी गर्द हटाई मैंने

मुझको पाबंदियाँ ओरों की गवारा ही नहीं
ख़ुद ही अपने लिये ज़ंजीर बनाई मैंने

अपनी ग़ज़लों से संवारूँगा ये बज़्म-ए-हस्ती
उम्र सारी इसी चक्कर में गँवाई मैंने

अर्श हिलता है ,ज़मीं काँपने लगती है,यही
आह-ए-मज़लूम की तासीर बताई मैंने

वो भी बैज़ार नज़र आने लगे अब तो "समर"
छोड़ दी जिनके लिये सारी ख़ुदाई मैंने

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on May 18, 2015 at 11:30pm

आदरणीय  समर  साहब  , कसम  से  मुझे  यह  विधा बहुत  प्यारी  लगती है , और  आप  , मिथिलेश भाई , निलेश जी , शिज्जू  सर , और  खुर्शीद  भाई  इसके  बड़े  जानकार  , सच में मन  करता है  कभी  इस पर  सब  बैठें और  मैं सीख  लूं  !  बहरहाल आपको  इस  रचना  पर  बहुत - बहुत  बधाई  ! सादर  

ख़ुद ही देखी है किसी को न दिखाई मैंने
तेरी तस्वीर तसव्वुर से बनाई मैंने

ख़ाक पड़ जाएगी कितने ही हसीं चहरों पर
आईने से जो कभी गर्द हटाई मैंने

मुझको पाबंदियाँ ओरों की गवारा ही नहीं
ख़ुद ही अपने लिये ज़ंजीर बनाई मैंने


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Comment by मिथिलेश वामनकर on May 18, 2015 at 10:55pm

आदरणीय समर कबीर जी बहुत ही बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है 

शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 18, 2015 at 11:10am

आदरणीय समर भाई , किसी एक दो  शे र की क्या बात , पूरी गज़ल मे आपकी उस्तादी की छाप है , जितनी चाहें आप बधाइयाँ हाज़िर है

आपको हृदय बधाइयाँ ॥

Comment by Shyam Narain Verma on May 18, 2015 at 10:19am
"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को "
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 18, 2015 at 8:13am

वाह वाह ...हर शेर ग़जब ....बधाई 

Comment by दिनेश कुमार on May 17, 2015 at 9:41pm
वाह वाह वाह ..!! क्या ग़ज़ल हुई है सर । ढेरों दाद व मुबारकबाद। उस्तादाना ग़ज़ल।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 17, 2015 at 5:47pm

आहा ...वाह वाह ..क्या ज़िन्दाबाद ग़ज़ल हुई है ..बहुत बहुत बधाई 

Comment by मनोज अहसास on May 17, 2015 at 4:36pm
आदाब सर
बहुत खूबसूरत तस्वीर की बधाई
सादर
Comment by Sushil Sarna on May 17, 2015 at 2:30pm

ख़ुद ही देखी है किसी को न दिखाई मैंने

तेरी तस्वीर तसव्वुर से बनाई मैंने


ख़ाक पड़ जाएगी कितने ही हसीं चहरों पर

आईने से जो कभी गर्द हटाई मैंने


वाह आदरणीय … कायल हो गए आपकी कलमगिरी के … क्या कहें और कैसे कहें आपकी तारीफ़ में … बहरहाल दिली दाद कबूल फरमाएं सर।

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