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चींटियाँ .......'इंतज़ार'

जब तुम गयी हो
तो दिल का भवंरा बेसुध
तेरे दिल के बंद दरवाज़े से
जा टकराया
और गिर पड़ा जमीन पर
होश ना रहा उसको !
जब जागा नींद से
तो बेवफ़ाई की चींटियों ने
था उसे घेरा हुआ
नोच नोच कर खा रहीं थी
मेरे दिल के नादान भंवरे को
घसीटते हुए ले जा रहीं थी
अपनी मांद में
तड़पा था बहुत
कोशिश भी की छुटने की
जालिमों ने मौका न दिया
सोचा.... लोग तो चार कांधों की
आरजू करते हैं
और मुझे चार नहीं
हज़ार कांधे नसीब हुए
और इतना प्यार
कि मरने पर भी
मुझे अपने घर ले गई
देख तेरी बेवफ़ाई की
यूँ जीत कर भी हार हुई.......

*****************************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 4:13pm

यही तो बात है आपकी ''इन्तजार'' सर जी,जो आपकी रचनाये दीवाना बनाये देती है! एक-२ मंजर आँख के सामने जी उठता है,जैसे सच में चीटियाँ नोच रही हो!!लाजव़ाब!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 3:53pm

नई मौलिक और बेहतरीन कल्पना. बात में दम भी है असरदार भी. बधाई इस बेहतरीन रचना पर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 2:19pm

आदरणीय मोहन भाई , बहुत सुन्दर , नई सोच लगी , बधाइयाँ ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 12:12pm

आ० सरना जी

बड़ी ही मौलिक कल्पना है . सुन्दर .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2015 at 11:47am

आ० भाई मोहन जी , भावो  से ओत प्रोत इस रचना के लिए  हार्दिक धन्यवाद l

Comment by somesh kumar on April 2, 2015 at 11:25am

कुतर-कुतर के खाएँगे दिल को चीटियाँ

तेरी मोहब्बत की मिठास का यही सिला होना था |

कल्पना को चीटियों के लोक तक ले जाने और दिल को उनके हवाले करने के लिए मीठी-मीठी बधाई ,अब इन बधाइयों को चीटियों के हवाले मत कीजिएगा |

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2015 at 10:23am
भावो  से ओत प्रोत इस रचना के लिए  हार्दिक धन्यवाद i

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