For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक मैं ही तो गैर था -- डा० विजय शंकर

बाँट दीं खुशियाँ तमाम हमने
कोई दुआएं दे के ले गया
कोई दबाव बना के ले गया
सब अपने ही थे ,कोई गैर नहीं था ||
बाँट दीं खुशियाँ तमाम हमने
कोई आँखें झुका के ले गया
कोई आँखें दिखा के ले गया
सब अपने ही थे कोई गैर नहीं था ||
कोई हंस के मिलता था ,
कोई जल के मिलता था ,
कोई मिल के छलता था ,
कोई छल के मिलता था ,
सब अपने लिए मिलते थे ,
कोई मुझसे नहीं मिलता था ||
लोग , सच कुर्सी पसंद होते हैं
हर मिलने वाला मुझसे नहीं
कुर्सी से मिलता था ||
सब अपने थे कोई गैर नहीं था ||
एक बार भटकता हुआ
कोई गैर आ गया
दो बातें की और दिल पे छा गया ||
उस दिन पता चला मैं क्या था
मेरे पास क्या था
जो मैं बांटता था
सब तो उन्हीं का था ,
सब अपने ही थे , आपस में
एक मैं ही तो उनमें गैर था ॥
तभी तो मेरा नहीं किसी से
कभी भी कोई बैर था ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 730

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2014 at 3:27pm
आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी, रचना की प्रशस्ति के लिए धन्यवाद .
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2014 at 3:25pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद धामी जी, हार्दिक बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद .
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2014 at 11:03am

आदरणीय भाई विजय शंकर जी , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 11:05pm
आदरणीय सविता मिश्रा जी , रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Comment by savitamishra on August 24, 2014 at 10:36pm

सब अपने लिए मिलते थे ,
कोई मुझसे नहीं मिलता था ||...यही सच जानते तो हैं पर इस कमबख्त दिल को भी मना लें तो दुःख हो ही न ......बहुत खुबसुरत रचना भैया ...सादर नमस्ते

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 2:20pm

प्रिय शिज्जु शकूर जी , आपको रचना पसंद आई , बहुत अच्छा लगा , प्रशस्ति एवं बधाई के लिए धन्यवाद।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 2:11pm

आदरणीय मीना पाठक जी , आपको रचना पसंद आई , बहुत अच्छा लगा , बधाई के लिए धन्यवाद।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 2:08pm

प्रिय जीतेन्द्र जी , आपकी टिप्पड़ियाँ सटीक होती हैं , जीवन में बहुत कुछ है , लिखा जा सकता है , बहुत कुछ है जो नहीं लिखा जा सकता है। वास्तव में जीवन है तो एक रंगमंच ही , रोल ख़तम , किस्सा खत्म। फिर भी कुछ है जो बांटना चाहिए।
आपकी बधाई केलिए धन्यवाद।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 24, 2014 at 12:50pm

वाह बहुत खूब सर अच्छी भावाभिव्यक्ति हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Meena Pathak on August 24, 2014 at 12:46pm

कोई हंस के मिलता था ,
कोई जल के मिलता था ,
कोई मिल के छलता था ,
कोई छल के मिलता था ,
सब अपने लिए मिलते थे ,
कोई मुझसे नहीं मिलता था ||..........................बहुत सुन्दर ..सादर बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
9 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service