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"ग़ज़ल "

आज बेमौत मर रहा होगा,
जो सवालों से डर रहा होगा ।

बाग़ की झुरमुटों में हलचल है,
नव युगल प्यार कर रहा होगा ।

अपने होने लगे हैं बेगाने,
कोई तो कान भर रहा होगा ।

खंडहर आज तक सलामत है 
नींव कहती है घर रहा होगा 

गुल छुपाने का फायदा क्या है,
बनके खुशबू बिखर रहा होगा ।

रौशनी हर कदम पे साथ रही,
"दीप" सा हमसफ़र रहा होगा ।

  • संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by विजय मिश्र on February 19, 2013 at 11:59am

'बाग़ '  की जगह ' सरपत ' या  ' ख़र ' ज्यादा जायज लगता है . ग़ज़ल अच्छी बनी है .

"रौशनी हर कदम पे साथ रही,
"दीप" सा हमसफ़र रहा होगा | " --- कहना नहीं होगा कि दीप सा अँधेरे में भी रौशनी दिखानेवाले साथी इस दौर में बमुश्किल  नसीब होते हैं . ताख्लुस भी सही जगह पर है .


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Comment by Saurabh Pandey on February 19, 2013 at 10:32am

//दोनों मिसरैन में वर्तमान काल आ रहा है जो मतले को हल्का कर रहा है//

वीनसजी, रहा होगा  का रदीफ़ अपने आप में विशेष भाव की अभिव्यक्ति का कारण है. यह मिसरे को भविष्य काल की होनी (घटना) को आश्वस्ति के साथ प्रस्तुत कर रहा है.  और, मतले के उला और सानी को एक प्रवाह में यानि एक वाक्य के दो अंश समझ कर पढ़ें तो सानी में एक अंदाज़ है जो रदीफ़ से फिट हुआ बैठा है. यह निरंतरता ही इसे स्वीकार करने का कारण हुई है.

यह अवश्य है कि खंडहर वाले शेर में हुआ  पर झटके लगे थे. लेकिन मुझे इस शेर की कहन बहुत ही ऊँची लगी है. हाँ शिल्प के ख़म को कहना चाहिये था जो बाद की टिप्पणियों के झोंके में उड़ गया.

ध्यानाकर्षण के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और ढेर सारी बधाई.

शुभम् 

Comment by vijay nikore on February 19, 2013 at 9:14am

आदरणीय संदीप जी:

 

अच्छा लिखते हैं।

 

बहुत, बहुत बधाई।

 

विजय निकोर

 

Comment by Vinita Shukla on February 19, 2013 at 9:10am

भावों का सुन्दर संयोजन. बधाई इस भावयुक्त रचना पर.

Comment by वीनस केसरी on February 19, 2013 at 1:28am

एक मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें

पिछले कुछ दिन से न चाहते हुए भी चुप्पे पाठक की भूमिका में हूँ मगर आपकी इस ग़ज़ल ने देर तक रोके रखा और मन प्रसन्न हो गया
संदीप भाई आप तो कमाल ही कर रहे हैं आजकल

बाग़ की झुरमुटों में हलचल है,
नव युगल प्यार कर रहा होगा ।

अपने होने लगे हैं बेगाने,
कोई तो कान भर रहा होगा ।


मकता भी शानदार है

ढेरो ढेर बधाई
..........................................................................
तोमर जी का हार्दिक स्वागत है, उनकी बातों से सीख मिल रही है, वैसे अधिक खुशी होती अगर वो इस मिसरे की ओर ध्यान आकर्षित करवाते ...
// खँडहर वो ही हुआ करता है
//
संदीप जी इस मिसरे पर पुनः गौर कीजिये

और मतले की कहन में हल्का सा दोष है
दोनों मिसरैन में वर्तमान काल आ रहा है जो मतले को हल्का कर रहा है
आपके मतला के मिसरा ए सानी में बात भूतकाल की होनी चाहिए 

शुभकामनाओं सहित


Comment by बृजेश नीरज on February 19, 2013 at 12:05am

अधोलिखित चर्चा के कुछ अंश देखे। मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि रचना अच्छी है। शायद चर्चा में रचना की सुन्दरता रह गयी। लोक संगीत को एक मान्यता के अनुसार शास्त्रीय संगीत के नियमों में कुछ छूट प्राप्त होती है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 18, 2013 at 11:39pm

वैस ईटीओ आज कल विन मात्राओं का लिहाज किये शेर  दोहे चोपाई सब लिखी जा रही हैं... ???

 कहीं यह पंक्ति  वैसे तो आजकल बिना मात्रा का लिहाज किये शेर दोहे चौपाई सब लिखी जा रही हैं  कहना तो नहीं चाह रही ??!

भाई संदीप तोमर जी, जैसा कि पूरा दीख रहा है, आप भिंड के छत्ते में पत्थर नहीं फेंके, बल्कि पूरा हाथ डाल बैठे हैं. अदब दिखाइये.. और अविलंब ओबीओ की ग़ज़ल की कक्षा में नामांकन करवाइये. आगे जानें आप..  जानें आपका काम.. .

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 18, 2013 at 11:38pm

सभी आदरणीय सदस्यों अग्रजों और सम्पादक महोदय जी से निवेदन है की ये विषय अब यहीं समाप्त किया जाये .......आदरणीय तोमर जी आपका आभारी हूँ ..................मैं भी एक मंच पे ऐसा बिना समझे बोले जाने का खामियाजा झेल रहा हूँ के मुझे ग़ज़ल क्या कहलाती है ये पता चल गया क्यूंकि मुझे अपने तर्क सही करने के लिए ग़ज़ल की जानकारी जरुरी हो गयी थी लेकिन सीखने के बाद पता चला मैं गलत था  और उस बात के लिए आज तक शर्मिंदा भी खैर ................मुझे लगता है आपके लिए भी यहाँ बहुत सी संभावनाएं हैं ..........शुभकामनाओं सहित


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 11:10pm

ईटीओ???

Comment by Admin on February 18, 2013 at 10:52pm

बहुत अच्छी जानकारी, आदरणीय संदीप तोमर जी, आप कुछ रदीफ़ काफिया के बारे में भी बता रहे थॆ , और हर शेर की लम्बाई कैसे मापी जाय , कृपया इसके बारे में भी जानकारी दें | 

//वैस ईटीओ आज कल विन मात्राओं का लिहाज किये शेर  दोहे चोपाई सब लिखी जा रही हैं //

ईटीओ क्या होता है ?

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