For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो साल पहले मैं बेरोज़गार था, बेरोज़गार था

फ़िल्म : सी आई डी
तर्ज़    : सौ साल पहले......

दो साल पहले मैं बेरोज़गार था, बेरोज़गार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा

दोस्तों-पड़ोसियों  का कल भी कर्ज़दार था, कल भी कर्ज़दार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा

हर साल कई जोड़ी चप्पल घिस जाती है
पर किरण रौशनी की कोई नज़र न आती है
बूढ़े बाप-माँ के लिए कल भी अन्धकार था, कल भी अन्धकार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा
भूख का शिकार था और ग़म का गीतकार था, ग़म का गीतकार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा

फारम भरते भरते, ये हाथ थक चुके हैं
इस उम्र में ही सर के सब बाल  पक चुके हैं
नौकरी तो मिल जाती पर घूस से लाचार था, घूस से लाचार था,
आज भी हूँ  और कल भी रहूँगा
सिर्फ़ एक नौकरी का कल भी तलबगार था, कल भी तलबगार था,
आज भी हूँ और कल भी रहूँगा

जय हिन्द !
अलबेला खत्री 

Views: 835

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 5:28am

धन्यवाद  उमाशंकर मिश्रा जी......बहुत धन्यवाद

Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 5:21am

जी.....शुक्रिया  रोहित जी...

Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on June 3, 2012 at 12:23am

Atyant hasyasprad rachna.badhai Albela Jee

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 2, 2012 at 7:10pm

बहुत बढिया रचना ...गीत के तर्ज में गाने में बहुत मजा आया

बच्चे हँस हँस लोट पोट हो रहे थे उनको स्कूल में सुनाने के लिए

मजेदार पेरोडी गाना मिल गया  आपको ढेरों बधाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 6:51pm

बहुत बेहतरीन पैरोडी बनी है सर जी मजा आ गया पढ़ कर
बहुत बहुत बधाई आपको साहब

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2012 at 5:35pm

आदरणीय अलबेला जी

 आपको परोडी हेतु बड़ी बड़ी बधाई 

रोते हुए लोगों को हँसने की राह दिखाई 

बेरोजगार रह कर कितनी तकलीफ उठाई 

कर लेते गर शादी रोजगार मिल न जाता 

खाली मूली जीवन की अनमोल घड़ियाँ 

कहीं न कहीं तार  जुड न  जाता 

बाबा को मिलता पोता सास को अदद बहु 

आमिर का सत्य मेव जयते एकता का सिरिअल 

माथे पर गहरा पसीना एक साथ आता 

आगे फिर कभी. जाइयेगा नहीं 

ब्रेक के बाद 

Comment by Albela Khatri on June 2, 2012 at 12:01pm

पैरोडी को साहित्यकारों  द्वारा बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है  परन्तु मैंने महसूस किया कि ये भी तो एक विधा ही है  कविता की....अगर आपके पास  सोच उम्दा है और शब्द सामर्थ्य के साथ साथ  गायन का शौक है  तो  पैरोडी में भी  कविता वाली बात लाई जा सकती है .

भाई अरुण श्रीवास्तव जी,  मैं प्रयास  करूँगा कि इस मंच पर  इस विधा को स्थापित करने में अपना पूरा योगदान दूँ............सराहना के लिए शुक्रिया

सादर

Comment by Arun Sri on June 2, 2012 at 11:49am

बढ़िया पैरोडी सर जी ! आपके आने से ओ ब ओ मंच इस क्षेत्र में भी समृद्ध हुआ !

Comment by Albela Khatri on June 2, 2012 at 10:44am

khoob pakda  Rajesh Kumari ji...........bada hi tez chainal  hai  aaj tak...ha ha ha


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 2, 2012 at 10:30am

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को हंसी में उडाता चला गया ह ना !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
10 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service