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अमीरों की बैसाखी (लघुकथा)

" तुम्हारे नम्बर तो मुझसे कम आये थे ना ! फिर ये एडमिशन .... ? "

" रहने दो अब ये सब पूछना - पूछाना ,लो पहले मिठाई खाओ , आखिर तुम्हारा जिगरी दोस्त तो डाक्टर बन रहा है ना ! "

" मतलब ? "

" अरे नहीं समझे अब तक क्या ! वही पुरानी शिक्षा नीति की घटिया चालबाज़ी , डोनेशन ! और क्या ! "

" लेकिन तुम तो कहते थे डोनेशन देकर नहीं पढोगे । अपने कोशिशों की नैया पर सवार रहोगे ! सो , उसका क्या ? "

" कोशिशों की नैया ! हा हा हा हा ....वो सब स्कूली बातें थी । "

" स्कूली बातें ! हाँ , सही कह  रहे हो यार , गरीबों के शरीर पर कोढ़ बन चिपका ये डोनेशन ! अमीरों की बैसाखी ही है उनको विद्वान और प्रतिष्ठित बनाने की । "



मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 5, 2015 at 3:53pm
वन्दनीय कांता जी
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 5, 2015 at 3:52pm
बहुत बहुत बधाई वन्दनीय कांटा जी एक कटु सत्य पर प्रभावी प्रहार करने के लिए।
Comment by kanta roy on October 5, 2015 at 3:48pm

डोनेशन , आरक्षण हमारे दर्श के लिए धीरे धीरे अभिशाप बनता जा रहा है। अब वक़्त आ गया है की इस पर राजनीति गलियारों पर सार्थक चर्चा की जाए।  गुणवत्ता का पलायन देश से शुरू हो चूका है और आने वाले दिनों में परिस्थितियां बरी ही भयंकर होने वाली है।  आभार आपको आदरणीया  प्रतिभा जी की  आपने कथा के मर्म को महसूस किया है  . 

Comment by kanta roy on October 5, 2015 at 3:43pm

आभार मेरा हौसलावर्धन  के लिए आदरणीय डा. आशुतोष मिश्रा जी 

Comment by kanta roy on October 5, 2015 at 3:42pm

आभार आपको कथा पसंदगी के लिए आदरणीय  शहज़ाद   जी।  

Comment by pratibha pande on October 3, 2015 at 6:35pm

 बच्चों और युवाओं में बढ़ रहे  गुस्से की वजह आरक्षण के साथ साथ एक ये भी है , अच्छा विषय उठाया है आपने आदरणीया ,बधाई आपको इस प्रस्तुति पर  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 3, 2015 at 10:34am

आदरणीया इस सार्थक लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2015 at 9:14pm
डोनेशन की प्रवृत्ति या विकृति ?
बहुत समसामयिक,सार्थक, व सटीक रचना आदरणीया कान्ता राय जी।

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