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हिसाब ना माँगा कभी 

अपने गम का उनसे 

पर हर बात का मेरी वो 

मुझसे हिसाब माँगते रहे ।

जिन्दगी की उलझनें थीं 

पता नही कम थी या ज्यादा 

लिखती रही मैं उन्हें और वो 

मुझसे किताब माँगते रहे ।

 

काश ऐसा होता जो कभी 

बीता लम्हा लौट के आता 

मैं उनकी चाहत और वो 

मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।

 

कुछ सवाल अधूरे  रह गये 

जो मिल ना सके कभी 

मैंने आज भी ढूंढे और वो 

मुझसे जवाब माँगते रहे ।

- दीप्ति शर्मा

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Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:19pm

आदरणीय आशीष  जी  आपको रचना पसंद आयी बहुत आभारी  हूँ ।

Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:19pm

आदरणीय अशोक कुमार  जी  आपको रचना पसंद आयी बहुत आभारी  हूँ ।

Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:18pm

आदरणीय संजय मिश्रा  जी  आपको रचना पसंद आयी बहुत आभारी  हूँ ।

Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:17pm

आदरणीय  अम्बरीश  जी  आपको रचना पसंद आयी बहुत आभारी  हूँ । यूँ ही मार्गदर्शन करते रहे शुक्रिया

Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:16pm

आदरणीय  लक्ष्मण  जी  आपको रचना पसंद आयी बहुत आभारी  हूँ । यूँ ही मार्गदर्शन करते रहे शुक्रिया

Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:15pm

आदरणीय अलबेला खत्री जी  आपको रचना पसंद आयी बहुत आभारी  हूँ । यूँ ही मार्गदर्शन करते रहे शुक्रिया

Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:14pm

आदरणीय सौरभ  जी आपको रचना पसंद आयी बहुत आभारी  हूँ । यूँ ही मार्गदर्शन करते रहे शुक्रिया

Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:12pm

आदरणीया डॉ प्राची  जी आपको रचना पसंद आयी बहुत आभारी  हूँ ।

Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:12pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपको रचना पसंद आयी बहुत आभारी  हूँ ।

Comment by आशीष यादव on July 26, 2012 at 10:27pm

वाह दीप्ति जी, इक आह भी है छिपी है कविता मे इक उलाहना भी लगता है।
बढ़िया रचना पर बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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