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आशीष यादव's Blog – August 2011 Archive (2)

चुड़ैल

 

            मै पश्चिम वाली कोठरी में आलमारी पर पड़े सामानों को इधर-उधर कर के देख रहा था| तभी मेरी नज़र एक निमंत्रण कार्ड पर पड़ी| कार्ड के ऊपर देखने पर पता चला की वो निमंत्रण भैया के नाम से था, प्रेषक वाली जगह के नाम से मै अनजान था| कौतुहल वश मैंने बड़ी आसानी से अन्दर के पत्र को निकाल कर देखा, अगले दिन बारात आने वाली थी| दर्शनाभिलाषी में पढने पर ज्ञात हुआ की वह निमंत्रण भैया के एक मित्र के बहन की शादी का था| मै और भैया एक ही स्कूल में पढ़े थे और उनके लगभग सारे मित्र मुझे भी…

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Added by आशीष यादव on August 10, 2011 at 10:00am — 11 Comments

क्यों तू ही मन को भाये...

और बहुत कुछ जग में  सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|

आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||



जी करता है, पिघल मै जाऊं, तेरे साँसों  की गरमी में|

अजब सुकून मुझे मिलता है तेरे हाथों की नरमी से||

मै तुझमे मिल  जाऊं ऐसे, कोई भी मुझको ढूंढ़ न पाए|

आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए|

और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|



जब-जब गिरती नभ से बूँदें  , मै पूरा  जल जल जाता हूँ|

जी करता है भष्म  हो जाऊं, पर तुमको…

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Added by आशीष यादव on August 3, 2011 at 6:30pm — 18 Comments

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