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Sheikh Shahzad Usmani's Blog – September 2018 Archive (14)

"घटना दुखद है, घुटना ही सुखद है!" - (छंदमुक्त, अतुकान्त कविता)

तुरपाई हो नहीं सकती, भरपाई हो नहीं सकती

कपड़े फट सकते हैं, चिथड़े उड़ सकते हैं

सुनवाई होती है, कार्यवाही सदैव हो नहीं सकती

घटना दुखद है, अफ़सोस, घुटना ही सुखद है!



मुुुलाक़ात, मीडियापा, राजनीति, बदज़ुबानी हो सकती है,

अपहरण, लिंचिंग, जुतयाई, जगहंसाई हो सकती है,

निवारण, निराकरण तो क्या एफआईआर ही हो नहीं सकती,

घटना दुखद है, अफ़सोस, घुटना ही सुखद है!



टूटना-फूटना, लुटना-लूटना, रोना-रुलाना, चीखना-चिल्लाना,

सब फ़िल्मी शूटिंग सी अदायगी हो सकती है,…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2018 at 10:00am — 4 Comments

आगे की सोच (लघुकथा)

"अच्छा, तो आपको केवल 'केमिस्ट्री' में इंट्रेस्ट है, 'कैमरों' की 'मिस्ट्री' में नहीं!"

"जी, मैं उनकी 'हिस्ट्री' अच्छी तरह पढ़ और सुन चुकी हूं! मुझे ग्लैमर की वैसी दुनिया पसंद नहीं!"

"अच्छा, तो यह बताओ कि तुम्हारी अपनी 'केमिस्ट्री' किस तरह के लोगों से मेल खा पाती है?"

"सर, आप ये कैसे सवाल कर रहे हैं! ये इंटरव्यू है या इनर-विउ?"

"तो आप अपनी ख़ूबसूरती पर मेरे रिव्यूज़ समझ ही गईं! मतलब हमारे बीच 'केमिस्ट्री' जमने की गुंजाइश है!"

"जी नहीं, समझ तो मैं गई हूं आपकी मशहूर करिअर…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2018 at 5:04am — 3 Comments

'नारियल-पानी' (लघुकथा)

"दुनिया भर में हमारा नाम हो रहा है! लोग हमारी बहुआयामी तरक़्क़ी की बात कर हमसे अपनी तरक़्क़ी साझा करने के लिये लालायित हैं! हम सब कुछ बदल कर एक नये विकसित देश का निर्माण करने जा रहे हैं!"



"ये कैसा देश है रे, जो इतने आत्मविश्वास से यूं गर्वोक्तियां कर रहा है!" एक और नन्हें से महत्वाकांक्षी विकासशील देश ने एक बड़े विकसित देश से कहा।



"आजकल मेरे साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रहा है! ज़रा देखो तो, कितना डिवेलप हो रहा है मेरे ही कर्ज़ से, मेरी ही तकनीकों से और मेरी ही…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 28, 2018 at 6:00am — 3 Comments

'नज़रिये के ज़रिये' (लघुकथा)

पंडित जी और मुल्ला जी दोनों शाम के वक़्त शहर के सर्वसुविधायुक्त पार्क में चहलक़दमी और कुछ योगाभ्यास करने के बाद पीपल के नीचे चबूतरे पर मूंगफली-दाने चबाते हुए स्मार्ट फोन पर एक-दूसरे को आज की न्यूज़ हाइलाइट्स सुना कर उनसे मुताल्लिक बातचीत करने लगे :



"जब मच्छर, चूहे, नेवले, सांप आदि अपने-अपने ज़रूरी काम से हमारे घरों में घुसते हैं, तो हम परेशान होकर उन पर प्राण-घातक कार्यवाही कर डालते हैं, तो मुल्ला जी हमारे ये वैज्ञानिक दूसरों के घरों में मशीनें-रोबोट आदि भेज कर वहां के दृश्य या…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 25, 2018 at 6:28am — 9 Comments

"कशमकश से यकबयक" (लघुकथा)

नववर्ष के रात्रिकालीन जश्न में मनमाफ़िक़ सेवन करने के साथ ही 'गरमा-गरम मंच' से मुख़ातिब हुए वे दोनों डकार मारते हुए आपस में चर्चा करने लगे :

"वाह.. नशा छा रहा है... मज़ा आ रहा है... !"

"कबाब उड़ाने के बाद तुझे तो शबाब से सराबोर इस नृत्य में भी 'जन्नत' ही नज़र आ रही होगी न!"

"तू तो कलमकार है! शराब के नशे में भी तुझे तो इस 'नंगी' सी नर्तकी में नंगी हो रही 'इंसानियत', 'हैवानियत' या 'तहज़ीब' के "बिम्ब" नज़र आ रहे होंगे या 'डिम्ब'! मुझे तो जिम में तराशे गये हर 'लिम्ब' की हर हरक़त में…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 19, 2018 at 6:30pm — 5 Comments

"शैतानियत और कलम" (लघुकथा)

"नहीं, मुझे न तो फोटो लेने चाहिए और न ही वीडियो क्लिप बनाने की कोशिश!" यह सोचकर उसने अपना स्मार्ट फोन वापस जेब में रखा और सड़क पर मौत से लड़ती युवती को घेरे भीड़ को चीरता आगे निकल गया।



"किसी अपराध को होते देख लो, या पीड़ित को तड़पते देखो, तो चुप्पी साधकर ऐसे बन जाओ, जैसे कि कुछ देखा ही नहीं!" परिवार व दफ़्तर के सहकर्मियों और पुलिस-कोर्ट से दो-चार हो चुके तज़ुर्बेकार दोस्तों की हिदायतें याद आ रहीं थीं उसको!



थोड़ा आगे चलने पर उसे उसके पिताजी मिल गये। पूरी घटना उसने पिताजी को…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 16, 2018 at 10:30pm — 9 Comments

'सेटिंग' या 'अवलम्बन' (लघुकथा)

"नेताजी, आज मुश्किल से तुम टाइम निकाल कर हमें इस पार्क में लाये हो, कुछ तो अच्छी बातें करो यहां, देश-दुनिया की छोड़ कर!" कमली ने अपने पति के कंधे पर सिर टिका कर कहा।

"पहले तो तुम यहां हमें 'नेताजी' के बजाय कुछ और कहो! ... उकता गया इस संबोधन और उबाऊ भाषणों से!"

"तो तुम पहले अपना नाम बदल लो, सब जगह के नाम तो बदले जा रहे हैं न! सहेलियों में 'रामनारायण' बताने में शरम सी आती है अब!"

"अब इस उमर में अपना नाम कैसे बदलें पगली!"

"बेटों के तो बदल गये विदेश में! बड़े को 'रामलाल' के बजाए…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 16, 2018 at 4:39am — 9 Comments

'सत्य अब तक!' (लघुकथा)

"ओये! .. अबकी बारी, मंदिर-मस्जिदों पे भारी!"


"नईं बे! चुनावी पारी की भेंटें 'वारि' ... ! वोटों की यारी, तैयारी जारी!"


"हां .. हां .. तुष्टिकरण जब तक, मज़हबी अतिक्रमण तब तक!"


"नईं बे! सियासी अतिक्रमण जब तक, वोट-बैंक तब तक! ... सियासत तब तक!"


"हां .. हां .. ऐसी 'ख़ुदग़र्ज़' सियासत जब तक, हमारी 'आफ़तें' तब तक!"


"नईं बे! 'ऐसी' जनता जब तक, 'ऐसी' सियासत तब तक और 'ऐसा' जनतंत्र तब तक!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 14, 2018 at 7:00pm — 7 Comments

"फ़ितरतें और गुफ़्तगू, बस!" - (लघुकथा)

दाढ़ी-मूंछधारी दोनों दोस्त, मौलवी अब्दुर्रहमान साहिब और पंडित रामनारायण जी रोज़ाना की तरह अलसुबह की चहलक़दमी कर हंसी-मज़ाक सा करते हुए अपने घरों की ओर वापस लौट रहे थे। तभी विपरीत दिशा से दिखाई दिये दिलचस्प नज़ारे पर परंपरागत संबोधन के साथ टिप्पणी करते हुए पंडित जी ने कहा - "मुल्ला जी! वो देखो तुम्हारी पड़ोसन बुरका पहन कर अपने बच्चे को श्रीकृष्ण जी की फ़ैन्सी पोशाक में स्कूल छोड़ने अकेले जा रही है पैदल!"



"उसका नहीं, उसकी पड़ोसन शर्मा मैडम का बेटा होगा पंडित जी!"



"नहीं, उसी का…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 7, 2018 at 11:41pm — 5 Comments

'डंके' की 'चोट' पर (लघुकथा)

"हमने कहा था न कि थक जाने पर तलब होने पर वह आयेगा ही! हमें रेस्क्यू की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए!"



"हां, ग़रीब हो या अमीर, पर है  तो चाय का आदी ही! यह चाय फेंकेगा नहीं! 'मनी माइंडिड' होगा, तो यह पियेगा और पिलायेगा!" चाय के डंके में दो-तीन घंटों से पड़ी शेष चाय में गोते लगाते एक चीटे ने डंके की दीवारों पर चढ़ते, गिरते-डूबते हुए उस चीटे की बात सुनकर कहा। चाय में डूबे और डंके में भटकते संघर्षरत चींटे भी बड़ी उम्मीद के साथ सजग हो जीवन-रक्षा की कल्पना करने लगे।



"ज़रा फुर्ती…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 7, 2018 at 5:00am — 7 Comments

नॉर्थ, ईस्ट-वेस्ट और 'साउथ' (लघुकथा)

दिन- रविवार। शाम का समय। आसमान में छाये काले बादल। कभी हल्की, कभी तेज़ बरसात। आलीशान बंगले के एक अध्ययन-कक्ष में टेबल पर ग्लोब, एटलस, लैपटॉप, प्रिंटर, कुछ पुस्तकें और स्टेशनरी। कुर्सियों पर क्रमशः बारहवीं कक्षा के मित्र सहपाठी। पहला, कसी हुई जीन्स पहने, कसी हुई स्लीवलैस टी-शर्ट से हृष्ट-पुष्टता दर्शाता स्टाइलिश और दूसरी अत्याधुनिक शॉर्ट्स पहने जवानी की दहलीज़ के सौंदर्य को उभारती चंचल बातूनी सहेली, जिसकी 'मॉम' बड़ी प्रसन्न हैं अपनी बिटिया को स्कूल-प्रोजेक्ट-वर्क हेतु उसके प्रिय मित्र के साथ…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 3, 2018 at 11:12am — 3 Comments

'भ्रूण-हत्या' - (लघुकथा)

डियर डायरी,

आज दिल बहुत अधिक व्यथित है। क्यों न आज अपनी भड़ास को यहीं शाब्दिक कर दूं! माता-पिता, पालक-परिवारजन, रिश्तेदार, शिक्षक, विद्यालय परिवार ही नहीं, ... नियोक्ता, सहकर्मी, अफ़सर, राजनेता और मंत्रियों से लेकर देशभक्त कहलाने का दंभ भरते औपचारिकतायें करते तथाकथित लगभग सभी नागरिक-सेवक मुझे कहीं न कहीं, कभी न कभी अपराधी, हत्यारे से सिद्ध होते प्रतीत होते हैं। आसमान छूने की चाहत रखने वालों के 'भ्रूण' रूपी सपनों, कौशल-प्रतिभाओं, स्ट्रेटजीज़, रणनीतियों को समझने-परखने के बजाय, सार्थक…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 2, 2018 at 6:30pm — 4 Comments

'इक दिन बिक जायेगा' (लघुकथा)

"अब तो सुधर जाओ! कुछ ही साल बचे हैं रिटायर होने में! औलाद के लिए कुछ तो ऊपरी कमाई कर लो, इंजीनियर साहब!"



"ठेकेदारी में तुम्हें जो करना है, करते रहो! मैं ह़राम की कमाई में यकीं नहीं रखता! जवान पढ़ी-लिखी औलाद अपने पैरों पर ख़ुद खड़ी हो ले या तुम लोगों माफ़िक अपना ईमान बेचकर 'होड़ और झूठ' की दुनिया में दाख़िल हो कर अपना स्टेटस बनाये-दिखाये; ये उनके ज़मीर पर है! मेहरबानी कर ये लिफ़ाफ़े आप ही आपस में बांट लें!"



".. तो पिछली बार की तरह एक लिफ़ाफ़ा बड़े साहब को ... और बाक़ी हमारे ही…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 1, 2018 at 11:55pm — 3 Comments

"अद्भुत तंत्र की अद्भुत घुट्टी" (लघुकथा)

"... और अब बंदरों से निबटने का फार्मूला भी सुन लो! बंदरों से बचना है, तो उनकी आरती करो! चालीसे गाओ, गव्वाओ!"- एक जंगली 'बंदर' को गोद में बिठाले धार्मिक वस्त्रधारी चर्चित नेताजी ने राष्ट्र के युवाओं को संबोधित करते हुए कहा, तो महाविद्यालय के उस सभागार में कुछ श्रोता युवक आपस में खुसुर-पुसुर करने लगे।



"धर्म के सदियों पुराने पिंजरों में क़ैद रह कर 'विज्ञान और तकनीकी तरक़्क़ी' के गीत गाओ!" एक नवयुवक ने कहा।



"अरे नहीं यार! अपने-अपने धर्म की 'बंदर-घुट्टी' पी-पी कर जोगी-भोगी…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 1, 2018 at 7:52pm — 3 Comments

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