For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (801)

अंत के गर्भ में .....

अंत के गर्भ में .....

मैं
व्यस्त रही
अपने बिम्बों में
तुम्हारे बिम्ब को
तलाशते हुए

तुम
व्यस्त रहे
अपने
स्वप्न बिम्बों को
तराशने में

हम
व्यस्त रहे
इक दूसरे में
इक दुसरे को
ढूंढने में

पर
वक्त ने
वक्त न दिया
हम
ढूंढते ही रह गए
आरम्भ को
अंत के गर्भ में

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 2, 2016 at 10:11pm — 2 Comments

इक दिया ....

इक दिया ....

थे कुछ दिए

तेरे नाम के 
जो बुझ के भी
जलते रहे

थे कुछ दिए
मेरे नाम के भी
जो जले
मगर
बे नूर से

बस इक दिया
देर तक
जलता रहा
जो था
हमारे
अबोले

प्यार का

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 29, 2016 at 4:22pm — 8 Comments

नफरत न करना ..

नफरत न करना ..

प्यार

कितनी पावन

अनुभूति है

ये

पात्रानुसार

स्वयं को

हर रिश्ते

के चरित्र में

अपनी पावनता के साथ

ढाल लेता है

ये

आदि है

अनंत है

ये जीवन का

पावन बसंत है

प्यार

तर्क वितरक से

परे है

प्यार तो

हर किसी से

बेख़ौफ़

किया जा सकता है

मगर

नफ़रत !

ये प्यार सी

पावन नहीं होती

ये वो अगन है

जो ख़ुद…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 8:30pm — 4 Comments

उपहार.....

उपहार.....

मौसम बदलेगा
तो
कुछ तो नया होगा

गुलों के झुरमट में
मैं तुम्हें
छुप छुप के
निहारता होऊंगा

तुम भी होगी
कहीं
प्रकृति के शृंगार की
अप्रतिम नयी कोपल में
छिपी यौवन की
नयी आभा सी

क्या
दृष्टिभाव की
ये अनुभूति
बदले मौसम का
उपहार न होगी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 1:21pm — 8 Comments

कल का जंगल ......

कल  का  जंगल  ...

खामोश चेहरा

जाने

कितने तूफ़ानों की

हलचल

अपने ज़हन में समेटे है

दिल के निहां खाने में

आज भी

एक अजब सा

कोलाहल है

एक अरसा हो गया

इस सभ्य मानव को

जंगल छोड़े

फिर भी

उसके मन की

गहन कंदराओं में

एक जंगल

आज भी जीवित है

जीवन जीता है

मगर

कल ,आज और कल के

टुकड़ों में

एक बिखरी

इंसानी फितरत के साथ

मूक जंगल का

वहशीपन…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 25, 2016 at 3:04pm — 8 Comments

माँ ...

माँ ...

दर्द का
मंथन हुआ तो
एक सागर
बूँद बन
लहद पर
ऐसा गिरा
कि
गर्म लावे से पिघल

माँ
लहद से बाहर
आ गयी
ले के दर्द बेटे का
फिर
लहद में
समा गयी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 19, 2016 at 1:00pm — 4 Comments

लम्हा ...

लम्हा ...

ख़ामोश था
मैं जब तलक
हर तरफ़
इक शोर था

खोली जुबाँ
जो मैंने ज़रा
तो
हर शोर
ख़ामोश हो गया

इक लम्हा
ज़लज़ले में सो गया
इक लम्हा
ज़लज़ला हो गया

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 18, 2016 at 1:44pm — 4 Comments

अनबोले लम्स ....

अनबोले लम्स ....

आज मेरे

दिल के आईने में

मुझे

तुम नज़र आये थे

तन्हाई थी

मैं थी

और

तुम थे

अपने लम्स के साथ

मेरे ज़िस्म पर

बे-आवाज़

हौले हौले

रेंगते हुए

मेरी

हर

न को

तुम कुचलते रहे

खामोशियाँ

सरगोशियां करती रहीं

लौ भी

कहीं तारीक में

खो गयी

बस

शेष रही

मैं

और

मेरे ज़िस्म के

हर मोड़ पर

तुम्हारे…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 17, 2016 at 7:51pm — 2 Comments

हार ...

हार ...

ये इश्क-ओ-मुहब्बत के
बड़े अज़ब नज़ारे हैं
उनके दिए दर्दों से
हमने
तन्हा लम्हे सँवारे हैं
लोग
डरते होंगे ज़ख्मों से
मगर
सच कहते हैं
ये ज़ख्म
हमें बहुत प्यारे हैं
रिस्ते ज़ख्मों की
हर टीस पे
हमने सनम पुकारे हैं
अंगार बन के उठती हैं
यादें उनकी
तन्हाई में
कैसे बताएं ज़माने को
हम क्या जीते
क्या हारे हैं

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 12, 2016 at 1:13pm — 6 Comments

विष - एक क्षणिका

विष  - एक क्षणिका :

मानव
तुम तो
सभ्य हो
फिर
विषधर का विष
कहां से
पाया तुमने
क्या
सभ्य वेश में
विषधर भी
रहने लगे

सुशील सरना

मौलिक एवम अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on October 10, 2016 at 8:59pm — 8 Comments

प्रेमाभिव्यक्ति ......

प्रेमाभिव्यक्ति ......

प्रेम आस है

प्रेम श्वास है

प्रेम जीवन की अमिट प्यास है

प्रेम आदि है

प्रेम अन्त है

प्रेम जीवन का अमिट बसंत है

प्रेम चुभन है

प्रेम लग्न है

प्रेम जीवन की अमिट अगन है

प्रेम चंदन है

प्रेम बंधन है

प्रेम जीवन की अमिट गुंजन है

प्रेम रीत है

प्रेम जीत है

प्रेम जीवन की अमिट प्रीत है

प्रेम नीर है

प्रेम पीर है

प्रेम जीवन की प्रेम हीर…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 7, 2016 at 1:15pm — 2 Comments

वादा .....

वादा .....

मेरे ग़मगुसार ने

इक वादा किया था

कि वो हर लम्हा

मेरा ज़िस्म होगा

मेरा हर ग़म

उस पे आशकार होगा

फ़ना की तारीक वादियों में भी

वो मेरे साथ होगा

क्या सच में उसने

इस जहां से

उस जहां तक

साथ निभाने का

वादा किया था

लम्हा दर लम्हा

दूरी का अज़ाब बढ़ता गया

अकेलेपन की शाखाओं पे

यादों का शबाब

बढ़ता गया



साये गुफ़्तगू करने लगे

मेरी अफ़सुर्दा निगाहें

जाने ख़ला में…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 6, 2016 at 2:02pm — 10 Comments

खामोश मौसम ....

खामोश मौसम ....

अपनी ही आवाज़ों के साथ

बैसाखियाँ

आग में जलने लगी

समय

और सुईयों की रफ़्तार

अपनी बेख़ौफ़ चाल के साथ

ज़िन्दा होने का

सबूत देती रही

जज़्बात

हड्डियों की बैसाखियों पर

खामोशियों के लिबास पहने

खुद को ढोते रहे

एक बैसाखी दिल की

किसी शरर की उम्मीद में

तारीकियों से लिपटी

पल पल जलती हुई

ज़ख्मों की तलाशी लेती रही

जलते हुए ख़्वाब

शायद अपनी बैसाखियाँ…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 8:54pm — 14 Comments

ख़्वाबों की लहद ....

ख़्वाबों की लहद ....

ये आंखें

न जाने कितने चेहरे

हर पल जीती हैं

हर चेहरे के

हज़ारों ग़म पीती हैं

मुस्कुराती हैं तो

ख़बर नहीं होती

मगर बरस कर

ये सफर को अंजाम

दे जाती हैं

ज़हन की मिट्टी को

किसी दर्द का

पैग़ाम दे जाती हैं

मेरी तन्हाईयों को

नापते -नापते

न जाने कितने आफ़ताब लौट गए

मेरी तारीकियों में

हर शरर ने

अपना वज़ूद खोया है

हर लम्हा

किसी न किसी लम्हे के लिए

वक्त की चौखट से…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 30, 2016 at 3:24pm — 14 Comments

पुरानी किताबें ....

पुरानी किताबें ........

पुरानी किताबें

कुछ भी तो नहीं

सिवाय पुरानी कब्रों के

जिनमें दफ़्न हैं

चंद सूखे गुलाब

कुछ सिसकते हुए

मुहब्बत के ख़ुश्क से हर्फ़

कुछ पुराने पीले

टुकड़े टुकड़े से

अधूरे प्रेम के

प्रेम पत्र

पुरानी किताबें

जिनमें सो गयी

जीने की आस लिए

कई आकांक्षाएं

घुटी हुई सांसें

मोटी सी ज़िल्द की

अलमारी में

कैदियों से जीते

मौन कई अफ़साने

जंज़ीरों में…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 28, 2016 at 3:00pm — 12 Comments

एक तन .... (क्षणिकाएं) ...

1. एक तन .... (क्षणिकाएं) ...

लड़ते-लड़ते

धरा की गोद में

लहुलुहान

कोई सो गया

तिरंगे में

लिपटा हुआ

फिर एक तन

एक वतन

हो गया

... ... ... ... ... ... ... ... ...

2. शेष ....



गोली

बारूद

धमाके

लाशें

चीखें

धुऐं की गर्द

बस

हदों के झगड़ों का

यही था

शेष

... ... ... ... ... ... ... ... ... ...

3. हल ....



लिपट गया

तिरंगे में

भारत माँ का

एक लाल…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2016 at 8:21pm — 2 Comments

बहुत याद आऊंगा ....

बहुत याद आऊंगा ....

रोज की तरह

आज भी भानु रश्मियों ने

एक नये जोश के साथ

धरती पर अपने

पाँव पसारे

चिडियों की चहचहाट ने

वातावरण को अपनी मधुर ध्वनि से

अलंकृत कर दिया

साइकिल की घंटी बजाता दूधवाला

घर घर दूध की आवाज देने लगा

सड़क पर सफाई वालों ने भी

अपना मोर्चा सम्भाल लिया

ये सारा नजारा

मैं अपनी युवा काल से

आज तक

इसी तरह देखता हूँ

आज मैं

अपने बदन पर

चंद पतियों के साथ

सड़क के…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2016 at 3:16pm — 2 Comments

कमलनयनी ब्रांड .... ...

कमलनयनी ब्रांड .... ...

अरे!

ये क्या हुआ

कल ही तो वर्कशाप में

ठीक करवाया था

टेस्ट ड्राईव भी

करवाई थी

कार्य प्रणाली

बिलकुल ठीक पाई थी

माना

टक्कर बहुत भारी थी

दिल के

कई टुकड़े हो गए थे

पर वर्कशाप में

कमलनयनी ब्रांड के

नयनों के फैविकोल से

टूटे दिल के टुकड़े

अच्छी तरह चिपकाए थे

उसकी मधुर मुस्कान ने

ओके किया था

दिल फिर अपने

मूल रूप में

धड़कने लगा था

गज़ब

ठीक होते ही

वर्कशाप के मेकैनिक…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 20, 2016 at 1:30pm — 6 Comments

सिंदूरी हो गयी ... (क्षणिकाएं )....

सिंदूरी हो गयी ... (क्षणिकाएं )....

१.

ठहर जाती है

ज़िदंगी

जब

लंबी हो जाती है

अपने से

अपनी

परछाईं

...... .... .... .... ....

२.

एक सिंदूर

क्या रूठा

ज़िन्दगी

बेनूरी हो गयी

इक नज़र

क्या बन्द हुई

हर नज़र

सिंदूरी हो गयी

..... ..... ..... ..... ..... ....

३.

ज़ख्म

भर जाते हैं

समय के साथ

शेष

रह जाते हैं

अवशेष

घरौंदों में

स्मृतियों के

इक अनबोली

टीस के…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 15, 2016 at 3:55pm — 2 Comments

ढलक गया .... (क्षणिकाएं )

ढलक गया .... (क्षणिकाएं )

१.

बंद था

एक लम्हा

पलकों की मुट्ठी में

सह न सका

दस्तक

याद की

और

ढलक गया

हौले से

.... ... ... ... ... ...

२.

था

एक ख़्वाब

जो

हकीकत से पहले

जाने कब

हकीकत में

ख्वाब हो गया

.... .... .... .... .... ....

३.

वो

ज़िदंगी का

बीता कल था

जिया मरके

जिसमें

वो सुहाना पल था

वो पल

सुख का

रूह से 

बतियाता रहा

मारने के बाद…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 13, 2016 at 4:39pm — 12 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
Thursday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service