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Dr. Vijai Shanker's Blog (202)

दर्द कुछ और नहीं --डा० विजय शंकर

पूछा किसी ने मुझसे

दर्द क्या है ,

कैसा है ये , इसका

एहसास कैसा है .



दर्द कुछ और नहीं

सिर्फ एक नाम तुम्हारा है

दर्द कुछ और नहीं

सिर्फ एहसास तुम्हारा है .



दर्द टूटने का नहीं है,

दर्द बिखर जाने का है

दर्द कुछ खोने का नहीं है ,

खुद के खो जाने का है .



दर्द उसे खोनेका नहीं

जो अपना था, खो गया .

बल्कि उसके खोने का है ,

जो अपना कभी था ही नहीं .



यूँ तो कुछ था नहीं

जो वो ले गया

एक उम्मीद… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 3, 2014 at 7:46pm — 10 Comments

घोड़े नहीं रहे --डा० विजय शंकर

घोड़े नहीं रहे , घोड़ों का युग नहीं रहा

मेंढ़क हैं , तरह तरह के मेंढ़क,

हरियाली है उनकीं , हरे हरे से मेंढ़क,

उछलते , कूदते , फांदते , मेंढ़क

न अश्व रहे , न अश्वपुत्र , न ही अश्वपति

न लम्बी दौड़ , न ऊंची कूद ,

न रही कहीं वो गति ,

मीटर दो मीटर की दौड़ें हैं ,

फुट दो फुट ऊंची कूदें हैं ,

आस पास तक गूंज ले

बस ऐसी ही आवाजें हैं ।

उम्मीदों के क्या कहने ,

अरमान वही घोड़ों जैसे ,

नाल हो , जीन हो ,

घोड़े वाली कलगी हो ,

ऊंचाई से… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 31, 2014 at 9:00am — 24 Comments

क्या है जो रोज़ गुनाह करते हो --डा० विजय शंकर

क्या किसी भी सजा से नहीं डरते हो

क्यों रोज़ गुनाह पे गुनाह करते हो

दुनियाँ जहाँन की सब खबर रखते हो

खुद क्या हो बिलकुल बेखबर रहते हो

अपने कर्मों पे नज़र नहीं रखते हो

कौन क्या कर रहा परेशान रहते हो

औरों के खजाने पे नज़र रखते हो

कभी चोरी के नोट अपने गिनते हो

शेर की खाल में गीदड़ नज़र आते हो

घर में आईने बिलकुल नहीं रखते हो

बैसाखियाँ ले कर गुजर बसर करते हो

दौड़ में सबसे आगे हो, दम भरते हो

ईश्वर की दुनियाँ को बहुत बनाते हो

भगवान से… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 29, 2014 at 10:09am — 12 Comments

चोर को पकड़ो ,सजा दो --डा० विजय शंकर

जिंदगी एक दंड है , अपराध है
गर नहीं कानूनों का साथ है
गरीबी एक नामुमकिन सी चीज है
हर पैदा होने वाला देश का नसीब है
ये देश ये दुनिया किसी की जागीर नहीं है
खिलाफ आदमी कानून बन जाए , सही नहीं है
न धरती तुम्हारी न पानी तुम्हारा
न यहां कोई मिलकियत तुम्हारी है
टैक्स लो और काम करो
चोर को पकड़ो , और सजा दो .
लोगों का जीवन आसान करो .
शासन करना लाज़िम है पर
हुक्म बजाने के न अरमान धरो .

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Added by Dr. Vijai Shanker on July 27, 2014 at 12:13pm — 6 Comments

वह राज तंत्र था --डा० विजय शंकर

वह एक राजतंत्र था

एक द्रौपदी थी , एक ही ,

वह भी थी उसी कुल की .

पिता तुल्य राजा था वह ,

सचमुच पूरा अंधा था वह .

पितामह भी थे, अंध नहीं

पर अंध स्वामिभक्त थे,

सत्ता नहीं सत्ताधारियों के

प्रति समर्पित, आसक्त थे .

चीर हरण था , वह भी

संकेतात्मक , विफल .

पर ले डूबा कुल वंश ,

अंध स्वामिभक्त बड़े

अधिष्ठाता भी नहीं बचे ,

बड़े कष्ट से मुक्त हुए .

हुए नष्ट पाप के सब सहभागी

सती जस माता रही अभागी .

बचा संग अंधा राजा ,… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 24, 2014 at 10:55am — 14 Comments

बैसाखियाँ- डा० विजय शंकर

बैसाखियाँ बैसाखियाँ बैसाखियाँ ,

हर तरफ बैसाखियाँ ,

उनके लिए जिन्हें जरुरत है ,

उनकें लिए भी , जिन्हें जरुरत नहीं है .

लोगों को बैसाखियों की जरुरत हो न हो

बैसाखियों को तो सबकी जरुरत है.

सब उन्हें लें , उनके सहारे आगे बढ़ें ,

अन्यथा बिलकुल न बढ़ें , नहीं तो ,

बढ़ना क्या , चलने लायक नहीं रह जायेगें .

फिर हमारे पास , हमको लेने आयेंगें .

हमें समझें , हमारा महत्व समझें ,

क्यों हमारा धंधा खराब करते हैं



मौलिक एवं अप्रकाशित.

डा० विजय… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 22, 2014 at 1:16pm — 14 Comments

नई दिशायें खोज डालतें हैं-- डा० विजय शंकर

किताबें ज्ञान हैं , प्रतिमान हैं .

प्रतिबन्ध हैं , दंड हैं , विधान हैं ,

बस कभी कभी हमारे और

आपके प्रति अंध हैं , अज्ञान हैं ,

औरों के लिए महान हैं ,

उनकीं समस्याओं के उत्तर

उनमें विद्यमान हैं .

बस हमारी समस्याओं से ,

अनभिज्ञ हैं , अनजान हैं .

चलो , स्वयं को फिर से विचारते हैं ,

जिन रास्तों से आये

उन्हें मुड़कर निहारते हैं

चूक हुई नज़र आये तो

नये रास्ते निकालते हैं .

दूसरों के पद चिन्हों पर क्यों चले

नैये नैये पद चिन्ह… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 13, 2014 at 10:39am — 6 Comments

कितना अनजान है आदमी-डा० विजय शंकर

हमदर्दी की क्या कहें

कौन किसी के दुःख सुनता है

दूसरे को छोड़िये. आदमी

कब अपने दुखड़े सुनता है

सुनना छोड़िये , अपने

दुःख कब समझता है आदमी ।

ये तो औरों को देख कर

कुछ जान लेता है आदमी ,

अच्छा ऐसे जीता है आदमी ?

ऐसे खाता है , ऐसे पीता है

ऐसे ऐसे हँसता है आदमी

मुझे नहीं सिखाता है आदमी

आदमी का भला करना ही

नहीं चाहता है आदमी ।

आदमी से दूरी बनाता है आदमी

आदमी आदमी के बीच तरह ,

तरह की दीवारें बनाता है आदमी

दीवारों के इस… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 11, 2014 at 1:54pm — 10 Comments

पर्यावरण दिवस पर नाइट्रोजन नुट्रिलिटी - कोस्टा रीका -डा० विजय शंकर

धूल मिटटी है , सोना है , ताकत है इतनी कि जिसमें मिल जाए उसे मिटटी बना डाले . पर खेत में हो तो सचमुच सोना ही सोना . खेत के अलावा कहीं भी हो तो मुश्किल ही मुश्किल , हटाना ही पड़ता है . हटा भी दिया लोगों ने धूल को, कम से कम आवासीय परिक्षेत्र से , सड़कों से , तो हटा ही दिया है . धूल को हटाने के तरह तह के तरीके अपनाते हैं लोग , यहां तक की फूलों की क्यारियों में , गमलों में , पेड़ों के थालों में लकड़ी की छोटी छोटी खप्पचियां मोटी-मोटी परतों में भर देते हैं जिससे उतनी धूल भी न उड़े और उनकें जीवन को… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 8, 2014 at 8:33pm — 7 Comments

जमीर कीमती है ,रखते हैं - डा० विजय शंकर

हवा में दम है , उड़ा के ले जाये हमको ,

जम गए हम तो खुद ना हीं हटा करते हैं |



हुकूमत है , हुक्मरान बदलते रहते हैं ,

साथ में हम भी बदलें , यह नहीं करते हैं |



मंहगाई है ,दिन ब दिन बढ़ती रहती है ,

भाव बढ़ा लें अपना ,न , हम नहीं करते हैं |



कमोडिटी नहीं हैं , गायब हैं बाजार से ,

ज़िंदा हैं , खिदमत है दुनियां की, करतें हैं |



जमीर कीमती है , औकात है ,रखते हैं ,

सौदागर हैं , यह तिज़ारत नहीं करते हैं |



मौलिक एवं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 5, 2014 at 1:00pm — 13 Comments

बेईमान सारे एक हैं- डा० विजय शंकर

बेईमानी की इतनी विधाएँ हैं
झूठ के रूप अनेक हैं
फिर भी बेईमान सारे एक हैं |
ऐसा भाई-चारा , ऐसा प्रेम ,
शायद ही कहीं किसी कर्म-क्षेत्र
के रखवालों में मिले , दुर्लभ है ।
दूसरी और सच एक है ,
ईमानदारी एक है ,
न सच के दो रूप हो सकते हैं ,
न ईमानदारी के |
फिर भी दो सच्चे ईमानदार
कभी एक नहीं हो सकते हैं
उनका एक होना दुर्लभ है ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Added by Dr. Vijai Shanker on June 30, 2014 at 9:01am — 18 Comments

अपना - अपना सच -- डा० विजय शंकर

अपना - अपना सच
------------------------

उसने सच का नाम लिया
लोगों ने उसे झूठा कहा ,
उसने सच बोलना चाहा ,
लोगों ने उसे बोलने न दिया ,
वो सच बोले बिना चला गया .
लोगों ने राहत की सांस ली ,
एक दूसरे से पूछा , " सच " !
गया ........, चला गया
कितना अच्छा हुआ ।

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Added by Dr. Vijai Shanker on June 27, 2014 at 10:51am — 17 Comments

प्यार , तुझे एक नया नाम देते हैं ---डा० विजय शंकर

प्यार चलो, तुझे एक नया नाम देते हैं ,
नव रूप ,नव रंग , नई पहचान देते हैं.
तेरे मतलब से मतलब निकाल देते हैं ,
बेमतलब प्यार का मतलब बता देते हैं.
तुझे तेरे स्व- अर्थ से मुक्त कर देते हैं ,
अपनत्व में लीन निस्वार्थ रूप देते हैं .
ये तेरे बदरंग , रंग निकाल देते हैं ,
पारदर्शी प्रिज्म सा रूप तुझे देते हैं .
तकने वालों को तू कांच नज़र आएगा ,
पास जिसके हो उसे ,सब रंग दिखायेगा .


मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Added by Dr. Vijai Shanker on June 25, 2014 at 4:49pm — 18 Comments

समस्या में समाधान- डा० विजय शंकर

समस्या है ,

समाधान हो जाएगा .

आओ समाधान ढूंढते है ,

कोई न कोई हल मिल जाएगा.

समस्या पुरानी है , जटिल है ,

जड़ से उखाड़ कर फेंक देते हैं .

सुझाव है , विचार करेंगें , पर

इतना क्रूर काम क्यों करेंगें .

समस्या से बात करतें हैं ,

बुलाते हैं , मुलाक़ात करतें हैं .

बुलाया , वो आयी.

अरे ये तुम , ये तो कुछ नहीं ,

ये तो ये है , ये तो वो है ,

ऊंह ! हमीं तो लाये थे इसे .

अरे न न न न ना , चिंता न करो ,

तुम्हारा कोई बाल बांका नहीं होगा… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 24, 2014 at 10:26am — 15 Comments

भ्रष्टाचार जड़ों में था - डा० विजय शंकर

भ्रष्टाचार जड़ों में था,

वो पत्ते खड़काते रहे , बोले ,

हर पत्ते को खड़का दूंगा ,

भ्रष्टाचार मिटा दूंगा .

पत्ता-पत्ता हिल गया था .

बड़ा शोर औ गुल हुआ था ,

पत्तों का बेइंतहा क्रंदन हुआ था .

हिसाब लगाया गया ,

बड़ा पैसा खर्च हो गया था ,

और नतीजा कुछ नहीं आया था .

पर वे निराश नहीं हुए ,

हताश बिलकुल भी नहीं हुए ,

बोले , पत्ता-पत्ता नुचवा दूंगा .

फिर क्या ,एलान हुआ ,और

पत्ता-पत्ता नोच डाला गया .

पत्ते पुराने थे , पहले से गिर… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2014 at 6:27am — 12 Comments

जिसको तुमने खोया माना-डा० विजय शंकर

जिसको तुमने खोया माना है ,

उसको मैंने पाया जाना है ।

कुछ अटपटा , उलटा सा लगता है ,

पर जिन्दगीं तुमको मैंने ऐसा ही जाना है

जो खो गया , वो क्या ले गया ,

हाँ, अपनी स्मृतियाँ छोड़ गया ||

कुछ मीठी , कुछ तीखी,

पर जीने के लिए बहुत

काफी है , एक सहारे की तरह ||

एक गीत , एक कविता लिखता हूँ ,

जब तक लिखता हूँ , मेरा है , जब

छोड़ देता हूँ , पढ़ने वालों के लिए,

मेरा क्या रह गया उसमें , पर

खो दिया, क्या मैंने उसको ,

गर खो दिया , तो वही तो… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 19, 2014 at 8:53am — 16 Comments

जैसे तैसे काम चलाता है आदमी - डा० विजय शंकर

बहुत दिन हो गए हँसी मजाक किये हुए ,

बहुत दिन हो गए कोई व्यंग लिखे हुए ,

तो चलो आज ही ये काम भी कर लेतें हैं

बीते बहुत दिन परेशान जमाने को हँसे हुए ।

मित्रों , हँसना है तो विवेक-मुक्त होकर हँसे अन्यथा शब्दों में ही रह जायेगें और हस भी नहीं पायेगें .



जैसे तैसे काम चलाता है आदमी ,

कोई काम ठीक से कर नहीं पाता है आदमी .

यह तो सृष्टि की अद्वितीय रचना हैं , जो

एक साथ सत्रह - अदठ्ठारह काम

कर लेतीं हैं , बिना कोई गलती किये .

वो एक साथ खाना बना… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 8:06am — 22 Comments

जिंदगी तू भी अजीब है -- डॉo विजय शंकर

जिंदगी भी अजीब है

जब भी उदास होती है ,

बेहद पास होती है |

खुश होती है तो ,

हमीं से दूर होती है ||

खुश हो तो लापरवाह इतनी

कि खुद हमसे नहीं सम्हलती ,

उदास होती है तो हमें ही

नहीं संभाल पाती है ||

जिंदगी अपनी होते हुये भी

क्यों अंजानी सी लगती है

दूसरे की जिंदगी क्यों अच्छी ,

जानी पहचानी सी लगती है ||

साथ बैठें तेरे कभी आ

कुछ बात करें, तुझी से

आ जिंदगी तुझको

थोड़ा देंखें करीब से |

इक हम हैं जो जीते हैं

सिर्फ… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2014 at 11:57am — 10 Comments

एक लघु वार्ता --- डॉ ० विजय शंकर

प्रिय मित्रों ,

मैं इस सम्मानित मंच के माध्यम से आप सभी से कुछ बातें शेयर करना चाहता हूँ , आज लाइव महोत्सव का जो विषय है, ये बातें कहीं न कहीं उस से जुडी हुई हैं . थोड़ा देखें दुनिया में और लोगों का नज़रिया उन बातों पर जो हम सभी को घेरे रहती हैं . गत तीन-चार वर्षों से वर्ष में कुछ समय मेरा अमेरिका में रहना होता है , इस प्रवास में बहुत कुछ देखने को मिलता है। कुछ इत्मीनान से , कुछ सोच समझ के साथ। जैसे , स्वतंत्रता की देवी ( statue of liberty ) की मूर्ति वाले इस विशाल देश में लोग वास्तव में… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2014 at 10:44am — 18 Comments

जिंदगी ढूंढते रह गए तुझको ---डा० विजय शंकर

जिंदगी , कितनी सरल , खूबसूरत है तू

तुझको देखें जी भर , कि जी लें तुझको ,

कैसे रखा , कैसे पाला है , हमने तुझको,

तुझको पढ़ें मन भर , कि लिखें तुझको |



बोझ ,शौक ,मौज नाम दिए हमने तुझको

ये रीति, ये रिवाज ,ये बंदिशें , ये विधान

ये दायरे ,ये पहरे ,ये कानून , ये फरमान

ये भी तेरे हैं , तेरे बन्दों ने दिए हैं तुझको |



बाँध के रख दिया हजार बंधनों में तुम्हें

दावा यह कि सब तेरी हिफाजत के लिए है

इतनी बंदिशें तूने न देखी , न जानी होगीं ,

जितनी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 12, 2014 at 5:11am — 21 Comments

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