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SALIM RAZA REWA's Blog – December 2017 Archive (3)

साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता- सलीम रज़ा रीवा

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साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता

मेरे घर में खुशियों का सिलसिला नहीं होता 

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राह पर सदाक़त की गर चला नहीं  होता 

सच हमेशा कहने का  हौसला नहीं होता

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कोशिशों से  देता  है  रास्ता समंदर भी

हौसला रहे क़यिम फिर तो क्या नहीं होता

-

कम खुशी नहीं होती मेरे घर के आँगन में 

दिल अगर नहीं बंटता, घर बंटा नहीं होता

-

थोड़े ग़म ख़ुशी थोड़ी,थोड़ी सिसकियाँ भी है

ज़िन्दगी से अब हमको कुछ गिला नहीं होता

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डूबती नहीं कश्ती पास…

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Added by SALIM RAZA REWA on December 27, 2017 at 9:00pm — 20 Comments

रंज -ओ-ग़म ज़िंदगी के भुलाते रहो - सलीम रज़ा रीवा

 212 212 212 212 -

रंज -ओ-ग़म ज़िंदगी के भुलाते रहो

गीत ख़ुशिओं के हर वक़्त गाते रहो

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मोतियों  की तरह जगमगाते रहो

बुल बुलों की तरह चहचहाते रहो

-

जब तलक आसमां में सितारें रहें

ज़िंदगी में  सदा  मुस्कुराते  रहो

-

इतनी खुशियां मिले ज़िंदगी में तुम्हे

दोनों हांथों से  उनको  लुटाते  रहो

-

सिर्फ़ कल की करो दोस्तों फिक़्र तुम

जो गया वक़्त उसको भुलाते रहो

-

हम भी तो आपके जां  निसारों में हैं

क़िस्सा- ए- दिल हमें भी सुनाते…

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Added by SALIM RAZA REWA on December 19, 2017 at 4:55pm — 21 Comments

दामन को तीरगी से बचाते चले गए - सलीम रज़ा रीवा

221 2121 1221 212 

दामन को तीरगी से बचाते चले गए

ईमाँ की रोशनी में  नहाते चले गए

 -

हम दर-बदर की ठोकरे खाते चले गए

फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए

 -

कोशिश तो की भंवर ने डुबोने की बारहा

हम कश्ती-ए-हयात बचाते चले  गए

 -

रुसवाईयों के डर से कभी बज़्में नाज़ में

हंस-हंस के दिल का दर्द छुपाते चले गए

 -

अपना रहा ख़्याल न कुछ होश ही रहा

आँखों में उनकी हम तो समाते चले गए

 -

करता है जो सभी के मुक़द्दर का…

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Added by SALIM RAZA REWA on December 5, 2017 at 6:00pm — 16 Comments

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