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SALIM RAZA REWA's Blog – October 2017 Archive (8)

बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ - सलीम रज़ा रीवा

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बातों ही बातों में उनसे प्यार  हुआ.

ये मत  पूछो  कैसे कब इक़रार हुआ

.      

जब से आँखें उनसे मेरी चार हुईं.

तब से मेरा जीना भी दुश्वार हुआ

.

वो शरमाएँ जैसे  शरमाएँ…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 29, 2017 at 8:30am — 21 Comments

सबसे बड़ी रदीफ़ में ग़ज़ल का प्रयास, सिर्फ रदीफ़ और क़ाफ़िया में पूरी ग़ज़ल - सलीम रज़ा रीवा

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.....

वतन की बात  करनी हो तो मेरे पास आ जाओ .

अमन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ …

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Added by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 12:30am — 29 Comments

दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं - सलीम रज़ा रीवा : ग़ज़ल

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दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं,

मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी ज़िन्दगी नही

..

ये और बात है कि वो मिलते  नहीं मगर,

किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं

..

तेरे ही दम से खुशियां है घर बार में मेरे,

होता  जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं

..

वो क्या गया की रौनके महफ़िल चली गयी,

जल तो रही है शम्अ मगर रोशनी नहीं

..

ख़ून-ए-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल,

मेरे, सुख़न  का  रंग…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 10:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल : ज़रा  सोचिए दिल लगाने से पहले : SALIM RAZA REWA

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....

महब्बत  की राहों  में जाने से पहले.

ज़रा  सोचिए  दिल  लगाने से पहले.

.

बहारों का इक शामियाना  बना  दो.

ख़िज़ाओं को गुलशन में आने से पहले.

.

गिरेबान में  झांक  कर अपने देखो.

किसी पर भी उंगली उठाने से पहले.

.

ग़रीबों की आहों से बचना है मुश्क़िल.

ये तुम सोच लो दिल दुखाने से पहले.

.

कभी चल के शोलों पे देखो रज़ा तुम.

महब्बत  की  बस्ती  जलाने से पहले.…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 13, 2017 at 3:00pm — 17 Comments

शाम-ए-रंगीं  गुलबदन गुलफा़म है : सलीम रज़ा रीवा ग़ज़ल

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शाम-ए-रंगीं  गुलबदन गुलफा़म है

मिल गए तुम जाम का क्या काम है

.. 

ये वज़ीफा़ मेरा सुब्ह-ओ-शाम है

मेरे लब पे सिर्फ तेरा नाम है

..

तू मिला मुझको सभी कुछ मिल गया

ये मुक़द्दर का बड़ा इनआम है



तुम हो सांसों में तुम्ही धड़कन में हो

ज़िन्दगी मेरी  तुम्हारे  नाम  है

..

हम किसी से दुश्मनी करते नहीं

दोस्ती तो प्यार  का  पैग़ाम है 

..

मेरा घर खुशिओं से है फूला फला 

मेरे रब का ये  बड़ा  इनआम… Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 9, 2017 at 3:30pm — 13 Comments

ग़ज़ल : उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा - सलीम रज़ा रीवा

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.....

जो बनकर के जीता है  इंसान सदा,

उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा

..

क्या अफसोस कि शाख़ से पत्ते टूटे हैं,

गुलशन में तो आते हैं तूफ़ान सदा

..

हक़ पे चलने वाले हक़ पे चलते हैं,

माना  की बहकाता है शैतान सदा 

..

धीरे - धीरे शेर मेरे भी चमके गें,

पढ़ता हूँ मै ग़ालिब का दीवान सदा

..

रिज़्क मे उसके बरकत हरदम होती है,

जिसके घर में आते हैं मेहमान सदा

..

भेद भाव से दूर "रज़ा" जो रहता है,

महफ़िल… Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 12:00pm — 30 Comments

मेरे  वतन पे  आते हैं सारे जहाँ से लोग - सलीम रज़ा रीवा

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मेरे  वतन  में  आते  हैं  सारे  जहाँ  से लोग.

रहते हैं इस ज़मीन पे अम्न-ओ-अमाँ से लोग.

..

लगता है कुछ खुलुसो  महब्बत मे है कमी.

क्यूं उठ के जा रहे हैं बता दरमियाँ से लोग.

..

तेरा  ख़ुलूस  तेरी  महब्बत  को  देखकर.

जुड्ते  गये हैं आके  तेरे  कारवाँ  से लोग.

..

कैसा  ये  कह्र   कैसी   तबाही   है    खुदा.

बिछ्डे हुए हैं अपनो से अपने मकाँ से लोग.…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 4, 2017 at 9:30am — 26 Comments

उनकी नज़र से पीना कोई मयकशी नहीं - सलीम रज़ा रीवा

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नश्शा नहीं सुरूर नहीं बे खुदी नहीं.

उनकी नज़र से पीना कोई मयकशी नहीं.

.

गुलशन में फूल तो है मगर ताज़गी नहीं.…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 2, 2017 at 7:30pm — 8 Comments

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