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SALIM RAZA REWA's Blog – January 2018 Archive (6)

हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया- सलीम रज़ा

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हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया

दुश्वारियों को पांव के नीचे दबा दिया

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मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं

लेकिन तुम्हारी याद का नक्शा मिटा दिया  

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मैंने तमाम छाँव ग़रीबों में बांट दी

और ये किया कि धूप को पागल बना दिया

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उसके हँसीं लिबास पे इक दाग़ क्या लगा 

सारा  ग़ुरूर ख़ाक़ में उसका मिला दिया 

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जो  ज़ख्म  खाके भी रहा है आपका सदा 

उस दिल पे फिर से आपने खंज़र चला दिया

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उसने निभाई ख़ूब मेरी दोस्ती "…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 22, 2018 at 9:55pm — 20 Comments

तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता - सलीम रज़ा रीवा

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तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता

दिल ये तुझपे फ़िदा नहीं होता   

-

इश्क़ तुमसे किया नहीं होता 

ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता

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ज़िन्दगी तो  संवर गयी  होती 

ग़र वो मुझसे जुदा नहीं होता

-

उसकी चाहत ने कर दिया पागल 

प्यार  इतना  किया  नहीं  होता 

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सबको दुनिया बुरा बनाती है

कोई इंसाँ बुरा नही होता

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चोट खाएँ भी मुस्कुराएँ भी

अब रज़ा हौसला नहीं होता. …

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Added by SALIM RAZA REWA on January 13, 2018 at 10:30pm — 21 Comments

मुझसे ऐ जान-ए-जानाँ क्या हो गई ख़ता है -SALIM RAZA REWA

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मुझसे ऐ जान-ए-जानाँ क्या हो गई ख़ता है

जो यक-ब-यक ही मुझसे तू हो गया ख़फ़ा है

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कुछ भी नहीं है शिकवा कुछ भी नहीं शिकायत

क़िस्मत में जो है मेरे  वो मुझको मिल रहा है

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आंखों में नींद रुख़ पर गेसू बिखर रहे हैं

हिज्र-ए-सनम में शायद वो जागता रहा है

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शाख़-ए-शजर हैं सूखी मुरझा गई हैं कलियाँ

गुलशन हुआ है वीरां कैसा ग़ज़ब हुआ है

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इक पल में रूठ जाना इक पल में मान जाना 

उसकी इसी अदा ने दीवाना कर दिया है…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 10, 2018 at 11:30pm — 11 Comments

जो अपने माँ-बाप के - सलीम रज़ा

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जो अपने माँ-बाप के दिल को दुखाएगा

चैन-ओ- सुकूँ वो जीवन भर ना पाएगा

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हक़ बातें तू हरगिज़ ना कह पाएगा

अहसानों के तले  अगर दब जाएगा

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उस दिन दुनिया ख़ुशिओं से भर जाएगी

जिस दिन प्रीतम लौट के घर को आएगा

-

भूँखा -प्यासा जब देखेगी बेटों को

माँ का दिल टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा

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उसकी मुरादें सब पूरी हो जाएंगी

दर पे उसके जो दामन फैलाएगा

-

मेरी…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 7, 2018 at 6:00pm — 12 Comments

वज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है - सलीम रज़ा

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बज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है

महकी सी फ़ज़ाएँ हैं कौन आने वाला है

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चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है

मेरे घर के आँगन में सुरमई उजाला है

-

इतनी सी गुज़ारिश है नींद अब तू जल्दी आ 

आज मेरे सपने में यार आने वाला है

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जागना वो रातों को भूक प्यास दुख सहना

माँ ने अपने बच्चों को मुश्किलों से पाला है

-

उसके दस्त-ए-क़ुदरत में ही निज़ाम-ए-दुनिया है

इस जहान-ए-फ़ानी को जो बनाने वाला है

-…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 4, 2018 at 5:30pm — 28 Comments

मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते - सलीम रज़ा

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मुश्किलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए

ग़ैर से क्या  हो गिला अपने  बेगाने हो गए

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चंद दिन के फ़ासले के बा'द हम जब भी मिले

यूँ लगा जैसे  मिले  हमको ज़माने  हो गए

-

पतझड़ों  के साथ मेरे दिन गुज़रते थे कभी

आप के आने से मेरे  दिन  सुहाने हो  गए

-

मुस्कराहट उनकी  कैसे भूल पाएगें  कभी

इक नज़र देखा जिन्हें औ हम दिवाने हो गए

-

आँख में शर्म-ओ-हया, पाबंदियाँ, रुस्वाईयां

उनके न  आने  के  ये…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 2, 2018 at 9:00pm — 18 Comments

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