For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बृजेश नीरज's Blog (89)

तुम सोई

तुम सोई

सपनों में खोई

अधर मंद मुस्काते हैं

ये सपने

चुपके से आकर

आखिर क्या कह जाते हैं।

 

बागों में

चंपा महकी है

मंद हवा

बहकी बहकी है

घनी रात को, तारे आकर

रूप नया दे जाते हैं।

 

रंग भरे

यह श्वेत चांदनी

कण कण में

इक मधुर रागिनी

नींद भरे बोझिल ये नयना

सुध बुध सब हर जाते हैं।

.

 - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 11:00am — 42 Comments

आज़ादी

तिरंगे को लहराता देख

लगता है

हम आज़ाद हैं

 

आज़ादी सापेक्ष होती है

 

आज़ाद हैं अंग्रेजों से

 

जिंदगी तो अब भी वैसी ही है

वही साँसें

वही चीथड़े

वहीं चाँद

टूटता तारा

वही कुआँ खोदना

फटी जेबें

वही बिवाइयाँ।

 

कहाँ बदला कुछ

राजाओं के रंग बदल गये

भाषा वही है

 

सत्ता का चेहरा बदलता है

चरित्र नहीं

आजादी का मतलब

निरंकुशता की समाप्ति तो…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 16, 2013 at 7:00am — 18 Comments

पत्थर

पत्थर चुप हैं

वे ज्यादा बोलते नहीं

ज्यादा खामोश रहते हैं

 

खामोश रहना

जीवन की

सबसे खतरनाक क्रिया होती है

आदमी पत्थर हो जाता है

 

खामोशी का कोई भेद नहीं

कोई वर्गीकरण नहीं

बस,

दो शब्दों के

उच्चारण के बीच का अन्तराल

जहां कोई ध्वनि नहीं,

दो अक्षरों के बीच की

खाली जगह

जहां कुछ नहीं लिखा;

कोरा

 

ऐसे ही पत्थर होते हैं

जहां कुछ नहीं होता

वहां पत्थर…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 11, 2013 at 5:00pm — 28 Comments

चेहरा

बार बार भीड़ में

ढूँढता हूँ

अपना चेहरा

 

चेहरा

जिसे पहचानता नहीं

 

दरअसल

मेरे पास आइना नहीं

पास है सिर्फ

स्पर्श हवा का

और कुछ ध्वनियाँ

 

इन्हीं के सहारे

टटोलता

बढ़ता जा रहा हूँ

 

अचानक पाता हूँ 

खड़ा खुद को

भीड़ में

अनजानी, चीखती भीड़ के

बीचों बीच

 

कोलाहल सा भर गया

भीतर तक

कोई ध्वनि सुनाई नहीं देती

शब्द टकराकर…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 11:30am — 34 Comments

दिया द्वार पर जूझ रहा

कितने कितने सूरज चमके

पर अँधियारा शेष रहा

तेरे मेरे मन के अंदर

इक संशय फल फूल रहा।।

 

सरपत के ढेरों झाड़ उगे

तन छू ले कट जाता है

इन बबूल के काँटों से भी

भीतर तक छिल जाता है

सावन की बौछारों में भी

मन उपवन सब सून रहा।।

 

तुम मिलते हो मुझको जैसे

इक गुजरी तरुणाई सी

भाव खिलें डाली पर कैसे

वह रूखी मुरझाई सी

साज संवार व्यर्थ रहा सब

धूल भरा यह रूप रहा।।

 

चिड़ियों ने…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 4, 2013 at 3:00pm — 28 Comments

सॉनेट/ आँधी

एक सुनहरी आभा सी छायी थी मन पर

मैं भी निकला चाँद सितारे टांके तन पर

इतने में ही आँधी आयी, सब फूस उड़ा

सब पत्ते, फूल, कली, पेड़ों से झड़ा, उड़ा

धूल उड़ी, तन पर, मन पर गहरी वह छाई

मन अकुलाया, व्याकुल हो आँखें भर आई

सरपट भागें इधर उधर गुबार के घोड़े

जैसे चित के बेलगाम से अंधे घोड़े

कुछ न दिखता पार, यहाँ अब दृष्टि भहराई

कैसा अजब था खेल, थी कितनी गहराई

छप्पर, बाग, बगीचे, सब थे सहमे बिदके

मैं भी देखूँ इधर उधर सब ही थे…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 31, 2013 at 10:00pm — 31 Comments

बहुत दिन बाद आए

नीरज, बहुत दिन बाद आए

जेठ में भी

बादल दिख गए

पर तुम नहीं दिखे

 

हमारा साथ कितना पुराना

जब पहली बार मिले थे

तभी लगा था

पिछले जनम का साथ

करम लेखा की तरह

अनचीन्हा नहीं था

 

तुम्हारे न रहने पर

बहुत अकेला होता हूँ

किसी के पास

समय नहीं

समय क्या

कुछ भी नहीं

दूसरों के लिए

दिन काटे नहीं कटता

 

तुम नहीं थे

मैं जाता था बतियाने

पेड़…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 27, 2013 at 8:30pm — 18 Comments

उस पार

सोचता हूँ

क्या होगा

इस नीले आकाश के पार

 

कुछ होगा भी

या होगा शून्य

 

शून्य

मन सा खाली

जीवन सा खोखला

आँखों सा सूना

या

रात सा स्याह

 

कैसा होगा सबकुछ

होगी गौरैया वहां?

देह पर रेंगेंगी

चीटियाँ?

 

या होगा सब

इस पेड़ की तरह

निर्जन और उदास;

सागर की बूँद जितना

अकल्पनीय

 

बिना जाए

जाना कैसे जाए

और जाने को…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 25, 2013 at 10:30am — 18 Comments

अमरबेल

कभी कभी

खामोश हो जाते हैं शब्द।

 

जीवन में

कब अपना चाहा होता है

सब।

 

बहुत कुछ अनचाहा

चलता है संग।

इस दीवार से

झरती पपड़ियाँ;

दरारों में उगते

सदाबहार और पीपल;

गमले में सूखता

आम्रपाली।

 

दिये की रोशनी सहेजने में

जल जाती हैं उंगलियाँ।

 

गाँठ खोलने की कोशिश में

ढूंढे नहीं मिलता

अमरबेल का सिरा।

 

तुम

किसी स्वप्न सी खड़ी

बस…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 20, 2013 at 10:00am — 25 Comments

खोज

मैं लिखा करता हूँ

भाव की ध्वनियों को;

उतारता हूँ

नए शब्दों में

नए रूपों में।

 

रस, छंद, अलंकार

तुक, अतुक

सब समाहित हो जाते हैं

अनायास।

ये ध्वनि के गुण हैं;

शब्द के श्रंगार।

इन्हें खोजने नहीं जाता।

 

मुझे तो खोज है

उस सत्य की

जिसके कारण

मैं सब कुछ होते हुए भी

कुछ नहीं

और कुछ न होते हुए भी

सब कुछ हो जाता हूँ।

 

शायद किसी दिन

किसी…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 3:00pm — 20 Comments

शून्य

कभी यूं ही बैठकर सोचते हुए

कल्पना की असीम गहराइयों में

डूबते उतराते

भाव ध्वनियां बनकर

खुद रूप लेने लगते हैं

शब्द का।

 

शब्द बोलते हैं

एक भाषा

और फिर

गडमड हो जाते हैं

एक दूसरे में।

 

रह जाती है

एक ध्वनि

एक स्वर

वह जो

परम भाव है

परम ध्वनि

परम अक्षर!

 

जहां से उपजे

वहीं समा गए

परम शून्य में।

निर्विकार शान्ति!

 

भाव…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 15, 2013 at 10:00pm — 31 Comments

प्रातः

मंद हवा की

लहरों पर बैठ

आकाश ने

हाथों में लिया

सितारों का अक्षत,

अरूणोदय का कुमकुम,

ओस की बूंदें,

बाग से

पुष्प, घास

और तिरोहित कर दी

रात

क्षितिज में।

              - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Added by बृजेश नीरज on July 11, 2013 at 6:30pm — 30 Comments

नवगीत/ जीवन जीना है

क्या सुनना है

क्या कहना है

जीना औ मरना है

 

क्या पाया है

जो खोना है

दिन ही बस गिनना है

सपने सारे

सूखा मारे

घिस घिस कर चलना है

देह को बस गलना है

 

मन से हारा

पर हूँ जीता

रो रो कर हॅंसना है

किसको रोएं

पीर सुनाएं

सबका ही कहना है

बस जीवन जीना है

 

खेत को सींचें

अंकुर फूटें

बस इंतजार करना है

रात हुई थी

सुबह भी होगी

सोए, अब…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 11, 2013 at 6:30am — 20 Comments

नवगीत/ फूटी गागर

मन भौंरे सा आकुल है

तुम चंपा का फूल हुई

मैं चकोर सा तकता हूँ

तुम चंदा सी दूर हूई

 

जब पतझड़ में मेघ दिखा

तब यह पत्ता अकुलाया

ज्यों टूटा वो डाली से

हवा उसे ले दूर उड़ी

 

तपती बंजर धरती सा

बूँद बूँद को मन तरसा

जितना चलकर आता हूँ

यह मरीचिका खूब छली

 

सपन सरीखा है छलता

भान क्षितिज का यह मेरा

पनघट पर जल भरने जो

लाई गागर, थी फूटी

              - बृजेश…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 8, 2013 at 10:30pm — 12 Comments

दीवार

शहर के बड़े चैराहे पर

जो बड़ी दीवार है

उसके पास से गुजरते हुए

अक्सर मन होता है

लिख दूं उस पर

‘लोकतंत्र’

लाल स्याही से।

 

एक बड़ा लाल चमकता हुआ

‘लोकतंत्र’

जो दूर से साफ चमके।

 

जब भी होता हूं वहां

कांव कांव करता एक कौआ

आ बैठता है दीवार पर

मानो आहवाहन करता हो

‘आंव, आंव

लिख दो इस दीवार पर

जग जाएं पशु, पक्षी, लोग

ढूंढकर निकाली जा सके

फाइलों और योजनाओं…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 4, 2013 at 8:00pm — 27 Comments

अतुकान्त/ अपना गांव

आज

बहुत दिनों बाद आया गांव

अपना गांव

जहां हुआ करते थे

महुआ, कटहल, आम

एक बाग भी।

खेलते थे गुल्ली डंडा

कभी कभी क्रिकेट भी।

अब वहां बाग नहीं…

Continue

Added by बृजेश नीरज on June 6, 2013 at 10:32pm — 40 Comments

ग़ज़ल/ चुभती रही

आदरणीया कल्पना जी के सुझाव के अनुसार रचना में सुधार का प्रयास किया है। कृपया आप सुधी जन इसे एक बार फिर देखने का कष्ट करें।

2122, 2122, 2122, 212 

चांदनी भी धूप जैसी रात भर चुभती रही

याद जलती सी शमा बन देह में घुलती रही

 

सह रहे थे तीर कितने वक्त से लड़ते…

Continue

Added by बृजेश नीरज on June 2, 2013 at 7:30pm — 54 Comments

सॉनेट/ तुम आ जाओ

14 पंक्तियां, 24 मात्रायें

तीन बंद (Stanza)

पहले व दूसरे बंद में 4 पंक्तियां

पहली और चौथी पंक्ति तुकान्त

दूसरी व तीसरी पंक्ति तुकान्त

तीसरे बंद में 6 पंक्तियां

पहली और चौथी तुकान्त…

Continue

Added by बृजेश नीरज on May 23, 2013 at 3:30pm — 23 Comments

सॉनेट/ आस सी भरती

14 पंक्तियां

पहली, तीसरी व दूसरी, चौथी  तुकान्त का क्रम

तेरहवी व चौदहवीं पंक्ति तुकान्त

साढ़े तीन का पद

 

जब जब सूरज की किरनें पूरब में चमकी

जगत में छाया गहन तिमिर तब तब छंटता

लेकिन अंधियारा…

Continue

Added by बृजेश नीरज on May 16, 2013 at 11:30pm — 21 Comments

नवगीत/ रात घनेरी

चांद सितारे

चुप से हैं।

रात

घनेरी छाई है।।

 

तेज घनी

दुपहरिया में

अब अंगार बरसते हैं।

तपती

बंजर धरती…

Continue

Added by बृजेश नीरज on May 13, 2013 at 6:00pm — 32 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
51 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
52 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
52 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
52 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
53 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service