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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ''s Blog – January 2019 Archive (14)

कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे (२०)

(१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ )

कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे 

खुदा मौजूद है  अंदर उसी की जुस्तजू कीजे 

***

नुज़ूमी चाल क़िस्मत की क्या हमारी बताएगा 

पढ़ा किसने मुक़द्दर है भला क्या आरजू कीजे 

***

कहाँ तक नफ़रतों का ज़ुल्म सहते जायेंगे यारों 

मुहब्बत के  शरर से रोशनी अब चार सू कीजे 

***

तभी करना मुहब्बत जब निभा…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 30, 2019 at 10:00am — 8 Comments

दस्तूर इस जहाँ के हैं देखे अजीब अजीब (१९)

(२२१ २१२१ १२२१ २१२  )

दस्तूर इस जहाँ के हैं देखे अजीब अजीब

दुश्मन भी एक पल में बने देखिये हबीब

***

बनती बिगड़ती बात अचानक कभी कभी

बिगड़े नसीब वालों के खुल जाते हैं नसीब

***

वादा किया था हम से सजा लेंगे ज़ुल्फ़ में

लेकिन सजा है ज़ीस्त में क्यों आपके रक़ीब

***

नज़दीक आज लग रहा होता है दूर कल

जो दूर दूर रहता वो हो जाता है क़रीब

***

होता है पर कभी कभी ऐसा भी मो'जिज़ा

बनता ग़रीब बादशा और बादशा ग़रीब

***

हैरत है बातिलों…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 27, 2019 at 5:00pm — 4 Comments

समझ न आया कि पत्थर से प्यार कैसे हुआ  ( 18)

समझ न आया कि पत्थर से प्यार कैसे हुआ 

हसीन हादसे का मैं शिकार कैसे हुआ 

***

कहा है तूने कि ये हादसा नहीं है गुनाह 

हुआ गुनाह तो फिर बार बार कैसे हुआ 

***

हुई है कोई ग़लतफ़हमी आपको मुंसिफ़ 

करे जो प्यार कोई गुनहगार कैसे हुआ 

***

करेगा कौन यक़ीं गर मुकर भी जाओ तो 

चला न तीर तो फिर आर पार कैसे हुआ …

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 26, 2019 at 2:30pm — 12 Comments

किसी रिश्ते में हों गर तल्ख़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर   (१७ )

किसी रिश्ते में हों गर तल्ख़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

शजर पर गर हैं सूखी पत्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

**

बसाने को बसा लो ज़ुर्म की अपनी हसीं दुनिया

मगर बदनाम जो हों बस्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

***

नुमाइश कर रहे हो जिस्म की अच्छी नज़र चाहो

हुज़ूर ऐसी कभी ख़ुशफ़हमियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

***

मुसीबत, मुश्किलें, आफ़ात, चिंता और ग़म भी संग

घरोंदे में घुसी ये मकड़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

***

नहीं फ़र्ज़न्द को हासिल अगर कुछ काम थोड़े दिन  

मिलें  उसको…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 24, 2019 at 12:00pm — 12 Comments

बने हमसफ़र तेरी ज़ीस्त में कोई मेहरबाँ वो तलाश कर (१६)

11212 *4

बने हमसफ़र तेरी ज़ीस्त में कोई मेहरबाँ वो तलाश कर

जो हयात भर तेरा साथ दे कोई जान-ए-जाँ वो तलाश कर

***

तेरे सुर में सुर जो मिला सके तेरे ग़म में साथ निभा सके

तेरे संग ख़ुशियाँ मना सके कोई हमज़बाँ वो तलाश कर

***

कहीं डूब जाये न दरमियाँ कभी सुन के बह्र की धमकियाँ

चले नाव ठीक से ज़ीस्त की कोई बादबाँ वो तलाश कर

***

भला लुत्फ़ क्या मिले प्यार में नहीं गर अना रहे यार में

जो अदा से जानता रूठना कोई सरगिराँ वो तलाश कर

***

ये…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 20, 2019 at 3:00pm — 2 Comments

झूठ फैलाते हैं अक़्सर जो तक़ारीर के साथ (१५)

(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )

झूठ फैलाते हैं अक़्सर जो तक़ारीर के साथ

खेल करते हैं वतन की नई तामीर के साथ 

***

ख़्वाब देखोगे न तो खाक़ मुकम्मल होंगे 

ये तो पैवस्त* हुआ करते हैं ताबीर के साथ 

***

जो बना सकते नहीं चन्द निशानात कभी 

हैफ़* क्या हश्र करेंगे वही तस्वीर के साथ 

***

ग़म भी हमराह ख़ुशी के नहीं रहते,जैसे

कोई शमशीर कहाँ रहती है शमशीर के…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 19, 2019 at 2:30am — 8 Comments

ग़ज़ल: ख़त्म इकबाल-ए-हुकूमत को न समझे कोई (१४)

(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )

ख़त्म इकबाल-ए-हुकूमत* को न समझे कोई 

और लाचार अदालत को न समझे कोई 

***

मीर सब आज वुजूद अपना बचाने में लगे 

आम जनता की ज़रूरत को न समझे कोई 

***

ख़ून के रिश्ते भुला देती है जो इक पल में 

हैफ़ !भारत की सियासत को न समझे कोई 

***

जिस्म को छू लिया और इश्क़ मुकम्मल समझा 

इतना आसाँ भी महब्बत…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 14, 2019 at 12:30pm — 11 Comments

ग़ज़ल: पांचों घी में रहती है जब सरकारी कारिन्दों की.............(१३)

(२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )

***

पांचों घी में रहती है जब सरकारी कारिन्दों की 

कौन सुने फ़रियाद अँधेरी नगरी के बाशिन्दों की 

***

टूटी है मिजराबें फिर भी साज़ बजाना पड़ता है 

बे-सुर होते सुर तो इसमें ग़ल्ती क्या साजिन्दों की 

***

फेंक दिया करते कचरे में क्या क्या लोग पुलिंदों में 

असली कीमत आज समझते कचराबीन पुलिंदों की …

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 9, 2019 at 11:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल: न हसरतों से ज़ियादा रखें लगाव कभी ...(१२ )

(१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२ )

***

न हसरतों से ज़ियादा रखें लगाव कभी 

वगरना क़ल्ब में मुमकिन है कोई घाव कभी 

***

इमारतें जो बनाते जनाब रिश्तों की 

उन्हें भी चाहिए होता है रखरखाव कभी 

***

हयात का ये सफर एक सा कहाँ होता 

कभी ख़ुशी तो मिले ग़म का भी पड़ाव कभी 

***

न इश्क़ की भी ख़ुमारी सदा रहे…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 8, 2019 at 7:00pm — 17 Comments

'तुरंत' के दोहे (पुच्छल )

प्रस्तुत है कुछ पुच्छल दोहे 

=====================

प्रेम और उत्साह जब ,पैदा करें तरंग | 

छोड़ कुसुम के तीर तब , विहँसे तनिक अनंग || 

मिलन का क्षण ही ऐसा | 

***

देश प्रेम की हर समय ,उठती रहे हिलोर | 

उन्नति की फिर देश में ,निश्चित होगी भोर || 

यही हो लक्ष्य हमेशा | 

***

ह्रदय सभी के आ सकें ,थोड़े से भी पास | 

फिर निश्चित इस देश में ,छा जाये…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 6, 2019 at 2:30pm — 5 Comments

हज़ारों बार क़ुदरत ने इशारा तो किया होगा  ........(११)

++ग़ज़ल ++(1222 1222 1222 1222 )

हज़ारों बार क़ुदरत ने इशारा तो किया होगा 

कभी नाहक कोई तूफ़ान शायद ही उठा होगा 

***

जुनूनी है जिसे मंज़िल नज़र भी साफ़ आती है 

वही अक़्सर अचानक नींद से उठकर खड़ा होगा 

***

समझ रक्खे कोई तो इश्क़ की गलियाँ नहीं देखे 

क़दम पहला उठाया वो यक़ीनन सरफिरा होगा 

***

नफ़ा-नुक़्सान उल्फ़त में लगाए कौन छोडो…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 5, 2019 at 4:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल: लगता है इस साल सनम कटनी तन्हाई मुश्किल है  ... (१० )

( २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )

.

लगता है इस साल सनम कटनी तन्हाई मुश्किल है 

बीते लम्हों के सहरा से हैफ़* ! रिहाई मुश्किल है (*हाय-हाय ,अफ़सोस  )

***

ख्वाब तसव्वुर ख़त मौसम ये चाँद बहाने कितने हैं 

तेरी यादों के लश्कर से यार जुदाई मुश्किल है 

***

माना ग़म की मार पड़ी है चारों खाने चित्त हुआ 

कैसे भी हों मेरे अब हालात गदाई* मुश्किल…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 4, 2019 at 3:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल: बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर भी .......(९ )

(1212 1122 1212 22 /112 )

.

बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर* भी (*राहगीर )

फ़क़ीर मीर कभी और कभी मुसाफ़िर भी 

*

किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था

उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी 

*

ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी 

ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी 

*

किसी ग़रीब की हालत का ज़िक़्र क्या…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 3, 2019 at 10:00am — 10 Comments

कैसा होगा नया साल यह, कहना शायद मुश्किल है ......... (८ )

कैसा होगा नया साल यह, कहना शायद मुश्किल है 

मनोकामना सम्भव है पर , अच्छी हो सबकी ख़ातिर | 

***

लिखा नियति ने जो इस पर है निर्भर क्या हो अगले पल | 

कृपा बरस जाये प्रभु की या जीवन से हो जाये छल | 

लेकिन अच्छा सोचोगे तो होगा जीवन में अच्छा 

बुरा अगर सोचा तो वैसा सम्भव है हो जाये कल | 

ज्योतिष-ज्ञान सभी की ख़ातिर रखना शायद मुश्किल…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 1, 2019 at 10:00pm — 8 Comments

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