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KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog – May 2017 Archive (6)

बिन मौसम बरसात ( कविता)

बिन मौसम बरसात कहीं 

साथ  होती है यादें 

रिम झिम रिम झिम बरसे पानी 

साथ होती हैं बातें 

उस नदी की अल्हड लहरें 

साथ होती है रातें 

आसमान पर चाँद सितारे 

बादल गीत हैं गातें

कल कल करता बहता पानी 

कागज़ की नाव बहाते 

चल मुसाफिर चलता चल तू 

साथ नहीं कोई आते 

मौलिक एवं…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 30, 2017 at 10:34pm — 4 Comments

डॉ रेखा ( (कहानी)

"ये कहाँ जा रही हो अम्मी ?" पड़ोस वाली महिला ने पूछा

"अरे वो अपनी मधु है न उसके घर से खबर आयी है , उसके पेट में दर्द हो रहा है , पेट से है न वो , पिछला जापा भी मैंने किया था , इस बार भी ......." बूढ़ी अम्मा ने हंस कर उत्तर दिया ।

" हे भगवान किस युग में जीते है ये इस मधु के घर वाले , दुनिया भर के अस्पताल है , पर देखो तो अब भी दायी से जापा करवाना चाहते है वो भी घर में । "



बूढ़ी अम्मा उन सबकी बातें सुन रही थी । लकड़ी की गाडी के सहारे से धीरे धीरे चलने वाली इस अम्मा का जीवन किसने… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 28, 2017 at 11:11pm — 3 Comments

बहती नदी (कविता)

बहती नदी से पूछा मैंने

बहती रहती हो थमती नहीं



देख मुझको वो मुस्कायी

बोली कुछ पल कुछ भी नहीं ।



देख हंसी उसकी फिर पूछा मैंने

बोलो न क्यों तुम रूकती नहीं



देख मेरी उत्सुकता वह बोली

अरे मेरी भोली सी बहना



रुक गयी तो कैसे चलेगा

खेतों का गागर कैसे भरेगा



सागर से फिर कौन मिलेगा

हरियाली से कौन बतियाईएगा



इतराती नहीं नारी हूँ मैं भी

चंचल हिरणी , मनभावन हूँ मैं भी



टकरा जाती हूँ चट्टानों… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 22, 2017 at 7:45am — 6 Comments

शिक्षा सबके लिए ( लघुकथा)

" तुम मुझे रोज़ लेने आ जाती हो , मेरे बाबा मुझे डाँटते है । उनको लगता है मैं आलसी हूँ , स्कूल नहीं जाना चाहती । " शीला ने अपनी सहेली मीना से कहा ।



" हाहा हाहा , सही तो कहते है तुम्हारे बाबा , पढ़ाई चोर तो तुम हो ही , जब देखो तुम्हारी कॉपियां अधूरी रहती है ...।" मीना ने हंसकर कहा



" धत्त , कोई नहीं झूठी मेरी कॉपियां तो पूरी होती है , वो तो ....... वो तो ........."अपनी माँ की तरफ़ देखकर शीला चुप हो गयी ।



मीना यह बात जानती थी कि शीला की माँ को शीला का स्कूल जाना पसंद… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 12, 2017 at 11:38am — 14 Comments

सार छंद ( 16 ,12 )

छन्न पकैया छन्न पकैया , ऐसे मेरे नाना
रोज़ सवेरे पानी देते , औ देते थे दाना

छन्न पकैया छन्न पकैया , खुश होते थे नाना
उड़ते हुए परिंदे आते , सब चुगने थे दाना

छन्न पकैया छन्न पकैया ,था उनका ये कहना
आपनी तरह परिंदों का भी, खयाल रखना बहना

छन्न पाकैया छन्न पकैया,सबको ये समझाना
पशु पक्षी पेडों पौधों से, प्यार सदा जतलाना

छन्न पकैया छन्न पकैया , जीना चाहें मरना
नाना सदा यही कहते थे ,प्रेम सभी से करना ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 11, 2017 at 1:30pm — 13 Comments

खो गये है शब्द (कविता)

जाने कहाँ खो गये
खो गये हैं शब्द

जिनको पढ़कर कभी
हुआ करती थी सुबह

प्रथम किरणों के संग
ओस की बूंदों के भीतर

खो गये है वे शब्द
जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक

कर देते थे जिवंत
ख़्वाब सजाया करते थे

खो गये हैं शब्द
जाने कहाँ किस ओर गये ।


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 6, 2017 at 11:08pm — 4 Comments

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