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KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog – January 2017 Archive (3)

मन (कविता)

रे मन कह दे
अपनी बात आज
बंद है जो भीतर
बाहर आने दे आज
देख, पवन पुरावई
शीत लहर आई
कह दे अपनी बात
जिसे जड़ कर चुकी हो
देख बाहर प्रवासियों को
घर अपना जो छोड़ आये है
कुछ दिनों के लिये ही सही
नया बसेरा बसाने आये है
आज खोल दे द्वार अपने भी
उड़ जाने दे अपनी पीड़ा को
लग जाने दे पंख परिंदों की तरह
खुली साँसे ले लेने दे ।


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 20, 2017 at 5:30pm — 3 Comments

प्रेम गीत

मीत नहीं

संगीत नहीं

प्रेम का कोई गीत नहीं ।



दिल ही नहीं

धड़कन ही नहीं

जीवन की यह रीत नहीं ।



इंसान हैं तो दिल भी होगा

दिल में बसा संगीत भी होगा

बिन संगीत जीवन नहीं ।

बिना प्रीत के मिलन नहीं ।



गाओ गाओ मधुर तराने

प्रेम के होते बहुत फ़साने

बिना फ़साने के प्रेम नहीं

प्रेम नहीं तो जीत नहीं ।



जियो जियो तो ऐसे जियो

मधुर प्रेम के प्याले पियो

प्याले में मिश्री भी घोलो

मीठी मीठी वाणी बोलो… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 4, 2017 at 4:03pm — 17 Comments

दर्द दे गया (नज़्म)

न जाने क्यों उनका इंतज़ार करती हूँ
न आये कभी जो उनसे प्यार करती हूँ

देखा था उनकों पहली बार जब
नयन से नयन मिले थे तब
कशिश थीं उनकी आँखों में
डूबती गयी उनकी बाँहों में ।

स्पर्श था प्रथम वो मेहबूब का
एहसास था प्यार का प्रीत का
थामा जब हाथ उन्होंने मेरा
तब शर्माया था दामन मेरा ।


एक ख़्वाब ही तो था
जो प्यार का एहसास था
वो दर्द दे गया है मुझे
आह निकली है मुख से ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 2, 2017 at 10:03pm — 14 Comments

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