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SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR's Blog (52)

ऐसे वीर शेर हैं अपने छाती ताने ठाढ़े

ऐसे वीर शेर हैं अपने छाती ताने ठाढ़े

घर में घुस कर घेर लिए हैं दुश्मन को ललकारें

गीदड़ – गीदड़ भभकी देता बोल नहीं कुछ पाए

बिल में घुसकर दौड़ डराता अन्दर ही छुप जाये

साँसे अटकी हैं उन सब की भ्रष्टाचारी जो है

क्या मुंह ले वे सामने आयें फाईल यहाँ भरी है

ऐसे वीर शेर हैं अपने छाती ताने ठाढ़े

नमन तुम्हे हे वीर हमारे कल तुम दुनिया जीते !!

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कहते हैं तुम थाने जाओ कोर्ट कचहरी बाहर देश

शर्म नहीं…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 26, 2012 at 1:52pm — 6 Comments

'कोख' को बचाने को ...भाग रही औरतें

कोख को बचाने को भाग रही औरतें 

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ये कैसा अत्याचार है 

'कोख' पे प्रहार है 

कोख को बचाने को 

भाग रही औरतें 

दानवों का राज या 

पूतना का ठाठ …

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 14, 2012 at 10:30pm — 12 Comments

मृगनयनी कैसी तू नारी ??

मृगनयनी कैसी तू नारी ??

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मृगनयनी कजरारे नैना मोरनी जैसी चाल

पुन्केशर से जुल्फ तुम्हारे तू पराग की खान

तितली सी इतराती फिरती सब को नाच नचाती

तू पतंग सी उड़े आसमाँ लहर लहर बल खाती

कभी पास में कभी दूर हो मन को है तरसाती

इसे जिताती उसे हराती जिन्हें 'काट' ना आती

कभी उलझ जाती हो ‘दो’ से महिमा तेरी न्यारी

पल छिन हंसती लहराती औंधे-मुंह गिर जाती

कटी पड़ी भी जंग कराती - दांव लगाती

'समरथ' के हाथों में पड़ के लुटती हंसती…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 6:30am — 25 Comments

सोन परी हिय मोद भरे !

बिटिया रानी खिली कली सी

सागर चीरे- परी सी आई

बांह पसारे स्वागत करती

जन मन जीते प्यार सिखाई !

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कदम बढ़ाओ तुम भी आओ

धरती अम्बर प्रकृति कहे

गोद उठा लो भेद भाव खो

सोन परी हिय मोद भरे !

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हहर-हहर…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 12:56am — 16 Comments

उगता सूरज -धुंध में

उगता सूरज -धुंध में

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कर्म फल -गीता

क्रिया -प्रतिक्रिया

न्यूटन के नियम

आर्किमिडीज के सिद्धांत

पढ़ते-डूबते-उतराते

हवा में कलाबाजियां खाते

नैनो टेक्नोलोजी में

खोजता था -नौ ग्रह से आगे

नए ग्रह की खोज में जहां

हम अपने वर्चस्व को

अपने मूल को -बीज को

सांस्कृतिक धरोहर को

किसी कोष में रख

बचा लेंगे सब -क्योंकि

यहाँ तो उथल -पुथल है

उहापोह है ...

सब कुछ बदल डालने की

होड़ है -कुरीतियाँ… Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 16, 2012 at 1:01pm — 39 Comments

नेता की शादी में

नेता की शादी में

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नेता की शादी में

गरीब भी आये

पानी भरे -अंखियों से

लड्डू- मन में खाए !

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डांट खाए दुत्कार

कुत्ते के पीछे वे

गालियों का प्रसाद

झोली भर लाये !

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चकाचौंध फुलझड़ी

नींद में सताए

बिटिया जवान हुयी

कब तक छिपाए !

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बेटे ने देख लिया

नेता का डेरा

मोह हम से कम हुआ

छोरा-छिछोरा !…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 19, 2012 at 10:00pm — 19 Comments

माँ अति प्यारी !

असीमित विस्तार 

ममता अपार

माँ का प्यार !

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सुख की मेह

करुना सागर

माँ का नेह !

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त्याग  वलिदान 

सुख की खान

"माँ" एक नाम !

-------------------…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 13, 2012 at 1:00pm — 13 Comments

अंगूठा चूसते-चूसते वो इतना "बड़ा" हो गया

मै ६ दिसंबर हूँ

मै ११ सितम्बर हूँ

२६ नवम्बर हूँ

आंसुओं का

महासागर हूँ मै !

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गोल-गोल

बूँद भरी

पूर्ण हो

निकल पड़ी

-------------------…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2012 at 10:09pm — 5 Comments

चाँद भी खिसक गया

गोरी के आंचल में 

झिलमिल सितारे हैं 

चंदा को सूरज भी 

छिप के निहारे है 

------------------------

रेत के समंदर में 

बूँद एक उतरी तो 

ललचाई नजरों ने 

सोख लिया प्यारी को 

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उदय अंत में त्रिशंकु -

बन ! मै लटकता हूँ 

राहु -केतु से कटे भी 

दंभ लिए फिरता हूँ 

---------------------------

चार दिन की जिन्दगी है 

चार पल की यारी है 

चाँद भी खिसक…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2012 at 9:24pm — 16 Comments

कोख में ही मार दिया ?

जंग से जमीन में 

घाव बहुत होते हैं 

जख्म गर भरे भी तो 

रोम-रोम रोते हैं !

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इन्सां ने इन्सां को 

इन्सां सा प्यार दिया 

स्वर्ग धरा लाये आज …

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 12, 2012 at 10:30pm — 12 Comments

हारे ना - दृढ निश्चय जब हो !

दूर क्षितिज छाये है लाली

पक्षी-पर -ना रुकता देखो कैसे उड़ता जाता !!

नीचे -सागर विस्तृत कितना पानी -पानी

माझी-नौका -तूफाँ -लड़ते फिर पतवार चलाता !!

मंजिल कितनी दूर -न जाने -पीता पानी

राही पल -पल जोश बढ़ाये डग तो भरता जाता !!

पर्वत नाले पार किये बढ़ जाती धरती

कहीं छुएगी आसमान को साहस बढ़ता जाता !!

बीज दबा है बोझ से फिर भी

टेढ़ी - मेढ़ी राह धरे दम भरते निकला आता !!

अपनी मंजिल सब पाए जब आस बंधी

हारे ना - दृढ निश्चय जब हो !

एक आँख…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2012 at 5:49pm — 4 Comments

अहसास

 अहसास

श्वेत वसन में लिपटा जीवन

जन गण का सम्मान लिए !

चूसें रक्त सदा वे विचरें

कानून न उन पर हाथ धरे !!

 

भले दीखते ऊपर ही चंगे

जब मन को साफ रखे ना !…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 6, 2012 at 10:00pm — 12 Comments

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