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Usha's Blog – September 2019 Archive (5)

फिर से जी लूँ ... अतुकांत कविता

ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,

सरक-सरक कर गुज़रने लगी।

हादसों का सिलसिला ऐसा चला,

उम्र का अहसास गहराता गया।

उड़ने की ख़्वाहिश और सारे ख़्वाब,

कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।

अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,

यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।

इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,

बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।

फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,

ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना…

Continue

Added by Usha on September 23, 2019 at 3:22pm — 3 Comments

फिर से जी लूँ ... अतुकांत कविता

ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,

सरक-सरक कर गुज़रने लगी।



हादसों का सिलसिला ऐसा चला,

उम्र का अहसास गहराता गया।



उड़ने की ख़्वाहिश औ सारे ख़्वाब,

कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।



अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,

यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।



इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,

बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।



फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,

ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना ।

मौलिक…

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Added by Usha on September 22, 2019 at 2:14pm — 2 Comments

मेरे सवाल ... अतुकांत कविता

मेरे सवाल .... अतुकांत कविता



वो तेरी प्यार भरी बातें,

तेरा रौबीला रूप,

गज़ब की मुस्कान औ दंभ,

बहुत रोका, बहुत सँभाला,

कुछ भी ना कर सकी,

ख़ुद ही ख़ुद से हार गयी।

अब वो प्यारी बातें मेरी हुईं,

तेरा रौब, मेरा सौंदर्य साथ हुए,

तू मुस्कुराया, में खिलखिलाकर हंसी,

तेरा वो दंभ, मेरा हुआ,

सात फेरों ने ज़िन्दगी दी,

तू मेरा औ मैं तेरी हुई।

कहा किया सदा, साथ ना छूटेगा,

मैं अकेली पड़…

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Added by Usha on September 7, 2019 at 3:30pm — 2 Comments

तू है यहीं..।।

तू है यहीं..।।

दिन नया-नया सा है, ख़्वाहिशें सब पुरानी सी।

तेरा इंतज़ार था, इंतज़ार है, और इंतज़ार रहेगा।।

चाहतें हैं जो बदलती नहीं, आहें हैं, मिटती नहीं।

अहसास करवटें बदल-बदल कर सताते हैं।।

हर शाम पूछती है, बेधड़क दरवाज़ा खटखटाती है।

वो ख़ुद लौटा है, या सिर्फ़ उसकी यादें लौटी है?

यादें और यादें, तुम ही रुक जाओ, कम्बख़्त ।

मुस्कराहटें ना सही, आँसू ही दे जाओ ज़रा।।

हर मशविरा वो देता है, आगे बढ़ जाओ।

बतला…

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Added by Usha on September 3, 2019 at 10:30am — 4 Comments

अधिकारों की नई परिभाषा

काफी प्रतीक्षा के बाद जनरल मैनेजर वनिता सिंह को अकेले देख कर शिवानी ठाकुर उनके चैंबर में प्रविष्ट हुयी। मैडम अपनी कार्य-शैली के अनुसार सिर झुकाये कुछ पढ़ने में व्यस्त बनी रहीं। शिवानी ने विनम्रता से बैंक जाकर ए टी एम् कार्ड रिसीव करने हेतु अनुमति माँगी।

उन्होंने सिर झुकाये ही कहा, “लिखित में लाइए।”

“मैडम, मैं अवकाश नहीं माँग रही हूँ , बैंक जाकर तुरंत वापसी कर लूंगी।

“सुना नहीं? लिखकर लाओ कि तुम कार्यालय के समय में अपना व्यक्तिगत कार्य करने जाना चाहती हो।”

शिवानी…

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Added by Usha on September 2, 2019 at 12:00pm — 1 Comment

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