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वीनस केसरी's Blog (47)

ग़ज़ल - जिससे सब घबरा रहे हैं ...- वीनस

हज़रात,

एक और ताज़ा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, लुत्फ़ लें .....

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जो ये जानूं, मुख़्तसर हक आप पर मेरा भी है |

तब तो समझूं, मुन्तज़िर हूँ, मुन्तज़र मेरा भी है |



जिससे सब घबरा रहे हैं वो ही डर मेरा भी है |…

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Added by वीनस केसरी on March 12, 2013 at 3:30am — 8 Comments

ग़ज़ल - उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना

एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें



उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |

झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना |



शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,

पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |



गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,

कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |



आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है,

जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |



मैंने पल भर झूठ-सच पर…

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Added by वीनस केसरी on February 26, 2013 at 10:00pm — 29 Comments

ग़ज़ल - आप खुश हैं कि तिलमिलाए हम

एक और ताज़ा गज़ल आपकी खिदमत में पेश करता हूँ... लुत्फ़ लें ...



आप खुश हैं, कि तिलमिलाए हम |

आपके कुछ तो काम आए हम |



खुद गलत, आपको ही माना सहीह,

जाने क्यों आपको न भाए हम |



आपके फैसले गलत कब थे,

और फिर, सब…

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Added by वीनस केसरी on February 6, 2013 at 4:30am — 20 Comments

ग़ज़ल - वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है

मित्रों, कई दिन के बाद एक ग़ज़ल के चंद अशआर हो सके हैं, आपकी मुहब्बतों के नाम पेश कर रहा हूँ

वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है |

वो मुझसे है पूछे, वो क्या चाहती है |

यूँ तंग आ चुकी है इन आसानियों से,

हयात अब कोई मसअला चाहती है |…

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Added by वीनस केसरी on February 5, 2013 at 10:00am — 17 Comments

ग़ज़ल - खूब भटका है दर-ब-दर कोई

एक और ग़ज़ल पेश -ए- महफ़िल है,

इसे ताज़ा ग़ज़ल तो नहीं कह सकता, हाँ यह कि बहुत पुरानी भी नहीं है

गौर फरमाएँ



खूब भटका है दर-ब-दर कोई |


ले के लौटा है तब हुनर कोई |



अब पशेमां नहीं बशर कोई…

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Added by वीनस केसरी on December 17, 2012 at 4:17am — 12 Comments

ग़ज़ल - इतनी शिकायत बाप रे

एक और शुरुआती दौर की ग़ज़ल......

कच्चे अधपके ख्यालात.......

एक दो शेअर शायद आपने सुना हो, पूरी ग़ज़ल पहली बार मंज़रे आम पर आ रही है

बर्दाश्त करें ....




इतनी शिकायत बाप रे  |

जीने की आफत बाप रे  |



हम भी मरें तुम भी मरो,…

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Added by वीनस केसरी on December 12, 2012 at 3:05am — 16 Comments

ग़ज़ल - फकत शैतान की बातें करे है

वादा किया था कि जल्द ही कुछ पुरानी ग़ज़लें साझा करूँगा,,,

  एक ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ...






फकत शैतान की बातें करे है ?

सियासतदान  की बातें करे है !



अँधेरे से न पूछो उसकी ख्वाहिश,

वो रौशनदान की बातें करे है |…



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Added by वीनस केसरी on December 7, 2012 at 6:07am — 10 Comments

ग़ज़ल - अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये

एक पुरानी ग़ज़ल....

शायद २००९ के अंत में या २०१० की शुरुआत में कही थी मगर ३ साल से मंज़रे आम पर आने से रह गयी...

इसको मित्रों से साझा न करने का कारण मैं खुद नहीं जान सका खैर ...

पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ............





अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये


शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिये…



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Added by वीनस केसरी on November 25, 2012 at 2:59pm — 31 Comments

लघु कथा - गर्द



शाम हो रही थी साहब घर जाने के लिए निकले और जाते जाते रामदीन को मेरी जिम्मेदारी सौंप गये. रामदीन को भी घर जाना था इसलिए उसने जल्दी से मुझे नीचे उतरा और झाड़ा झटका, अचानक मुझ पर पडी गर्द रामदीन से जा चिपकी, वह झुझला गया जैसे उसके शरीर पर धूल न चिपक गई हो बल्कि उसकी आत्मा से ईमानदारी जा चिपकी हो. उसने तुरंत अपने गमछे से सारे शरीर को झाड़ा और एक बार आईने में भी देख आया, उसे लग रहा था जैसे इमानदारी अब भी उससे चिपकी रह गई है. उसने मुझे तह किया और अलमारी में रख…

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Added by वीनस केसरी on November 11, 2012 at 10:25pm — 10 Comments

कहानी - नशा - वीनस केसरी

पांचवा दिन| घर बिखरा हुआ है, हर सामान अपने गलत जगह पर होने का अहसास करवा रहा है, फ्रिज के ऊपर पानी की खाली बोतलें पडी हैं, पता नहीं अंदर एकाध बची भी हैं या नही; बिस्तर पर चादर ऐसी पडी है की समझ नहीं आ रहा बिछी है या किसी ने यूं ही बिस्तर पर फेक दी है; कोई और देखे तो यही समझे की बिस्तर पर फेंक दी है, कोई भला इतनी गंदी चादर कैसे बिछा सकता है | शायद मानसी के जाने के दो या तीन दिन पहले से बिछी हुई है | बाहर बरामदे की डोरी पर मेरे कुछ कपड़ें फैले है | तार में कपड़ों के बीच कुछ जगह खाली है, कपडे…

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Added by वीनस केसरी on October 30, 2012 at 3:23am — 16 Comments

ग़ज़ल - वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो

एक ताज़ा ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं -



वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो | 

ये सपना है, मगर जो सच हुआ तो |



दिखा है झूठ में कुछ फ़ाइदा तो |

मगर मैं खुद से ही टकरा गया तो |



मुझे सच से मुहब्बत है, ये सच है,

पर उनका झूठ भी अच्छा लगा तो |



शराफत का तकाज़ा तो यही है,

रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो |



करूँगा मन्अ कैसे फिर उसे…

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Added by वीनस केसरी on October 23, 2012 at 12:18am — 16 Comments

दिल की बात कहे दिल वाला .....

लिखा छन्द टेढ़ मेढ़,
कर दिया ऐड़ बेड़,
छंद अनुराग जो भी,
करावाये कम है |

किया है सुधार जब,
छन्द महारथियों ने,
लगा अब रचना में,
आया कुछ दम है |

छन्द का है भूत चढ़ा,
रात दिन रटा पढ़ा,
और अब लिखने को
उठाई कलम है |

दोहा रोला घनाक्षरी,
उल्लाला भी लिखूंगा मैं,
सीखूंगा मैं अपनों से,
काहे की शरम है ||


जय हो

Added by वीनस केसरी on October 21, 2012 at 12:00am — 4 Comments

एक नवगीत : शब्द चित्रों की सफलता के लिए

खूबसूरत दृश्य

हम गढ़ते रहे,

शब्द चित्रों की

सफलता के लिए |





शहर धीरे धीरे

बन बैठा महीन

दिख रहा है हर कोई

कितना जहीन

गाँव दण्डित है

सहजता के लिए || १ ||



घर की दीवारों

में हाहाकार है

लक्ष्मी का रूप

अस्वीकार है

कौन सोचे

नव प्रसूता के लिए || २ ||



जब से हम सब

खुद पे अर्पण हो गये

बस तभी शीशा से

दर्पण हो गये

या सुपारी हैं

सरौता के लिए || ३ ||…



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Added by वीनस केसरी on October 13, 2012 at 1:00am — 6 Comments

यादगारे अकबर इलाहाबादी : शायरों और कवियों ने याद किया तंज़ ओ मजाह की नींव अकबर इलाहाबादी को

आज ९ सितम्बर २०१२, रविवार को इलाहाबाद के वर्धा विश्वविधालय क्षेत्रीय सभागार में एक काव्य गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन किया गया जिसमें अकबर इलाहाबादी को उनकी पुन्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया | कार्यक्रम की शुरुआत अकबर इलाहाबादी साहब के चित्र पर माल्यार्पण से हुयी | तत्पश्चात इलाहाबाद के तंज़ ओ मजाह के सशक्त हस्ताक्षर फरमूद इलाहाबादी साहब ने तंज़ ओ मजाह के महान शायर अकबर इलाहाबादी साहब को याद करते हुए अकबर साहब की ग़ज़ल के चंद अशआर पढ़े तथा उसके पश्चात सभी कवियों…

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Added by वीनस केसरी on September 10, 2012 at 2:00am — 1 Comment

ग़ज़ल - बचा है अब यही इक रास्ता क्या

दोस्तों, ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं ..



बचा है अब यही इक रास्ता क्या

मुझे भी भेज दोगे करबला क्या



तराजू ले के कल आया था बन्दर

तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या…



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Added by वीनस केसरी on September 9, 2012 at 2:30am — 13 Comments

जाल सय्याद फिर से बिछाने लगे - वीनस

मित्रों, एक ताज़ा ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है ....





जाल सय्याद फिर से बिछाने लगे

क्या परिंदे यहाँ आने जाने लगे



खेत के पार जब कारखाने लगे

गाँव के सारे बच्चे कमाने…

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Added by वीनस केसरी on August 12, 2012 at 11:30pm — 10 Comments

पटना यात्रा ...

मौका था गुरु भाई प्रकाश सिंह 'अर्श' की शादी का, और शहर था पटना

तो ऐसा कैसे होता कि गणेश जी से मुलाक़ात न हो ...

१८ अप्रैल को शादी और १९ अप्रैल को  गणेश जी से मुलाक़ात ...…

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Added by वीनस केसरी on April 21, 2012 at 3:12am — 9 Comments

ओ.बी.ओ. की दूसरी वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोजित काव्य समारोह (इलाहाबाद)

मुख्य अतिथि श्रीमती लक्ष्मी अवस्थी दीप-प्रज्ज्वलन करते हुए. साथ में (बायें से) डा. जमीर अहसन, एहतराम इस्लाम, इम्तियाज़ गाज़ी तथा सौरभ पाण्डेय …

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Added by वीनस केसरी on April 1, 2012 at 9:00pm — 9 Comments

बिल्ली के गले में घंटी बांधना हर समय विशेष में कठिन काम रहा है

गीत और ग़ज़ल ऐसी विधाएं हैं जो प्रत्येक साहित्य प्रेमी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं | चाहे वह मजदूर वर्ग हो या उच्च पदस्थ अधिकारी वर्ग, सभी के ह्रदय में एक कवि छुपा होता है | हर काल में गीतकार और ग़ज़लकार होने को एक आम आदमी से श्रेष्ठ और संवेदनशील होने का पर्याय मन गया है ऐसे में प्रत्येक साहित्य प्रेमी को प्रबल अभिलाषा होती है कि वह सृजनात्मकता को अपने जीवन में स्थान दे सके और समाज उसे गीतकार ग़ज़लकार के रूप में मान दे इस सकारात्मक सोच के साथ अधिकतर लोग खूब अध्ययन करने के पश्चात और शिल्पगत…

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Added by वीनस केसरी on March 30, 2012 at 6:00pm — 16 Comments

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