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Er. Ganesh Jee "Bagi"'s Blog (125)

लघुकथा : महाचोर

"अरे जरा पता तो कर, इस एरिआ में स्साला कौन पैदा हो गया जो मेरे घर में चोरी कर गया." नेताजी गरजते हुए बोले । 
"भईया जी, पता चल गया है, इ काम कल्लुआ गिरोह का है, चोरी के माल के साथ बड़का गाँव में छुपा हुआ है, आप कहें तो पुलिस भेज कर उसे चोरी के माल के साथ गिरफ्तार करवा दें ?"
"अबे पगला गया है क्या ? जीते जी मरवायेगा !!! उ कल्लुआ को खबर करवा दे,…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 23, 2014 at 9:30am — 18 Comments

लघुकथा : भुट्टे वाली (गणेश जी बागी)

            "भुट्टे ले लो, हरे ताजे भुट्टे ले लो !" हर रोज सुबह-सुबह मैले कुचैले कपडे पहने, सर पर टोकरी लिए भुट्टे वाली कॉलोनी में आ जाती थी, मैं तो उसकी आवाज़ से ही जगता था ।

               …
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 21, 2014 at 6:30pm — 25 Comments

लघुकथा : खोटा सिक्का (गणेश जी बागी)

                       "अजी सुनती हो! देख लो तुम्हारे लाड़ले की करतूत, सेकंड इयर का रिज़ल्ट आया है, खीँच खांच के पास हुए हैं जनाब,  दिनभर दोस्तो के साथ मटरगश्ती और मारपीट करते रहते हैं, अब तो बर्दाश्त से बाहर हो गया है |"


                        "अब जाने भी दीजिए जी, बच्चा है, थोड़ी-बहुत ग़लतियाँ तो हो ही जाती हैं, आपको पता है,  बिटिया बता रही थी कि भाई के कारण ही कॉलेज मे…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 30, 2014 at 12:00pm — 45 Comments

लघुकथा : चलन (गणेश जी बागी)

स्कूल के कुछ दोस्त मिलकर घर में पड़े पुराने कम्बल गरीबों में बाँटने को निकले। कम्बल बाँट कर वे ज्यों ही वापस चलने को हुए, एक बुजुर्ग ने आवाज़ लगाई ………

"बबुआ जी तनिक सुनो"

"जी बाबा, आपको तो कम्बल दे दिया न ?"

"जी बबुआ जी, कम्बल तो दिया और फिर आप लोग ऐसे ही चल दिए"

"ऐसे ही चल दिए मतलब ?"

"बबुआ जी, पिछले तीन दिन से चमचमाती गाड़ियों में साहब लोग आते हैं, कम्बल बाँट कर फ़ोटो खिचवाते हैं और फिर २०-२० रूपया…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 23, 2013 at 8:39pm — 46 Comments

लघुकथा : कीमत (गणेश जी बागी)

शास्त्री जी बहुत खुश हैं, नए घर का आज गृह प्रवेश समारोह है ।  विदेश से कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट की पढ़ाई पूर्ण कर इकलौता बेटा भी कल घर पहुँच गया था ।

"पापा, गेस्ट आ गये हैं आप कहें तो डिनर स्टार्ट करवा दूँ"

"नहीं बेटा, कुछ विशिष्ट अतिथियों का मैं इन्तजार कर रहा हूँ पहले वो आ जाएँ फिर भोजन प्रारम्भ कराते हैं" शास्त्री जी ने बेटे को समझाया ।

"विशिष्ट अतिथि कौन पापा ?"

"इस घर को अपने श्रम और पसीने से बनाने वाले मिस्त्री और मजदूर"

"उफ्फ ! आप…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2013 at 9:31pm — 43 Comments

अतुकांत कविता - नि:शब्द (गणेश जी बागी)

शब्द कोष से संकलित

क्लिष्ट शब्दों का समुच्चय

गद्यनुमा खण्डित पक्तियों में

शब्द संयोजन

कथ्य और प्रयोजन से कोसों दूर

लक्ष्यहीन तीरों के मानिंद

बिम्ब और प्रतीक

कही तो जा धसेंगे

बस

वही होगा लक्ष्य

फिर.......

पाठक का द्वन्द्ध

बार-बार पढ़ना

पग-पग पर अटकना

समझने का प्रयत्न

गुणा भाग, जोड़ घटाव

सुडोकू सुलझाने का प्रयास

और अंततः

एक प्रतिक्रिया

नि:शब्द हूँ ।

***

(मौलिक व…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 5, 2013 at 11:30am — 51 Comments

लघुकथा : छवि (गणेश जी बागी)

घु सुबह-सुबह ऑटो रिक्शा लेकर सड़क पर निकला ही था क़ि तभी ट्रैफिक पुलिस के एक सिपाही ने हाथ देकर रिक्शा रोक लिया, रघु एक अंजाने भय से कांप गया |

"स्टेशन जा रहे हो क्या ? चलो मुझे भी चलना है" सिपाही जी अपने चिरपरिचित अंदाज मे बोले |

"जी, साहब, स्टेशन ही जा रहे हैं"

आज दिन ही खराब है, सुबह सुबह पता नही किसका मुँह देख लिया था, अभी बोहनी भी नही हुई और सिपाही जी आकर बैठ गये, मन ही मन खुद को कोसते हुए रघु गंतव्य की ओर बढ़ चला | रघु स्टेशन पहुँच कर सभी…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 2, 2013 at 4:13pm — 36 Comments

लघुकथा : बलात्कार (गणेश जी बागी)

"इंस्पेक्टर प्लीज़ लॉज माय एफ आई आर",  आधुनिक परिधान पहने खूबसूरत युवती गॉगल्स को सर पर चढ़ाते हुए रौबदार आवाज़ मे बोली  | 
"मैडम कृपया बैठिए और आराम से बताइए कि आख़िर बात क्या हुई" 
"इंस्पेक्टर, उसने मेरा रेप किया है, मैं उसके खिलाफ केस दर्ज करवाने आई…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2013 at 12:00pm — 52 Comments

लघुकथा : मतिमूढ़ (गणेश जी बागी)

संता लगभग एक साल बाद अपने गाँव लौट रहा था । बसंता इतना खुश था कि जो भी वेंडर ट्रेन मे आता वो कुछ न कुछ खरीद लेता, माला, गुड़िया, चूड़ी, बिंदी, सोनपापड़ी और भी बहुत कुछ । पैसे देने के लिए हर बार वह नोटों से भरा पर्स खोल लेता । अगल बगल के यात्रियों ने उसे डांटा भी, मगर भोला भला बसंता हँस कर बात टाल जाता ।    



आख़िर वही हुआ जिसका डर था, चलती ट्रेन में किसी ने उसका रुपयों से भरा पर्स निकाल लिया । बसंता ज़ोर ज़ोर से रोने लगा, तब…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2013 at 9:00pm — 34 Comments

लघुकथा : डंक (गणेश जी बागी)

राहुल और निधि कब एक दूसरे के हो गये पता ही नही चला | दोनों ने साथ साथ जीने मरने की कसमें खायीं थीं । निधि के घरवाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे, किन्तु निधि की जिद के आगे उनकी एक न चली और अंतत: उन्हें शादी के लिए अपनी रज़ामंदी देनी ही पड़ी।



निधि उस दिन ऑफिस से जल्दी ही निकल गई, वह राहुल को यह खुशखबरी देना चाहती थी । निधि दरवाजे की घंटी बजाने ही वाली थी कि राहुल के कमरे से आ रही तेज आवाज़ों को सुन रुक गई,

"अरे राहुल, शादी की मिठाई कब खिला रहा है…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2013 at 12:30pm — 31 Comments

शातिर (अतुकांत) ---गणेश जी बागी

बादलों से ढँका

नीला नही काला आकाश,

उचाईयों को मापता

उन्मुक्त पंछी,

चट्टान की ओट मे

फाँसने को आतुर बहेलिया,

आहा ! इधर ही आ रहा मूर्ख

फँसेगा, ज़रूर फँसेगा,

ओह ! बच गया,

शायद भांप गया । 



पुनः पेड़ की ओट मे,

वाह ! इधर ही आ रहा दुष्ट

आएगा इस बार

इस तीर की…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 3:30pm — 33 Comments

लघुकथा : गिफ्ट (गणेश जी बागी)

साफ साफ बताओं, आख़िर बात क्या है ? जबसे तुम अपनी छोटी बहन की शादी से लौटी हो, तुम्हारा मूड उखड़ा उखड़ा है और ढंग से बात भी नही कर रही हो, प्रकाश नें अपनी पत्नी नीतू से पूछा | 

"कुछ नही बस यूँ ही" 

"देखो 'बस यूँ ही' कहने से काम नही चलने वाला, तुम्हे मेरी कसम, सच सच बताओं हुआ क्या ?"

"प्रकाश आपने मेरी बहन…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 10:30am — 53 Comments

लघुकथा : कन्या पूजन (गणेश जी बागी)

राधना तीन बेटों की माँ बन गयी थी, लेकिन बेटी की कमी हमेशा उसे अन्दर से कचोटती रहती। सासू माँ ने समझाया भी कि बहूँ एक बार और देख लों शायद माता रानी सुन लें, पर वह कोई चांस नहीं लेना चाहती थी, बड़ी ननद ने तो यहाँ तक कहा कि मेडिकल साइंस आज बहुत आगे है - चेक करा लेना और यदि बेटी नहीं हुई तो…… लेकिन आराधना ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वो ऐसा घृणित पाप नहीं कर सकती । 



नवरात्रि का पहला दिन था सुबह सुबह आराधना पूजा की डलिया लिए मंदिर जा रही थी, तभी…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 5, 2013 at 2:30pm — 43 Comments

लघुकथा : गिरगिट (गणेश जी बागी)

ल राज्य में आम चुनाव के परिणाम का दिन था लोटन दास 'चम्मच छाप' पार्टी का पक्का समर्थक था, 'चम्मच छाप" बिल्ला लगाए, झंडा और गुलाल लिए वो और उसके साथी मतगणना स्थल पर सुबह से मौजूद थें, उसकी पार्टी को शुरूआती बढ़त मिलने लगी, लोटन दास और उसके साथी पूरे उमंग में नारे लगा-लगा कर गुलाल उड़ाते हुए नाच रहे थे । 

किन्तु यह क्या ! दोपहर बाद 'थाली छाप' पार्टी ने बढ़त बना ली और अंततः…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2013 at 9:00am — 30 Comments

लघुकथा : बहन जी (गणेश जी बागी)

"अरे वाह ! कुछ ही दिनों में ये मोबाइल, ये नया टैब ! क्या बात है मैडम जी, कोई लाटरी लग गई है क्या ?", राधिका ने अपनी रूम-मेट आयशा को छेड़ते हुए कहा | 

"नहीं रे, ये दोनो गैजेट तो प्रशांत ने ग़िफ़्ट किये हैं |"

"देख आयशा, मैने तुझे पहले भी आगाह किया था.. आज फिर कह रही हूँ, ये प्रशांत और उसके दोस्तों से संभल के रह... वे लोग मुझे ठीक...."…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 30, 2013 at 9:30pm — 40 Comments

लघुकथा : मिठाई (गणेश जी बागी)

काम बेहद मामूली था पर बड़े बाबू फाइल पर कुंडली मारे बैठे थे । मित्रों ने बताया कि बिना हजार-डेढ़ हजार का चढ़ावा लिए वो काम करने वाले नही हैं । गुप्ताजी यह सुन कर चुप रह गये । 



"बड़े बाबू एक छोटा सा काम आपके पास पेंडिंग है, यदि कर देते तो बड़ी मेहरबानी होती"

"हाँ-हाँ, गुप्ताजी हो जाएगा, थोड़ा खर्च-वर्च कर दीजिएगा", बड़े बाबू बगैर लाग-लपेट बोल उठे ।

"देखिए बड़े बाबू मैं खर्च करने की स्थिति मे तो नही…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2013 at 8:59pm — 60 Comments

ग़ज़ल (गणेश जी बागी)

ग़ज़ल

वजन : 2212 2212

 

बकवास सारा आ गया,

खबरों में रहना आ गया ।1। 

 

जो धड़कनें पढ़ने लगे, 

तो शेर कहना आ गया ।2।

 

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,

तब ही से सहना आ गया ।3।

 

जब से सियासत सीख ली,

कह के मुकरना आ गया ।4।

 

दो बेटियों का बाप हूँ,

मुझको भी डरना आ गया ।5।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => …

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2013 at 9:00pm — 41 Comments

लघुकथा : डर (गणेश जी बागी)

          टीवी देखते देखते अचानक राम लाल बड़ी तेज़ी से फोन की ओर लपका, घर से दूर बड़े शहर मे पढ़ रही बिटिया से बात कर कुछ संयत हुआ, फिर दोनो आँखें बंद कर बुदबुदाया ……
"हे !  प्रभु आपका लाख-लाख शुक्र है बिटिया सकुशल है" 
                   टीवी पर अभी भी एक महिला फोटोग्राफर के साथ हुए सामूहिक बलात्कार पर विश्लेषण जारी था…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 5, 2013 at 7:56pm — 44 Comments

लघुकथा : त्रिया चरित्र (गणेश जी बागी)

ये साहब बहुत ही कड़क और अत्यंत नियमपसंद स्वाभाव के थे ।  कई दिन रेखा देवी की हाजिरी कट गई |  फटकार लगी सो अलग ।

उस दिन साहब के चैम्बर से तेज आवाज़ें आ रही थीं । रेखा देवी चीखे जा रही थीं, "ये साहब मेरी इज़्ज़त पर हाथ डाल रहा है.."

सब देख रहे थे, ब्लाउज फटा हुआ था । साहब भी भौचक थे । उनकी साहबगिरी और बोलती दोनो बंद थी |



साहब संयत हुए और बोले, "जाओ रेखा देवी.. जब आना हो कार्यालय आना और जब जाना हो जाना, आज से मैं तुम्हें कुछ नही कहनेवाला । वेतन भी…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 1, 2013 at 10:00am — 50 Comments

लघुकथा : सांप्रदायिक (गणेश जी बागी)

त्रिपाठी जी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टी के नेता हैं । सुबह-सुबह अख़बार के साहित्यिक कालम मे प्रकाशित एक कहानी को पढ़ कर भड़के हुए थे । लेखक ने कहानी में एक मक्कार पात्र का नाम अल्पसंख्यक समुदाय से लिया था । बस नेता जी को उस कहानी मे सांप्रदायिकता की बू आने लगी | उन्होंने फ़ोन कर आनन-फानन में अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगो को बुला लिया । लेखक का पुतला आदि जलाकर विरोध प्रकट करने की बात तय हो गयी | 

घर के नौकर छोटू ने नेता जी को सूचना…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 18, 2013 at 11:30pm — 48 Comments

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