For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Rajesh kumari's Blog – June 2012 Archive (7)

मूसलाधार

आग उगलते सूरज का रथ

दौड़ रहा था

अनवरत, अन्तरिक्ष पर

पीछे जन्म लेते

धूल के गुबार ने ढक

दिए सब वारि के सोते

कुम्भला गए दम घोंटू

गर्द में कोमल पौधों के पर

चिपक गए परिधान बदन से

हाँफते हुए ,पसीनों से लथपथ

उसके अश्वों के स्वेद सितारे

छितरा गए सागर की चुनरी पर

मिल गए खारे सागर की बूंदों से

जबरदस्त उबाल उठा

सागर के अंतर में

प्यासी धरा की आहें

कर बैठी आह्वान

मंथन से मुक्त होकर

उड़ चला वो वाष्पित आँचल…

Continue

Added by rajesh kumari on June 26, 2012 at 2:30pm — 15 Comments

सिलेंडरों की रेल

निर्मल मन मैला बदन , नन्हे नन्हे हाथ 

रोटी का कैसे जतन,समझ ना पाए बात (1) 



तरसे एक -एक कौर को ,भूखे कई हजार 

गोदामों में सड़ रहे, गेहूं के आबार (2) 



शून्य में देखते नयन , पूछ रहे है बात 

प्रजा तंत्र के नाम पर,क्यूँ करते हो घात (3) 



सीना क्यूँ फटता नहीं, भूखे को बिसराय 

हलधर का अपमान कर,धान्य, जल में बहाय (4) 



शासन की सौगात हो, या किस्मत की हार 

निर्धन को तो झेलनी, ये जीवन की मार (5) 



रंक का चूल्हा…

Continue

Added by rajesh kumari on June 23, 2012 at 1:00pm — 26 Comments

कह मुकरियाँ

नयन लाज से झुक- झुक जाएँ

दिल में प्रीत म्रदंग बजाये

मादक मेघ चुराए काजल

क्या सखी साजन ??

ना सखी बादल |



चुपके से दृग द्वार पे आयें

गुदगुदाती बयार साथ में लायें

प्रीत छुपाये दिल में अपने

क्या सखी साजन ??

ना सखी सपने |



चित्त कल्पना में डूबता जाए

मन मीत हाथों पे लकीरे बनाए

सतरंगों से सजाये सवेरा

क्या सखी साजन ??

ना सखी चितेरा |



रुत खामशी से अगन लगाए

जहां…
Continue

Added by rajesh kumari on June 21, 2012 at 12:00pm — 20 Comments

आधुनिकता

कहाँ गई वो मेरे देश की खुशबु

जिसमे सराबोर  रहते थे

इंसानों के देश प्रेम के जज्बे ,

कहाँ गई वो माटी की सुगंध

जिससे जुडी रहती थी जिंदगी  

कहाँ गए वो आँगन 

जिनमे हर रोज जलते थे 

सांझे चूल्हे 

जहां बीच में रंगोली सजाई जाती थी 

जो परिचायक थी 

उस घर की एकता और सम्रद्धि की 

जिसमे खिल खिलाता था बचपन 

लगता है वक़्त की ही 

नजर लग गई…

Continue

Added by rajesh kumari on June 20, 2012 at 11:43am — 18 Comments

बदनामियों की गठरी



//घुप्प अँधेरा, उफनता तूफ़ान, कर्कश हवाओं कि साँय-साँय, पागल चड चडाती दरख्तों की शाखाएं. किसी भी क्षण उसके सर पर आघात करने को उदद्यत, पर उसके कदम अनवरत गति से बढ़ते जा रहे हैं. काले स्याह मेघ कोप से उत्तेजित हो परस्पर टकरा टकरा कर दहाड़ रहे हैं, जिसकी आवाज ने उन दोनों की साँसों की आवाज को निगल लिया है. दामिनी थर्रा रही है गिडगिडा रही है, उसके चेहरे को देखने को व्यग्र शनै -शनै अपना प्रकाश फेंक रही है. पर उसका मुख घूंघट से ढका है, हाँ एक नन्ही सी जान एक कपडे में लिपटी हुई उसकी छाती…

Continue

Added by rajesh kumari on June 5, 2012 at 2:30pm — 14 Comments

मौज कोई सागर के किनारों से मिली

मौज कोई सागर के किनारों से मिली  

 साँसे अपनी दिल के इशारों से मिली  

सोंधी सी महक बारिश का इल्म देती है 

गुलशन की खबर ऐसे बहारों से मिली 

आंधी ने नोच डाले हैं दरख्तों से पत्ते 

जुदाई की भनक आती बयारों से मिली 

चाँद खुश है रोशन करेगा बज्मे- जानाँ   

आस नभ में चमकते सितारों से मिली 

हरेक  लब उसे अकेले में गुनगुनायेंगे   

ऐसी कोई नज्म संगीतकारों से मिली 

पंहुच गई है परदेश में निशा की डोली 

खबर भोर में आते…

Continue

Added by rajesh kumari on June 3, 2012 at 9:03pm — 27 Comments

खुशखबरी (कहानी)

हैलो हैलो !! हैलो  बेटा बोल !  माँ खुशखबरी है आपको पोता हुआ है, इतना कहकर रोहित ने फ़ोन  रख दिया | रेखा के पाँव तो ख़ुशी के मारे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, उसी समय बहुत सारी मिठाई लाकर पूरी कालोनी में बाँट दी | फिर तैयार होकर हॉस्पिटल पंहुच गई और सारे कर्मचारियों को मिठाई बांटी, आयाओं को सौ- सौ के नोट भी दिए और फिर बहु के पास पोते को देखने पहुंची वहां पर डॉक्टर भी राउंड पर आई हुई थी देखते ही रेखा एक पूरा मिठाई का डिब्बा डॉक्टर की तरफ देते हुए बोली आप भी मेरे पोते के होने की मिठाई खाओ |…

Continue

Added by rajesh kumari on June 1, 2012 at 10:30am — 23 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
5 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
14 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service