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Dr Ashutosh Mishra's Blog (134)

मैं अपना घर सम्भालूँ वो अपना घर संभालें

१२२२  १२२ १२२२  १२२ 

मैं अपना घर सम्भालूँ वो अपना घर संभालें 

ये बंदूकें हटा लें अमन से हल निकालें 

झुलसती अब है धरती नहीं जमता हिमानी 

अगन पीकर मही की चलो नदियाँ बचा लें 

गले रोजाना मिलते , मिलाते हाथ भी हैं 

कभी तो ऐ पड़ोसी दिलों को भी मिला लें 

कली मुरझा रही है सिसकते हैं ये भंवरे 

जहाँ में है अँधेरा चरागों को जला लें 

बहुत रूठे हुए हैं  हमारे अपने हमसे 

चलो खुद आगे बढ़कर के रूठों…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2016 at 10:34am — 8 Comments

दो घड़ी जब ठहरना नहीं आपको

२१२  २१२  २१२  २१२ 

दो घड़ी जब ठहरना नहीं आपको 

तय ही है प्यार करना नहीं आपको 

चाँद अम्बर पे भी चाँद छत पे भी है 

कुछ भी हो है बहकना नहीं आपको 

रात दिन हुस्न क्यूँ यूं संवरता फिरे 

आँखों से कुछ समझना नहीं आपको 

बात गुल बुलबुलों तोता मैना कि क्या 

है कभी जब चहकना नहीं आपको 

सूखती जूड़े में नित नयी गुल कली 

खूब समझे बदलना नहीं आपको 

कितना भी यूं घटाओं सा उमड़ो मगर 

अब्र जैसे…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on December 29, 2015 at 6:30pm — 8 Comments

कितने ही यहाँ जिनके घर अपने नहीं होते

२२१ १२२२ २२१  १२२२ 

कितने ही यहाँ जिनके घर अपने नहीं होते 

क्या होता खुदा जग में गर अपने नहीं होते

 

 हर जुल्म सहा उसने लेकिन न कहा कुछ भी 

पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते 

था जंगली वो हाथी देता ही कुचल हमको 

गर पास धनुष अपना शर अपने नहीं होते 

बिगड़े न अगर होते बेटे तो यकीनन ही 

रातों में भटकते क्यूँ घर अपने नहीं होते 

चोरी से कहाँ बचते चोरों से बचाते क्या 

मजबूत घरों के गर दर अपने नहीं…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on October 30, 2015 at 4:36pm — 7 Comments

शहर में आ गया पर भूला नहीं गाँव दोस्तों

२१२२ १२२२ २१२२ १२१२

शहर में आ गया पर भूला नहीं गाँव दोस्तों 

भूल सकता नहीं पीपल की मैं वो छाँव दोस्तों 

खेल के नाम पे होती है सियासत ही बस यहाँ 

चल नहीं सकता मेरा कोई यहाँ दाँव दोस्तों 

सजदा करने में भी आती है शरम सबको आजकल 

कोई बूढों के झुक के छूता नहीं पाँव दोस्तों 

माँ ने जिस बाँध के सहरा है बसाया मेरा जहाँ 

मैं उसी माँ की भी बैठा ही नहीं ठाँव दोस्तों 

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Dr Ashutosh Mishra on October 2, 2015 at 10:42am — 12 Comments

गुनगुनाते हुए ज़िन्दगी की ग़ज़ल

२१२  २१२   २१२   २१२

गुनगुनाते हुए ज़िन्दगी की  ग़ज़ल

मैं चला जा रहा राह अपनी बदल

हुस्न को देख दिल जो गया था मचल

आज उसको भी देखा है मैंने अटल

वो  घने गेसू गुल से हसीं लव कहाँ

है मुकद्दर खिजाँ तो खिजाँ से बहल

उनके कूचे में मेरा जनाजा खड़ा

सोचता अब भी शायद वो जाए पिघल

शक्ल में गुल की ये मेरे अरमान हैं

नाजनी इस तरह तू न गुल को मसल

चैन मुझको मिला कब्र में लेटकर

शोरगुल भी नहीं न…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2015 at 2:52pm — 13 Comments

मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे -आशुतोष

२१२२  ११२२  ११२२  २२

मैं तो दीवाना हूँ मुझको न जलाओ ऐसे

मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे

चांदनी रात में ऐ चाँद यूं छत पे आकर

मेरे सोये हुए अरमाँ न जगाओ ऐसे

रेत पे जैसे निशाँ क़दमों के बैसे ही सही

दिल से धुंधली मेरी यादें न मिटाओ ऐसे

अब्र-ए- जुल्फ में खुद को यूं छुपा लेते हो

मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे

तुम समंदर ए गुहर हो ये सभी को है पता

पर न आँखों के गुहर अपने लुटाओ ऐसे

बिन…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2015 at 2:30pm — 11 Comments

मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है

मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है 

आज उसी मजहब ने क्यूँ दिल इंसा का तोडा है 

कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर 

पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है 

जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें 

गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है 

राम नाम जिस पाहन पर वो सागर में उतराए 

डूब गया वो राम नाम के बिन जिसको छोड़ा है 

तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में 

जब…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on July 5, 2015 at 10:34am — 15 Comments

तरही ग़ज़ल

तरही ग़ज़ल   

2122  1122  1122 22   

ये तबाही भरे मंजर नहीं देखे जाते

आँखों में गम के समंदर नहीं देखे जाते

फलसफा इश्क का मैं आज तुम्हे समझा दूं

इश्क में रहजन-ओ –रहवर नहीं देखे जाते

एक मुफलिस की ग़ज़ल सुनके बज्म झूम उठी

रुतवे महफ़िल में सुखनवर नहीं देखे जाते

इक सदी होने को आयी हमें आज़ाद हुए

मुझसे  हैं लोग जो बेघर नहीं देखे जाते

रिंद गर सच्चा तू होता तो खुद समझ लेता

खाली क्यूँ मुझसे ये सागर नहीं देखे जाते

खेलती थी…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on July 1, 2015 at 4:44pm — 18 Comments

उंगली में चुनरी लिपटी है दांतों से दबे ओंठ

2212  1212  221  122

दर्पण को देख हुस्न यूं शर्माने लगा है 

लगता खुमारे इश्क उस पे छाने लगा है 

उंगली में चुनरी लिपटी है दांतों से दबे ओंठ 

इक  दिल धड़क धड़क के नगमे गाने लगा है

 

जगते हैं पहरेदार भी आँखों के निशा में 

ख्वावो में उनके जबसे कोई आने लगा है

 

रुक-रुक के सांस चलती है नजरों  में उदासी 

सीने से दिल निकल के जैसे जाने लगा है 

कलियों के साथ देख के भंवरों को वो तन्हा 

कुछ कुछ समझ…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on June 11, 2015 at 2:00pm — 12 Comments

राह मुश्किल है जवानी की संभलकर चलना

२१२२   ११२२   ११२२  २२/११२

वक़्त ये चलता है चलते हुए सूरज की तरह 

तन मेरा जलता है जलते हुए सूरज की तरह 

रोशनी इल्म की दुनिया में तभी बिखरेगी 

तम को निगलोगे निगलते  हुए सूरज की तरह

जुल्फ की छांव तले शाम गुजारो अपनी 

अब्र में छुप के बहलते हुए सूरज की तरह 

राह मुश्किल है जवानी की संभलकर चलना 

कितने फिसले हैं फिसलते हुए सूरज की तरह 

अब्र की छांव में हर रोज छुपाकर खुद को 

इक कमर ने छला…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 10:49am — 15 Comments

खुदा है दिल में मेरी बात मान लो आशू

 1212   1212 1212 1212

बशर तमाम भीड़ में मुकाम ढूंढते रहे 

जमी पे हैं मगर फलक पे नाम  ढूंढते रहे 

हुनर तराशने की उम्र मस्ती में ही काटकर 

बिना हुनर मियां कहाँ पे काम ढूंढते रहे 

कभी भी बीज आम के चमन में बोये जब नहीं 

तो फिर चमन में क्यूँ यूं आप आम ढूंढते रहे 

जो रिंद हैं उन्हें तो मयकशी ही रास आयेगी 

वो मयकदे तलाशते हैं जाम ढूंढते रहे 

जतन तमाम ही किये पढ़ाने लाडले को जब 

तभी से मन ही मन वो…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on June 2, 2015 at 11:30am — 24 Comments

जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ

२१२२  १२१२   २२

हुस्न वाले सलाम करते हैं 

क़त्ल यूं ही तमाम करते हैं 

वो मसीहा चमन को लूट कहे 

काम ये लोग आम करते हैं 

आग दिल में लगाते गुल दिन में 

रात तन्हाई नाम करते हैं 

काम मेरा हुनर जो कर न सका 

मैकदे के ये जाम करते हैं 

जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ 

शेख तो  सुब्हो-शाम करते हैं 

कैसे रिश्तों में वो तपिश मिलती 

रिश्ते जब तय पयाम करते हैं 

उनको बुलबुल…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2015 at 5:06pm — 19 Comments

पगली बदली चाँद को ही खा गयी

2122 2122 212

चाँदनी बदली को इतना भा गयी 

पगली बदली चाँद को ही खा गयी 

जिसको रोता देख हमने की मदद

वो ही बिपदा बन मेरे सर आ गयी 

हक़ की मैंने की यहाँ है बात जब 

गोली इक बन्दूक की दहला गयी 

जिस घड़ी लव पे हँसी आयी मेरे 

वो उसी पल अश्क से नहला गयी 

जान से मारा मगर जब बच गया 

आ मेरे घावों को वो सहला गयी 

Added by Dr Ashutosh Mishra on May 23, 2015 at 1:43pm — 12 Comments

तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या

१२१२    ११२२   ११२२   २२ 

तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या 

घिरा जो तम में मेरा घर तो सहर मुझको क्या 

हमें वो हीन कहें दींन  कहें या मुफलिस 

बशर तमाम जुदा सब कि नजर मुझको क्या 

बहार आयी चमन में है ये तो तुम देखो

खिजाँ नसीब है; मैं हूँ वो शजर, मुझको क्या 

जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा 

बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या 

मेरा नसीब तो फुटपाथ जमाने से रहे 

नसीब उन को महल हैं…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 3:33pm — 10 Comments

ये मय भी कडवी है सच की तरह

१२१  २२ १२१  २२

यूं कतरा कतरा शराब पीकर

हैं जिन्दा अब तक जनाब पीकर

सवाल मुश्किल थे जिन्दगी के

मगर दिए सब जवाब पीकर

ये मय लगी  कडवी सच के जैसी 

न कह सका मैं  ख़राब पीकर

पहाड़ सीने पे दर्दो गम के

नहीं रहा कोई दवाब पीकर

जिन्हें मयस्सर न रोटियाँ…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 12, 2015 at 1:54pm — 20 Comments

उम्दा तैराक कभी था तो यकीनन पर सुन

2122   1122   1122   22/112

हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये 

आप हैं  बुझते दिए आप जरा चुप रहिये 

आईना देख के बालों की सफेदी देखें 

गाल भी लगते हैं अब आपके पंचर पहिये

 

आप तैराक थे उम्दा ये हकीकत है पर

बाजू कमजोर हवा तेज न उल्टे  बहिये 

इश्क का भूत नहीं सर से है उतरा माना 

पर सही क्या है ये, इस उम्र में खुद ही कहिये ?

लोग जिस मोड़ पे अल्लाह के हो जाते हैं 

आप उस मोड़ पे मत दर्दे…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 6, 2015 at 11:00am — 10 Comments

तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही

२१२२       २१२२         २१२२       २१२२

तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही है 

नदियों की कल कल न बांधों में सुनायी दे रही है 

कोई भी इल्जाम मैंने तो लगाया था नहीं फिर 

वो हंसी गुल जाने क्यूँ इतनी सफाई दे रही है 

चीख बस बच्चों कि ही तुमको सुनायी देती है क्यूँ 

ये न देखा लाडले को माँ दवाई दे रही है 

एक रोटी के लिए तरसा दिया उस माँ को तुमने

जो गृहस्ती ज़िंदगी भर की बनायी दे रही है 

काम दुनिया में…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2015 at 10:30pm — 14 Comments

मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे

२१२२ २१२२ २१२२

दर्द दिल में ऑसू टपके हैं धरा पे

कुछ लिखूंगा तो लिखूंगा में जफा पे  



तुम न होते ज़िन्दगी में गर मेरी तो

मैं कभी कुछ कह नहीं पाता बफा पे



रख के सर जानो पे मरने की तमन्ना

और मत जिंदा मुझे रख तू दवा पे



लोग जिससे खौफ अब भी खा रहे

मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे



गोपियों सा प्रेम दिल में जब भी होगा

कृष्ण भागे आयेंगे तेरी सदा पे



पापियों के पाप से धरती हिली जब

थी कहानी दर्द की वादे सवा पे…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on April 30, 2015 at 5:30pm — 22 Comments

जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा

२१२२    २१२२    २१२२   २१२

जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा

जिस घड़ी पत्थर का ये दिल मोम सा हो जायेगा

 

भूख से बेहाल बच्चा जो न सोया अब तलक

माँ अगर लोरी सुना दे भूखा ही सो जायेगा

 

आज तक मंदिर न जाकर कर दिया जो पाप है

माँ की सेवा से मिला आशीष वो धो जायेगा

 

मुतमइन था देख कर मैले में इंसानों की भीड़

तब न सोचा था,यहाँ बच्चा मेरा खो जाएगा

 

मानती जिस को थी दुनिया इक मसीहा आज…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on April 22, 2015 at 1:00pm — 15 Comments

हुस्न का जादू जहाँ चल जायेगा

२१२२   २१२२   २१२

 हुस्न का जादू जहाँ चल जायेगा  

रिन्दों का दिल भी बहाँ जल जायेगा 

जुल्फों को अपनी बिखेरेंगे वो जब 

उस घड़ी ये तय है दिन ढल जायेगा 

आ गए वो मौत से पहले मेरी 

वक़्त मेरी मौत का टल जायेगा 

हुस्न की मुझ पे इनायत हो गयी 

ये रकीबों को मेरे खल जायेगा 

उनसे मिलते वक़्त ये सोचा नहीं 

दिल में पौदा प्यार का पल जायेगा 

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Dr Ashutosh Mishra on April 11, 2015 at 10:30am — 3 Comments

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