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Dr Ashutosh Mishra's Blog – October 2015 Archive (2)

कितने ही यहाँ जिनके घर अपने नहीं होते

२२१ १२२२ २२१  १२२२ 

कितने ही यहाँ जिनके घर अपने नहीं होते 

क्या होता खुदा जग में गर अपने नहीं होते

 

 हर जुल्म सहा उसने लेकिन न कहा कुछ भी 

पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते 

था जंगली वो हाथी देता ही कुचल हमको 

गर पास धनुष अपना शर अपने नहीं होते 

बिगड़े न अगर होते बेटे तो यकीनन ही 

रातों में भटकते क्यूँ घर अपने नहीं होते 

चोरी से कहाँ बचते चोरों से बचाते क्या 

मजबूत घरों के गर दर अपने नहीं…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on October 30, 2015 at 4:36pm — 7 Comments

शहर में आ गया पर भूला नहीं गाँव दोस्तों

२१२२ १२२२ २१२२ १२१२

शहर में आ गया पर भूला नहीं गाँव दोस्तों 

भूल सकता नहीं पीपल की मैं वो छाँव दोस्तों 

खेल के नाम पे होती है सियासत ही बस यहाँ 

चल नहीं सकता मेरा कोई यहाँ दाँव दोस्तों 

सजदा करने में भी आती है शरम सबको आजकल 

कोई बूढों के झुक के छूता नहीं पाँव दोस्तों 

माँ ने जिस बाँध के सहरा है बसाया मेरा जहाँ 

मैं उसी माँ की भी बैठा ही नहीं ठाँव दोस्तों 

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Dr Ashutosh Mishra on October 2, 2015 at 10:42am — 12 Comments

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