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Nilesh Shevgaonkar's Blog – October 2017 Archive (5)

ख़त हमारे अगर जलाता है ; ग़ज़ल नूर की

२१२२/ १२१२/ २२ (११२)

ख़त हमारे अगर जलाता है

राख दुनिया को क्यूँ दिखाता है.

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हम को उम्मीद है तो ग़ैरों से,

कौन अपनों के काम आता है?

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सुन रखी होगी आग जंगल की

क्यूँ शरर को हवा दिखाता है.

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शम्स मुझ सा शराबी है शायद 

शाम ढलते ही डूब जाता है.

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ज़र्द चेहरा है बाल बिखरे हैं

इस तरह कौन दिल लगाता है.

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देख! दुनिया का कुछ नहीं होगा

ख्वाहमखाह इस में सर खपाता है.

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इस पे चलता है रब्त का धंधा

कौन क्या…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2017 at 1:00pm — 34 Comments

ग़ज़ल नूर की - किसी साधू के गहरे ध्यान से हम

२१२२, १२१२, २२ (११२) +१ 

.

किसी साधू के गहरे ध्यान से हम

बैठे रहते है इत्मिनान से हम.

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तुम हो इक टूटती हुई दीवार

एक ढहते हुए मकान से हम.

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गर ख़ुदा को वहाँ नहीं पाया,   

लौट आयेंगे आसमान से हम.   

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बात जो कुछ है साफ़ साफ़ कहें

ऊँचा सुनने लगे हैं कान से हम.

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बुतकदे में जलाने को दीपक

जाग जाते हैं इक अज़ान से हम.   

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एक एल्बम में तुम हसीं थी बहुत 

साथ में थे बड़े जवान से हम. 

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वस्ल का पल, ये…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2017 at 8:18am — 21 Comments

ग़ज़ल- हिंदी तुकांत के साथ एक प्रयोग (..अण ,, क़ाफ़िये पर संभवत: पहली ग़ज़ल है इस मंच पर)

२२/२२/२२/२२/



कर्म अगर साधारण होगा

कैसे नर...नारायण होगा.

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सच्चाई की राह चुनी है

पग पग दोषारोपण होगा.

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जिस के भीतर विष का घट है  

उस पर छद्म-आवरण होगा.

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कठिनाई भी बहुत ढीठ है  

इस से जीवन भर रण होगा.

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बस्ती बाद में सुलगाएँगे  

पहले प्रेम पे भाषण होगा.   

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मन में दृढ़ विश्वास न हो फिर  

कैसे कष्ट निवारण होगा.

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दसों दिशाओं में शासन है

शासक .. शायद रावण होगा.

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उजड़ेगा…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 11, 2017 at 3:52pm — 29 Comments

ग़ज़ल नूर की-तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी

२२१२, १२२; २२१२, १२२ (अरकान का क्रम भिन्न भी हो सकता है)

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तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी

तृष्णाओं से भरे इक मरुथल में रात काटी.

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जब रौशनी बढ़ा कर चन्दा ने उस को छेड़ा

शरमा के चाँदनी ने बादल में रात काटी. 

. `    

चुगली न कर दे बैरन थी जान कश्मकश में

बाहों में थे पिया और पायल में रात काटी.

.

साजन का नाम जपते अधरों का थरथराना,     

बिरहन के मुख पे फैले काजल में रात काटी.

.

हर कूक ने उठाई है हूक मेरे दिल में …

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2017 at 1:27pm — 19 Comments

ग़ज़ल नूर की- सीने से चिमटा कर रोये,

२२, २२, २२, २२ 

.

सीने से चिमटा कर रोये,

ख़ुद को गले लगा कर रोये.

.

आईना जिस को दिखलाया,  

उस को रोता पा कर रोये.

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इक बस्ते की चोर जेब में,

ख़त तेरा दफ़ना कर रोये.

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इक मुद्दत से ज़ह’न है ख़ाली,

हर मुश्किल सुलझा कर रोये.



तेरी दुनिया, अजब खिलौना,

खो कर रोये, पा कर रोये. 

.

सीखे कब आदाब-ए-इबादत,

बस,,,, दामन फैला कर रोये.

.

हम असीर हैं अपनी अना के,

लेकिन मौका पा कर रोये.

.

सूरज…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2017 at 9:00pm — 28 Comments

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